इस तोपखाना का निर्माण करवाया था राजा भोज ने, आज भी मौजूद हैं 276 खंभे, जानें लोकेशन

सोनाली भाटी/जालौर. जालौर नगर के मध्य में परमार राजा भोज के काल में निर्मित एक भव्य संस्कृत पाठशाला और देवालय के हिस्से मौजूद है जो सदियाँ बीतने पर भी अपनी पूरी भव्यता को संजाये हैं. दरअसल राजा भोज संस्कृत साहित्य के अधिकारी विद्वान् थे उन्होंने के प्रचार-प्रसार के लिये अनेक शालायें बनवाईं जिनमें भोज की राजधानी धार, अजमेर और जालौर में बनवाई गई तीनों पाठशालायें एक ही आकृति की हैं.
तोपखाना कहलाती है यह शाला
जालौर की पाठशाला तोपखाना के नाम से जानी जाती है. राठौड़ राजाओं के शासनकाल में इसमें तोपे रखी जाती थीं इस कारण इसे तोपखाना कहा जाने लगा. आजादी के बाद रसद विभाग ने इसे अनाज का भण्डार बनाया था. अब यह पुरातत्व विभाग की धरोहर है और यहां एक चौकीदार रहता है.
जालौर स्थित पाठशाला में पत्थरों पर बहुत बारीक और सुन्दर कारीगरी की गई है. दोनो ओर के पाश्र्वों में छोटे-छोटे देवालय बने हुए हैं. जिनमें अब कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है. प्रवेश द्वार के ठीक सामने मुख्य आहता बना हुआ है, जिसके विशाल स्तंभों पर छत टिकी हुई है. प्रत्येक स्तंभ अपनी बारीक कारीगरी से दर्शक को घंटों तक बान्धे रख सकता है. इन पर बने फूल, घन्टे, जंजीरें, लता, हाथी और ज्यामितीय आकृतियां मध्यकालीन कला वैभव का मुंह बोलता उदाहरण है.
आज भी मौजूद है 276 खंभे
मुख्य प्रांगण के दाहिने कोने में एक कमरा भूमि से लगभग 10 फीट ऊपर बना है. जिस पर जाने के लिये सीढ़िया बनी हैं. यहां आचार्य के बैठने की व्यवस्था थी जहां से वे बड़ी संख्या में उपस्थित विद्यार्थियों को एक साथ सम्बोधित कर सकते थे. इस स्मारक में आज भी 276 खम्भे हैं जिनमें से कुछ पर संस्कृत भाषा में शिलालेख लिखे हुए हैं जो कि इसकी समृद्धता का प्रतीक है.
मुख्यद्वार से प्रवेश करते समय बाईं ओर को एक देवालय अलग से बना हुआ है जहां शिवलिंग स्थापित था. अब यहां विभिन्न देव मूर्तियां खण्डित अवस्था में पड़ी हैं. जिनमें शिव-पार्वती, गणेश और वाराह अवतार की मूर्तियां हैं. वर्तमान में तोपखाने के बाहर एक ओर श्री राधा कृष्ण जी का मंदिर और दूसरी ओर एक मजार बनी हुई है जो अनेकता में एकता का परिचय दे रही है.
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FIRST PUBLISHED : January 10, 2024, 21:41 IST