जिसके नाम से कांपता था दिल्ली सल्तनत, अब उनकी लगेगी प्रतिमा, 10 किमी दूर से आएगी नजर
सोनाली भाटी /जालौर. राजस्थान का इतिहास वीर सपूतों की कहानियों और उनके बलिदान से भरा पड़ा है. ऐसे कई वीर सपूत हैं जिन्होंने अपनी प्रजा और राज्य के खातिर कम उम्र में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी. ऐसे ही एक वीर शासक हैं वीर वीरमदेव. ये मुगल शासक अलाउद्दीन खिलजी की सेना को भी खदेड़ चुके हैं. खिलजी की बेटी को वीरमदेव से प्यार हो गया था, उसने विवाह का प्रस्ताव भी रखा था, जिसे महाराजा कान्हड़देव ने ठुकरा दिया था.
अब वीरमदेव की कहानी को राजस्थान ही नहीं, देश का हर बच्चा जान सकेगा. क्योंकि, वीरमदेव की 18 फीट ऊंची और 3 टन वजनी प्रतिमा टुंकाली पहाड़ी पर स्थापित की जाएगाी. प्रतिमा को इतनी ऊंचाई पर ले जाना आसान नहीं है, ऐसे में सेना के हेलिकॉप्टर के जरिए इसे पहाड़ी पर पहुंचाया जाएगा.
ये है विशेषता बनाती है मूर्ति को खास
18 फीट ऊंची यह मूर्ति अष्टधातु से निर्मित है. वीरमदेव के एक हाथ में 5 फीट बड़ी 20 किलो वजनी अष्टधातु की तलवार है, राजपूती परिधानों में कवच, कुंडल, जूतियां पहने वीरमदेव का रौबिला रूप देखने को मिलेगा.
जान बचाकर दिल्ली भागी थी अलाउद्दीन की फौज
इतिहास के व्याख्याता संदीप जोशी ने बताया कि जालोर के महाराजा कान्हड़देव के पुत्र वीरम देव ने अपने पराक्रम से दिल्ली सल्तनत को हिला कर रख दिया था. अलाउदीन खिलजी की तुर्क सेना जब गुजरात स्थित सोमनाथ मंदिर को लूटने के लिए निकली तब उसने कान्हड़देव से जालोर से गुजरने के लिए रास्ता मांगा. तत्कालीन शासक ने साफ शब्दों ने इनकार कर दिया था. लौटते समय खिलजी की सेना जानबूझकर जालोर के रास्ते आई. जालोर और तुर्क सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में अलाउद्दीन की फौज जान बचाकर दिल्ली भागी थी. कान्हड़देव की सेना का नेतृत्व उनके पुत्र वीरमदेव ने किया था.
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FIRST PUBLISHED : April 3, 2024, 14:12 IST