एक्सप्लेनर – 40 सालों से कनाडा में कैसे चलता आ रहा है खालिस्तान मूवमेंट

Khalistan movement and Canada: कनाडा के प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल में बयान दिया कि जून 2023 में खालिस्तान समर्थक अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में कनाडाई जांच अधिकारी भारत की भूमिका की जांच कर रहे थे. इस पर पलटवार करते हुए भारत सरकार ने कहा कि कनाडा खालिस्तानी आतंकवादियों और चरमपंथियों को शरण दे रहा है. इस मामले पर कनाडाई सरकार की निष्क्रियता लंबे समय से चिंता का कारण बनी हुई है. खालिस्तान आंदोलन के मुद्दे भारत के सख्त रुख के बाद कनाडा बैकफुट पर आया और ट्रूडो को कहना पड़ा कि उनका मकसद भारत को उकसाना नहीं था.
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि कनाडाई राजनीतिक हस्तियों ने खुले तौर पर भारत विरोधी तत्वों के प्रति सहानुभूति जताई है. साथ ही कहा कि कनाडा में हत्या, मानव तस्करी और संगठित अपराध समेत कई गैरकानूनी गतिविधियों को दी गई जगह नई बात नहीं है. पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई उदाहरण दुनिया के सामने आए हैं. इनमें एक घटना कुछ समय पहले ही हुई है. भारत सरकार की ओर से कहा कि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लूस्टार की 39वीं वर्षगांठ से पहले कनाडा के ओंटारियो में ब्रैम्पटन में 4 जून 2023 को एक परेड हुई. इसमें एक झांकी भारत की पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाती हुई नजर आ रही थी.
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झांकी पर भारत सरकार ने जताई थी कड़ी आपत्ति
ब्रैम्टन में हुई परेड में एक झांकी में एक महिला को खून से सनी सफेद साड़ी में दिखाया गया था. महिला के हाथ ऊपर की ओर थे और पगड़ीधारी लोग उस पर बंदूकें ताने खड़े दिखाए गए थे. पीछे लगे पोस्टर पर ‘दरबार साहिब पर हमले का बदला’ लिखा था. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इस पर कड़ी आपत्ति दर्ज की. उन्होंने कहा, ‘वोट बैंक की राजनीति की जरूरतों के अलावा हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि कोई ऐसा क्यों करेगा. मुझे लगता है कि अपने हितों को साधने के लिए कनाडा में अलगाववादियों, चरमपंथियों, हिंसा की वकालत करने वाले लोगों को जगह दी जाती है. बता दें कि ब्रैम्पटन में कनाडा की सबसे ज्यादा सिख आबादी है.
ट्रूडो क्यों कर रहे खालिस्तान आंदोलन का समर्थन
कनाडा के मौजूदा प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी के महज 158 सांसद हैं. वहीं, कनाडा की 338 सीट वाली संसद में बहुमत के लिए 170 सांसदों की जरूरत होती है. सरकार में बने रहने के लिए ट्रूडो को कट्टर खालिस्तानी अलगाववादी नेता जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी का समर्थन हासिल है. एनडीपी के इस समय 24 सांसद हैं. हैं. ट्रूडो एनडीपी को नाराज करने की स्थिति में नहीं हैं. साल 2019 और 2021 के चुनाव नतीजों ने ट्रूडो को खालिस्तानी अलगाववादी नेता और उनकी पार्टी पर पूरी तरह से निर्भर कर दिया है. ट्रूडो और एनडीपी का ‘कॉन्फिडेंस एंड सप्लाई’ समझौता साल 2025 तक चलेगा.
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किसकी शह पर भारत के खिलाफ खोला मोर्चा
एनडीपी मुखिया जगमीत सिंह भी पीएम जस्टिन ट्रूडो के साथ मजबूती से खड़े रहते हैं. इसकी बानगी तब दिखने को मिली, जब कनाडा के चुनाव में चीन की दखलंदाजी के शक पर विपक्ष ने जांच की मांग की. इस मुद्दे पर जगमीत सिंह ट्रूडो के साथ खड़े नजर आए. ऐसे में पीएम ट्रूडो ने जगमीत सिंह की शह या कहें इशारे पर भारत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. यही नहीं, ट्रूडो कनाडा में खालिस्तानी गतिविधियों को पूरी शह दे रहे हैं. बता दें कि कनाडा में इस समय करीब 7.75 लाख सिख हैं. ये कनाडा की आबादी का करीब 2 फीसदी है. ब्रिटिश कोलंबिया में सबसे ज्यादा भारतीय रहते हैं. ओंटारियो में 1.80 लाख भारतीय रहते हैं. ट्रूडो भी दावा कर चुके हैं कि उन्होंने सबसे ज्यादा सिखों को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी है.
