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जब भरी चुनावी सभा में लोकसभा प्रत्‍याशी ने गटकी शराब, बोले- ‘मैं तो खुलेआम पीता हूं, लोग बंद कमरे में…’

25 अक्टूबर 1951 से लेकर 21 फरवरी 1952 के बीच चुनावी सरगर्मियां जोरों पर थीं. गुरु गोरक्षनाथ की धरती हमेशा से चर्चा में रही है. ऐसे में यहां की सियासत भला इससे अछूती कैसे रह सकती है. आजाद भारत के पहले चुनाव में भी उत्‍तर प्रदेश की गोरखपुर साउथ की सीट पर मुकाबला दिलचस्‍प हो गया था. इसके कारण कई थे. पहला कारण तो यह था कि यहां से गोरक्षनाथ पीठ के महंत दिग्‍विजय नाथ ने चुनावी मैदान में ताल ठोंक दी थी. दिग्‍विजयनाथ यहां हिन्‍दू महासभा के टिकट पर चुनाव मैदान में थे. कांग्रेस ने यहां से सिंहासन सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था.

ऐसे बन गया दिलचस्‍प मुकाबला
अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें कौन सी दिलचस्‍प बात है, तो हम आपको बता दें कि यह मुकाबला तब और चौंकाने वाला हो गया. जब इस सीट से मशहूर शायर रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी भी उम्‍मीदवार बनकर उतर गए. दरअसल इस मशहूर शायर का जन्‍म 28 अगस्‍त 1896 को गोरखपुर में ही हुआ था. रघुपति सहाय ने आजादी की लडाई में भी अहम भूमिका निभाई. वह अंग्रेजों के घोर विरोधी बनकर उभरे थे. 1918 में रघुपति सहाय महात्‍मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में जेल भी गए थे. उनका चयन सरकारी सेवा के लिए भी हुआ था, लेकिन आजादी के आंदोलन में हिस्‍सा लेने के कारण उन्‍होंने अंग्रेजी शासन में सरकारी नौकरी नहीं की. बाद में वह कुछ समय तक कांग्रेस में भी रहे, लेकिन चुनाव से पहले वह कांग्रेस से कार्यमुक्‍त हो गए थे. आजादी के बाद पहले आमचुनाव में आचार्य कृपलानी ने एक पार्टी बनाई, जिसे किसान मजदूर प्रजा पार्टी का नाम दिया. इस पार्टी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शिब्‍बन लाल सक्‍सेना भी शामिल थे. वह रघुपति सहाय यानि फिराक गोरखपुरी के रिश्‍तेदार भी थे. सक्‍सेना ने रघुपति सहाय को पहले आमचुनाव में गोरखपुर से चुनाव लड़ने की सलाह दी, जिसके बाद वह चुनावी समर में उतर गए.

क्‍या हुआ आगे
रघुपति सहाय यानि फिराक गोरखपुरी का मुकाबला महंत दिग्‍विजयनाथ से था. चुनावी सभा के दौरान एक बार महंत दिग्विजयनाथ ने फिराक गोरखपुरी पर शराब पीने का आरोप लगा दिया, जिसके बाद फिराक गोरखपुरी ने उसी मैदान पर अपनी सभा की और मंच पर ही शराब की बोतल खोलकर दो तीन घूंट शराब पी. इसके पीछे फिराक गोरखपुरी ने अपना तर्क देते हुए कहा कि ‘सब तो बंद कमरे में शराब पीते हैं, मैं तो खुलेआम पीता हूं.’ फिराक यहीं नहीं रूके उन्‍होंने जनता से यह भी कहा कि ‘अगर नहीं पीने वाले को वोट देना हो, तो कांग्रेस के सिंहासन सिंह को वोट दे देना. वह शराब नहीं पीते.’ बहरहाल, इन सभी के बीच चुनाव हुए. जब चुनावी नतीजे आए, तो यहां से कांग्रेस के सिंहासन सिंह चुनाव जीत गए. कांग्रेस के सिंहासन सिंह को 57450 वोट मिले वहीं गोरक्षनाथ पीठ के महंत दिग्‍विजयनाथ को 25678 वोट मिले और दिलचस्‍प बात यह रही कि खुलेआम शराब पीने वाले रघुपति सहाय यानि फिराक गोरखपुरी को महज 9586 वोट मिले. इस चुनाव में फिराक साहब अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए और उसके बाद उन्‍होंने कभी चुनाव में जाने का नाम नहीं लिया. इस घटना के लिए उन्‍होंने सक्‍सेना को जिम्‍मेदार ठहराया. अंत में फिराक साहब का एक शेर याद आ गया-
‘आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में ‘फ़िराक़’
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए’.

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