आपज करियों कामड़ा, दई न दीजै दोस।
राजस्थान को लेकर हाईकमान का लक्ष्य है कि 2023 में कांग्रेस सरकार की प्रदेश में वापसी हो। मंत्रीमंडल का पुर्नगठन भी इसी उद्देश्य की पूर्ति के मद्देनजर किया गया है। कम समय में बड़ी चुनौती है इसे किस नजरिए से स्वीकार किया जाएगा,यह गहलोत सरकार के मंत्रीमंडल की कार्यशैली से पता चलेगा।पब्लिक को प्रदेश की कांग्रेस सरकार से कुछ नहीं चाहिए। कलप लगे कुर्ता-पाजामा पहनने वाले सफेदपोशों से भी उन्हें ज्यादा आशा नहीं है। बस उन्हें तो इतना सा चाहिए कि उनके नेता उन्हें सहज उपलब्ध रहे। इस पर अंगित करते हुए सरकार के पाएदान का नजरिया बचे दो सालों में रहता है तो मानकर चले प्रदेश में कांग्रेस पुन: वापसी के द्वार पर निन्नायनवें प्रतिशत खड़ी है शेष तो मंत्रीमंडल और भद्र कांग्रेसजनों की कार्यशैली पर निर्भर करता है।
अक्सर मैनें पत्रकारिता के दौरान महसुस किया है भाजपा-कांग्रेस दोनों के ही गलियारों में पद पर आने के बाद नेताओं के स्वर ही नहीं बदल जाते बल्कि अपने लोगों के प्रति (संगठन के कार्यकर्ताओं) नजरिए भी बदल जाते हैं और मंत्री बने लोगों की तो बात ही छोड़ दे,उन्हें राज्यपाल द्वारा शपथ क्या दिला दी जाती है वे अपने आप को मसीहा समझने लग जाते हैं। उनकी सौच शत प्रतिशत सही भी है पब्लिक के लिए वे किसी मसीहा से कम नहीं होते हैं,लेकिन गलत तब हो जाता है जब प्रोटोकॉल को दृष्टिगत करते हुए वे जनता जर्नादन से दुरिया बनाकर राजनीतिक रोटियां सेकने लगते है,परिणाम चुनावों के दौरान सरकार विरोधी लहर के रूप में सामने आते हैं। मैनें पत्रकारिता और अपने राजनीतिक दौर में ज्यादा तो नहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी,शिवचरण माथुर और भैरोसिंह शेखावत का कार्यकाल देखा नजदीकी से। उनके दौर में इतना प्रोटोकॉल नहीं हुआ करता था। उसके बाद अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के दौर भी देखे और देख रहे हैं। राजे के कार्यकाल में सदा सरकार में शाही अंदाज हावी रहता था तो गहलोत के कार्यकाल में सहजता तो रही लेकिन वह सहजता देखने को नहीं मिलती कि आधी-रात को भी कोई कार्यकर्ता चला जाए तो उनके दरवाजे खुले मिलते थे। वह समय सीमित लेडलाईन फोन का हुआ करता था और पोश लोगों के पास ही उपलब्ध हुआ करते थे अब दौर स्व. प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सूचना क्रांति के बाद हाईटेक हो गया। ऐसे दौर में यह जरूर देखने को मिला कि देर रात को भी गहलोत को किसी का भी मैसेज मिले तो उसका जवाब उसे तुरन्त मिलता था यानि देर रात तक अशोक गहलोत शासन-प्रशासन के जरिए सीधे लोगों से जुड़े रहते हैं और उनके इसी जुड़ाव ने उन्हें जननायक की उपाधी से प्रदेश की ही नहीं बल्कि देश की जनता ने नवाज रखा हैं। अगर उनका मंत्रीमंडल भी इस बात को फोलो करले तो मानकर चले कि प्रदेश में वर्तमान कांग्रेस सरकार को 2023 में सरकार विरोधी लहर का सामना नहीं करना पड़ेगा और वह अच्छे बहुमत से वापसी करेगी,अन्यथा तो आज ही देख ले वसुंधरा राजे ने धार्मिक यात्रा के जरिए 2023 के मद्देनजर अपनी चार दिवसीय यात्रा शुरू की भाजपा कार्यकर्ता उनसे मिलने को बेताब रहे लेकिन राजे इस बात पर नाराज हो गई। ऐसे में कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी नेताओं को भरी पड़ सकती है,क्योकिं याद रखे अकेला चना भून तो नहीं सकता लेकिन भडभूजे की आंख जरूर फोड देता है अत: कांग्रेस को चाहिए कि हर कदम संत रहीम की इस कहावत को ध्यान में रखकर उठाए तो आसानी से नैय्या 2023 के चुनावों में पार लग सकती है,नहीं तो फिर यही कहकर पल्ला झाड़ना होगा कि जनादेश हमें स्वीकार हैं ओर मिलने वाला जनादेश कितनी सीटों का होगा यह भी जनता जर्नादन पर निर्भर होगा।
एक साधै सब सधै, सब साधै सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचियों, फूलै फलै अघाय।।
- प्रेम शर्मा