आपकी बात…राजनीति परिवारवाद से मुक्त क्यों नहीं हो पा रही है | Your point…Why is politics not free from nepotism?

पारिवारिक सदस्यों के चुनाव जीतने की संभावना अधिक
एक राजनीतिज्ञ के परिवार के सदस्यों, के राजनीति में सफल होने की संभावनाएं अधिक होती है। उस व्यक्ति के पास धन, दौलत, रुतबा और पहचान पहले से होती है। राजनीति में प्रवेश के लिए ना ही कोई परीक्षा है ना ही कोई निश्चित मापदंड है । चुनाव के प्रचार—प्रसार में भी काफी धन की आवश्यकता होती है। जनता भी जातियों में बटी हुई हैं और जाति के आधार पर ही वोट पडते हैं।
अरविंदर सिंह, कोटपुतली
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राजनीतिक दल जोखिम नहीं लेना चाहते
उम्मीदवार चुनते समय राजनैतिक पार्टियों का लक्ष्य चुनाव जीतना होता है। वह कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। नेता की जनता में पैठ अच्छी है तो उसके पारिवारिक सदस्यों को टिकट मिल जाता है। राजनीति में परिवारवाद बरसों पुरानी परंपरा है। एक बार जिसकी जड़ें जम जाती है फिर उसका प्रतिद्वंदी बनने से पहले कोई भी दस बार विचार करता है। शायद इसी वजह से राजनीति परिवारवाद से मुक्त नहीं हो पा रही है।
एम आर ओझा, बीकानेर
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जनसेवा के नाम पर परिवारवाद को बढावा
अधिकांश राजनेता राजनीति से विदा लेने के पहले अपने पुत्र या पुत्री को विधायक या सांसद के रूप में देखना चाहते हैं। जनसेवा और जनकल्याण योजनाएं तो जनता के करों से संपन्न होती हैं। जहां सेवाक्षेत्र के नाम पर सुनहरा मेवा क्षेत्र मिले वहां परिवारवाद सबसे अधिक गहराता जाएगा।
मुकेश भटनागर, भिलाई, छत्तीसगढ़
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राजनीति बना व्यापार
अब राजनीति व्यापार हो गया है। जब व्यापारी अस्वस्थ होने लगता है तो अपने परिवार को व्यापार की जिम्मेदारी और अनुभव सौंप देता है। इसलिए राजनीति परिवारवाद से मुक्त नही हो पायेगा। एक ही रास्ता है परिवारवाद से मुक्त होने का, जनता को जागरूक होना पड़ेगा।
श्रवण कुमार, बैंगलूरु
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नेताओं के पारिवारिक सदस्यों को चुनौती देना नहीं आसान
राजनीतिक नेता परिवारवाद को बढावा देते हैं। पार्टियों में भी इन्हीं नेताओं की चलती है। कोई उसका विरोध करने का साहस नहीं करता। अन्य योग्य उम्मीदवार चाहकर भी
दिलीप शर्मा, भोपाल,मध्यप्रदेश
परिवारवाद सामर्थ्यवान लोगों से अन्याय
परिवारवाद की राजनीति परिवार की भलाई के लिए ही होती है। उन्हें देश के लोगों की सेवा से कोई लेनादेना नहीं रहता। परिवारवाद ने देश के सामर्थ्यवान लोगों से सर्वाधिक अन्याय किया है। योग्यता की कद्र नहीं होती।
—शालिनी सत्यप्रकाश ओझा, बीकानेर
परिवारवाद से मुक्त करने की कथनी और करनी में अंतर
राजनीति को परिवारवाद से मुक्त करने की कथनी और करनी में अंतर होता है। राजनीतिक दल हमेशा परिवारवाद के मुद्दे पर आरोप प्रत्यारोप लगाते रहते हैं, लेकिन दूध का धूला कोई राजनीतिक दल नहीं है। राजनेता अपनी स्वार्थी प्रवृत्ति से ही बाज नहीं आ रहे। अपने परिवार व वंश के लोगों को उम्मीदवारी की मांग करने से नहीं चूकते। इस हेतु सरकार को कानून बनाना ही होगा और उल्लंघन करने पर कठोर दंडात्मक प्रावधान करने होगें।
– बलवीर प्रजापति, हरढा़णी जोधपुर