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खालिस्तान पर कनाडा में हुआ जनमत संग्रह
खालिस्तान समर्थक संगठन सिख फॉर जस्टिस यानी एसएफजे ने 2022 में खालिस्तान पर कनाडा में एक जनमत संग्रह कराया. आयोजकों का दावा था कि खालिस्तान के समर्थन में एक लाख से ज्यादा लोग जनमत संग्रह में शामिल हुए. इस पर भारत सरकार ने कड़ी फटकार लगाते हुए कनाडा से किसी भी भारत विरोधी गतिविधि पर रोक लगाने को कहा था. साथ ही कनाडाई सरकार से उन सभी लोगों को आतंकवादी के तौर पर नामित करने को कहा, जिन्हें भारत में आतंकवादी नामित किया गया था. बता दें कि एसएफजे भारत में गैरकानूनी संगठन घोषित है. ये संगठन मई 2022 में मोहाली में पंजाब इंटेलिजेंस मुख्यालय पर आरपीजी हमले में शमिल रहा है.
पहले भी इंदिरा गांधी का कर चुका है अपमान
कनाडा में जून 2023 से पहले भी पूर्व पीएम इंदिरा गांधी का अपमान किया जा चुका है. टोरंटो में प्रकाशित पंजाबी साप्ताहिक ‘सांझ सवेरा’ में 2002 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इंदिरा गांधी की पुण्य तिथि पर ‘पापी को मारने वाले शहीदों का सम्मान करें’ शीर्षक के साथ बधाई दी गई थी. इस पत्रिका को कनाडाई सरकार ने विज्ञापन दिए. अब यह कनाडा का प्रमुख दैनिक अखबार है. बता दें कि कनाडा को लंबे समय से खालिस्तान समर्थकों और भारत में आतंकवाद के आरोपियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह माना जाता रहा है. टेरी मिल्वस्की ने अपनी पुस्तक ‘ब्लड फॉर ब्लड: फिफ्टी इयर्स’ में लिखा है कि भारतीय राजनेता कनाडा में खलिस्तान के प्रति नरम रुख की 1982 से ही शिकायत करते रहे हैं.
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इंदिरा गांधी ने पियरे ट्रूडो को दी थी चेतावनी
टेरी मिल्वस्की 2021 में आई अपनी किताब में लिखते हैं कि भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कनाडा के समकालीन पीएम पियरे ट्रूडो से उनके देश में खालिस्तान मूवमेंट को मिल रहे समर्थन की शिकायत की थी. बता दें कि पियरे ट्रूडो 1968 से 1979 तक और फिर 1980 से 1984 तक कनाडा के प्रधानमंत्री रहे थे. वह कनाडा के वर्तमान पीएम जस्टिन ट्रूडो के पिता थे. पियरे ट्रूडो के कार्यकाल में खालिस्तानी आतंकियों ने एयर इंडिया के विमान कनिष्क को हाइजैक कर हवा में ही बम धमाके से उड़ा दिया था. इस घटना में 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. अब प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भी अपने पिता की राह पर चलते हुए कनाडा में खालिस्तान मूवमेंट का समर्थन कर रहे हैं.
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कनाडा क्यों करता है खालिस्तान का समर्थन
अब सवाल ये उठाता है कि ट्रूडो की मजबूरी तो समझ आती है, लेकिन कनाडा खालिस्तान का समर्थन क्यों करता है. मिल्वस्की ने इस सवाल का जवाब भी अपनी किताब में दिया है. मिल्वस्की ने लिखा है कि वैशाखी पर कनाडा में एक लाख सिखों की भीड़ जुटना मामूली बात है. साल 2021 में हुई जनगणना के अनुसार, कनाडा की आबादी में सिखों की हिस्सेदारी 2.1 फीसदी है. यही नहीं, यह कनाडा का सबसे तेजी से बढ़ने वाला धार्मिक समूह है. भारत के बाद कनाडा दुनिया में सिखों की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है. ऐसे में मौजूदा समय में सिख सांसद और अधिकारी कनाडा सरकार के हर स्तर पर काम कर रहे हैं. कनाडा में सिखो की बढ़ती आबादी चुनावी समीकरणों में भी अहम हो गई है.
कनाडा में खालिस्तान आंदोलन क्यों है जिंदा
खालिस्तान आंदोलन का भारत में बहुत ही कम सिख समर्थन करते हैं. लेकिन, कनाडा के साथ ही अमेरिका और ब्रिटेन में सिख प्रवासी इस पर लगातार आंदोलन कर रहे हैं. आखिर क्या वजह है कि जो खालिस्तान आंदोलन भारत में दम तोड़ चुका है, वो कनाडा में जिंदा कैसे है? इस पर मिल्वस्की कहते हैं कि कनाडाई नेता सिख वोट खोना नहीं चाहते हैं. हालांकि, उनकी सोच गलत है कि खालिस्तानियों का अल्पसंख्यक समुदाय कनाडा के सभी सिख हैं. वह कहते हैं कि कनाडा में ये आंदोलन इसलिए चल रहा है, क्योंकि उन्हें पंजाब की मौजूदा जमीनी हकीकत के बारे में ज्यादा नहीं पता है. इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने 80 के दशक में उस समय पंजाब को छोड़ दिया था, जब खालिस्तान आंदोलन चरम पर था. उस समय की यादों ने कनाडा में बसे सिखों के बीच आंदोलन को जिंदा रखा है, जबकि आज पंजाब की जमीनी हकीकत बहुत अलग है.
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FIRST PUBLISHED : September 21, 2023, 12:37 IST