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कभी इनके दरबार में नेताओं की लगती थी हाजिरी, अब पीस रहे हैं जेल में चक्की, क्या बाबाओं का राजनीति शास्त्र और हिंदू वोट का आधार बदल गया?

Baba Politics in Lok Sabha Elections: देश में चुनाव आते ही बाबाओं की चर्चा शुरू हो जाती है. एक जमाना था जब चुनाव आते ही इन बाबाओं और धर्मगुरुओं के दरबार में नेताओं की हाजिरी लगनी शुरु हो जाती थी, लेकिन वक्त के साथ इन बाबाओं का राजनीति शास्त्र और हिंदू वोट का आधार भी बदल गया. बता दें कि चुनावी मौसम में खासकर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में अनुयायियों को रिझाने के लिए सभी दल बाबाओं के आगे-पीछे घूमना शुरू कर देते थे. लेकिन, पिछले कुछ सालों में कई बाबा हत्या, धोखाधड़ी और यौन उत्पीड़न जैसे मामलों में जेल चले गए. इससे आम जनता के मन में इन बाबाओं के प्रति मोहभंग होना शुरू हो गया. ऐसे में राजनीतिक दल के नेताओं ने अब कम से कम सार्वजनिक मंचों पर इन बाबाओं से दूरी बना ली है. हालांकि, कुछ धर्मगुरुओं, जिनकी छवि निर्विवाद है उनके सभाओं में नेता, मंत्री या मुख्यमंत्री अभी भी हाजिरी लगा रहे हैं.

पिछले कुछ सालों में कई बाबाओं ने लोगों के भावनाओं के साथ जमकर खिलवाड़ किया. खासकर आसाराम और गुरमीत राम रहीम जैसे धर्मगुरुओं ने तो हद पार की दी. हालांकि, अब ये दोनों हत्या, अपरहण और बलात्कार जैसे मामलों में जेल की हवा खा रहे हैं और इनके अधिकांश अनुयायियों का इनसे मोहभंग हो गया है. राजनीतिक दलों ने भी इन धर्मगुरुओं को अहमियत देना बंद कर दिया है. लेकिन, कई पार्टियां अभी भी जेल में बंद बाबाओं के अनुयायियों को खुश करने के लिए समय-समय पर कुछ रियायतें देती रहती हैं. हालांकि, ये पर्दे के पीछे होता है.

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कुछ धर्मगुरुओं, जिनकी छवि निर्विवाद है उनकी सभाओं में आज भी नेता नेता या मुख्यमंत्री हाजिरी लगाने पहुंचते हैं.

बाबाओं के दरबार में हाजिरी
वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय कहते हैं, ’90 के दशक से लेकर साल 2014 तक देश में आसाराम बापू, गुरमीत राम रहीम, निर्मल बाबा, नित्यानंद और राधे मां जैसे शख्सियत से मिलने के लिए राजनीतिक दलों के नेताओं को महीनों इंतजार करना पड़ता था. खासकर आसाराम और गुरमीत राम रहीम से मिलने के लिए मुख्यमंत्री, मंत्री और राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष को भी उनके आश्रम आना पड़ता था. बाद में बड़े गर्व के साथ फोटो और वीडियो ये नेता जारी करते थे, जिसमें वे बाबा के समाने दंडवत नजर आते दिख रहे होते थे. लेकिन, हालात बदले और इन बाबाओं के चरित्र पर ऐसा दाग लगा, जिससे अब राजनीतिक दलों के नेताओं इन सबों से दूरी बना ली. हालांकि, कुछ पार्टियां अभी भी चोरी-छिपे इनके अनुयायियों का वोट पाने के लिए हर तरह का प्रयास करती है.’

पांडेय आगे कहते हैं, ‘देश में राम मंदिर की स्थापना के बाद अब नेताओं का बाबाओं के दरबार में हाजिरी लगाने से ज्यादा अपने आपको हिंदू कहलाना और दिखाना ज्यादा अच्छा लगने लगा है. चुनाव के वक्त अब नेता मंदिरों में जाते हैं. जनेऊ पहनते हैं और सच्चे सनातनी होने का दावा करते हैं. सोशल मीडिया पर फोटो को पोस्ट कर देते हैं. कुछ नेता अपने को हनुमान भक्त तो कुछ राम भक्त भी कहते हैं. आपको बता दें कि हाल के वर्षों में सनातनी कहलाने के परंपरा में बदलाव आया है. अब नेता बाबाओं को लोग भूल गए हैं. अब नेता मंदिर तो जा रहे हैं, लेकिन बाबाओं के आश्रम या सत्संग जाने से बच रहे हैं.’

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आसाराम और गुरमीत राम रहीम जैसे कई बाबा जेल की हवा खा रहे हैं.

क्यों इन धर्मगुरुओं से दूर होते गए नेता?
वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेश श्रीवास्तव कहते हैं, ‘एक दौर था जब आसाराम, गुरमीत राम रहीम, निर्मल बाबा, नित्यानंद और राधे मां जैसे कथावाचक और धर्मगुरुओं के सत्संग में नेता अक्सर चुनाव से पहले हाजिरी लगाने आते थे. खासकर, पंजाब में गुरमीत राम रहीम के सिरसा स्थित आश्रम में कई बड़े नेता इसलिए आते थे कि उनको अनुयायियों का वोट मिले. लेकिन, अब ऐसा नहीं है. अब राजनीतिक दल इससे बचना चाह रही है. इसका कारण है कि इन बाबाओं के आपराधिक कार्यों में संलिप्तता और कई तरह के गलत काम में शामिल होना.’

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कुलमिलाकर पहले की तरह इस बार के लोकसभा चुनाव में भी धर्म का बोलबाला रहने वाला है, लेकिन धर्मगुरुओं और बाबाओं का नहीं. हालांकि, हाल के दिनों में मोरारी बापू, पंडित धीरेंद्र शास्त्री, पंडित प्रदीप मिश्रा, देवकीनंदन ठाकुर, कमल किशोर नागर, रावतपुरा सरकार, भैया जी सरकार, राधे-राधे बाबा, देव प्रभाकर, दादाजी स्वामी, शांति स्वरूपानंद, बाल योगी उमेश नाथ, शंकराचार्य स्वरूप, ओम शांति, ब्रह्माकुमारी और कंप्यूटर बाबा जैसे कथावाचक अभी भी सक्रिय हैं.

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