Rajasthan

कविता-जीवन की मधुशाला में

अलका ‘सोनी’

जीवन की इस मधुशाला में
दर्द मधु है
आंसू साकी है,
झाूम उठेगा वो ही
जिसमें तेरी यादें बाकी हैं,

प्रथम झलक की,
प्रथम मिलन की,
अब तक नयनों में झाांकी है
झाूम उठेगा वो ही
जिसमें तेरी यादें बाकी हैं,

मधु हंसी में
मधु छुअन में,
उन वचनों की कोमलता
अब भी मन में ताजी है,

कोई पावन धाम सा लगता
राधा के मोहन सा
नाम वो लगता,
उन श्वासों की सुंगध
मन के वृंदावन में
अब भी बाकी है,
झाूम उठेगा वो ही
जिसमें तेरी यादें बाकी हैं….

पढि़ए एक और कविता

धूप का एक टुकड़ा

प्रतिभा शर्मा

हमारे हृदयों में हूक के जो आक्रोश उठेंगे
वे उन पैरों की धूल के गुबार होंगे
जो इस धरती को नापते-नापते पस्त हो गए

हमारे आस्तांचलों में जो दिन उगेंगे
वे उन सपनों के सूरज होंगे
जो इस वायुमंडल को तापते-तापते अस्त हो गए

हमारे आसमानों में खीझ के जो बादल घुमड़ेंगे
वे उन सांसों की भाप के उठाव होंगे
जो इस धरती पर दम भरते-भरते जब्त हो गए

इनके दुखों को दुख की नदी में बहा दो
और सपनों की मछलियों को सुख की नदी से खींच लो

इनकी धूप को जाल में उलझने मत दो
सूरज को सिक्का बना पल्लू की कोर में गांठ लेने दो

धूप का एक टुकड़ा
नदी की एक आस
काफी है इनके कलेवे में

दुपारी का आटा
ये अपनी गरीबी में गीला नहीं होने देंगे
बस तुम अपनी थोथी दिलासाओं का लोटा
इनकी परात में ढुलकने मत दो

इनके लगावण का सूखा कांदा
आमद की सबसे ऊपरी शाख पर टंगा है
बर्गर के एक बड़े होर्डिंग में मुझे
इनके सपनों का कचूमर और रक्त की
सांस दिखाई देती है
बस इनके हाथ की रोटी को तुम पटरी पर उछलने मत दो

अभी सूखती हड्डियों का ईंधन बाकी है इनकी देहों में
बस तुम इनके अंगारों को भोभर मत होने दो
बड़ी देर से इनके चूल्हों में जोत जली है

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj