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एक आंख से दिखने लगा धुंधला, जांच कराई तो निकला दुर्लभ कैंसर, फिर डॉक्‍टरों ने किया ऐसा कि..

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट गुरुग्राम के डॉक्टरों की कुशल टीम ने 31 वर्षीय एक महिला की बायीं आंख से एक दुर्लभ और मैलिग्नेंट ट्यूमर – कोरोइडल मेलेनोमा को सफलतापूर्वक निकालकर बड़ी उपलब्धि हासिल की है. इस तरह का कैंसर दुनियाभर में प्रति दस लाख की आबादी में केवल 5 से 7 मरीजों में ही होता है. हालांकि, कोरोइडल मेलेनोमा एक दुर्लभ किस्म का कैंसर है और यह मामूली होने पर भी शरीर के अन्य भागों में फैल जाता है, इसलिए इसका तत्काल इलाज करना जरूरी होता है.

भारत में फॉर्टिस अस्‍पताल में मरीज को पहली बार प्लाक ब्रेकीथेरेपी दी गई जो कि खास किस्म का रेटिनल आइ ट्यूमर उपचार है. यह पहला मामला है जबकि दिल्ली-एनसीआर के किसी प्राइवेट अस्पताल में इस तकनीक का इस्तेमाल किया गया.

जानकारी के मुताबिक 31 साल की महिला मरीज को पिछले छह महीनों से बायीं आंख में धुंधला दिखाई देने की शिकायत थी, जबकि दायीं आंख में नॉर्मल विजन (6/6) था लेकिन बायीं आंख में विजन घटकर 6/18 रह गया था. जबकि मेडिकल जांच कराई तो पता चला कि बायीं आंख में स्‍टेज 1 का कैंसर था, जिसकी वजह से उनकी आंख में 6-7 डिस्क डायमीटर का घाव बन चुका था और यह मैक्यूला की तरफ बढ़ रहा था. ट्यूमर उनकी ऑप्टिक नर्व के नजदीक था और साथ ही, रेटिना के बाकी हिस्से में रेडिएशन एक्सपोजर होने की पूरी संभावना थी. इसलिए मरीज को प्लाक ब्रेकीथेरेपी दी गई. इस तकनीक में एक छोटे आकार की, सिल्वर-कवर्ड डिस्क-शेप डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है जो दरअसल, रेडियोएक्टिव स्रोत होती है और इससे सीधे ट्यूमर पर लक्षित कर रेडिएशन दिया जाता है, जिससे ट्यूमर का आसपास के टिश्यूज तक फैलाव कम से कम हो सके. यह तरीका काफी कारगर साबित हुआ क्योंकि इससे मरीज की दृष्टि को सुरक्षित किया जा सका साथ ही, ऑप्टिक नर्व के नजदीक स्थित ट्यूमर को भी हटाने में कामयाबी मिली.

इस बारे में डॉ. अनीता सेठी, डायरेक्टर एंड एचओडी, ऑप्थैलमोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने बताया, ‘ हमने रेडियोएक्टिव वेस्ट से तैयार स्वदेशी नॉच्ड रूथेनियम 106 प्लाक का इस्तेमाल किया. इस जटिल प्रक्रिया के तहत हमने रेडियोएक्टिव प्लाक को आंख के अंदर ट्यूमर के ठीक ऊपर रखा, आमतौर पर यह जनरल एनेस्थीसिया देकर किया जाता है. इस प्लाक से बीटा रेडिएशन निकलता है जो आसपास के टिश्यूज को प्रभावित किए बगैर ही कैंसर कोशिकाओं पर हमला करता है.

दूसरा तरीका यह होता है कि सर्जरी कर आंख के प्रभावित हिस्से या पूरी आंख को निकाला जाता है, लेकिन इस प्रक्रिया का फायदा यह है कि इससे मरीज की नजर को बचाया जा सकता है. एक अन्य वैकल्पिक इलाज इन्युक्लिएशन भी है जिसमें आंख को निकाला जाता है लेकिन इससे न सिर्फ मरीज की दृष्टि पूरी तरह से चली जाती है बल्कि सर्जरी के बाद मरीज का चेहरा भी खराब लगता है. हमने प्लाक ब्रेकीथेरेपी को इसलिए चुना ताकि न सिर्फ ट्यूमर को कारगर तरीके से हटाकर इस युवती की आंखों की दृष्टि को बचाया जा सके बल्कि इलाज पूरा होने के बाद मरीज का चेहरा भी न बिगड़े.’

कैसे होती है यह थेरेपी?
डॉ सेठी ने बताया कि प्लाक ब्रेकीथेरेपी को दो चरणों में किया जाता है. पहली सर्जरी में प्लाक इंसर्शन किया जाता है और अगली सर्जरी में इस प्लाक को हटाया जाता है. प्लाक कितनी देर तक ट्यूमर के संपर्क में रहेगा यह डोसीमीट्री (विज्ञान जिसके अनुसार, माप और गणना के आधार पर अवधि तय की जाती है) से निर्धारित होता है. डोसीमीट्री को रेडिएशन फिजिसिस्ट द्वारा ट्यूमर के आकार और प्लाक की रेडियोएक्टिविटी के आधार पर किया जाता है. इस मामले में हमने नॉच्ड रूथेनियम 106 प्लाक का इस्तेमाल किया और दोनों प्रक्रियाओं को करीब 75 घंटों में पूरा किया गया.

इस सर्जरी में थी बड़ी चुनौती
अस्‍पताल के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट महिपाल सिंह भनोत का कहना है कि ट्यूमर की लोकेशन आंख के अंदर होने की वजह से यह मामला काफी चुनौतीपूर्ण था. हमारी प्राथमिकता इस ट्यूमर को निकालने के साथ-साथ मरीज की नजर सुरक्षित रखने की थी. अस्पताल के कुशल डॉक्‍टरों, डॉ अनीता सेठी, डॉ नीरज संदूजा, डॉ अमल रॉय चौधरी, डायरेक्टर – रेडिएशन ऑन्कोलॉजी, प्लाक ब्रेकीथेरेपी का इस्तेमाल कर अपनी मरीज की विजन को सुरक्षित रखा. यह मामला कुशल और अनुभवी मेडिकल प्रोफेशनल्स तथा अत्याधुनिक टैक्नोलॉजी की मदद से हाई क्वालिटी केयर उपलब्ध कराने की फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम की प्रतिबद्धता को दर्शाता है.’

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