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कैंचीधाम के नीम करोली आश्रम में क्या है पत्थरों का राज? क्यों बाबा ने हटवाने नहीं दिया था

Neem Karoli Baba: कैंचीधाम स्थित बाबा नीम करोली का आश्रम लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र है. हर दिन देश-दुनिया के तमाम कोने से लोग यहां आते हैं. इस आश्रम की तमाम चीजें आज भी वैसी ही हैं, जैसी बाबा नीम करोली के वक्त हुआ करती थीं. डॉ. जया प्रसाद पेंगुइन से प्रकाशित अपनी किताब ‘श्री सिद्धि मां’ में लिखती हैं कि महाराज जी (बाबा नीम करोली) की कुटी का दरवाजा एक बरामदे की ओर खुलता है, जिसके आगे एक छोटा सा प्रांगण है. इस प्रांगण में पत्थर बिछे हैं.

जब भक्त ने किया फर्श बनवाने का अनुरोध
डॉ. जया लिखती हैं कि सर्दी के दिनों में बाबा नीम करोली इसी बरामदे के एक कोने में लगी लकड़ी की कुर्सी पर बैठकर धूप सेंका करते थे और अपने भक्तों से मिलते थे. एक दिन किसी भक्त को लगा कि महाराज जी के पैरों में प्रांगण के कंकड़-पत्थर चुभते होंगे. उन्होंने महाराज जी से सीमेंट का फर्श बनवा कर इस जगह को समतल करने की विनती की. बाबा नीम करोली मान गए.

दूर खड़ीं बाबा की शिष्या श्री सिद्धि मां (Shri Siddhi Maa ) यह सब सुन रही थीं. जब सब लोग चले गए तो सिद्धि मां ने एकांत में अपनी धोती के आंचल में प्रांगण के पत्थर बटोरने लगीं. महाराज जी की निगाह पड़ी तो बाहर आ गए और पूछा कि वह क्या कर रही हैं?

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क्यों आज भी वैसे ही रखे हैं वो पत्थर?
डॉ. जया लिखती हैं कि मां ने बाबा नीम करोली से कहा कि इन पत्थरों को आपके चरणों का स्पर्श प्राप्त हुआ है, इसलिए ये अनमोल हैं. अब जब यहां पर फर्श बनेगा तो इन्हें फेंक दिया जाएगा. सिद्धि मां की बात सुनकर बाबा नीम करोली कुछ वक्त के लिए चुप रहे. फिर उन्होंने फौरन संदेश भेज कर प्रांगण का समतलीकरण रुकवा दिया.

कैंचीधाम (Neem Karoli Ashram Kainchidham) के आश्रम में आज भी वो कंकड़-पत्थर पीछे प्रांगण में ठीक उसी तरह बिछे हुए हैं, जैसा बाबा के वक्त थे. जब कभी दीवार की पुताई होती है या कोई मरम्मत का काम होता है तो इन पत्थरों को सावधानी से उठाकर दूसरी जगह रख दिया जाता है और काम खत्म होने के बाद धोकर वापस वहीं बिछा दिया जाता है.

कहां हैं बाबा नीम करोली की वस्तुएं?
डॉ. जया लिखती हैं कि कैंचीधाम आश्रम में आज भी ज्यादातर चीजें वैसी की वैसी हैं. सिर्फ गिनी-चुनी तस्वीरें बदली गई हैं. जिस कुटिया में बैठकर बाबा नीम करोली साधना किया करते थे, उनकी महासमाधि के बाद कुटिया की एक दीवार में एक सेल्फ बनाकर उसमें महाराज से जुड़ी तमाम चीजें- जैसे उनकी राम नाम की पुस्तिका, धोती, चिमटा, थाली और कलश में रखी हुई मिट्टी वैसी ही सुरक्षित रखी हुई है.

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कैंचीधाम स्थित बाबा नीम करोली का आश्रम.

आज भी वैसा ही भंडारा
कैंचीधाम आश्रम में 15 जून को विशाल भंडारा होता है. जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं. डॉ. जया अपनी किताब में लिखती हैं कि जब बाबा नीम करोली थे, तब भी इस भंडारे में लोगों को मालपुआ, प्रसाद के रूप में दिया जाता था. आज भी प्रसाद वही है और उसी विधि से तैयार किया जाता है जैसा महाराज जी के समय होता था. वह लिखती है कि पहले भीड़ कम होती थी तो मालपुए और आलू की सब्जी बनाने का काम सुबह से शुरू होकर दोपहर तक चलता था और शाम होते-होते भंडारा संपन्न हो जाता था.

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5 दिन पहले से बनने लगता है मालपुआ
आज भी मालपुआ और सब्जी उसी तरह बनती है लेकिन अब पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा कारीगर होते हैं और काम भी पहले शुरू हो जाता है. भंडारे से 5 दिन पहले ही मालपुआ भंडार गृह में अखंड हनुमान चालीसा का पाठ प्रारंभ हो जाता है. फिर अग्नि पूजन के साथ मालपुआ बनना शुरू होता है, जो अगले 5 दिनों तक दिन-रात चलता रहता है. आश्रम में मालपुए के कारीगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही आते हैं. महाराज जी के समय भी यही लोग आया करते थे

Tags: Hanuman mandir, Hanuman Temple, Religion, Uttrakhand

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