तपती गर्मी में बाबा सियाराम का हठ योग, आग की लपटों के बीच तपस्या करता देख हो जाएंगे हैरान
हाइलाइट्स
बाड़मेर की चिलचिलाती गर्मी में बाबा सियाराम करते हैं हठ योग
बाबा का कहना है कि 13 साल की उम्र में उन्होंने सन्यास ले लिया था
बाड़मेर. वैसे तो लू के थपेड़ों वाली गर्मी मई और जून के महीने में पड़ती है, लेकिन इस बार तो अप्रैल महीने में ही गर्मी की बढ़ती तपन ने लोगों को बेहाल कर दिया है. पाकिस्तान की सीमा से लगती सरहदी बाड़मेर जिले में तापमान 45 डिग्री तक पहुंच गया है. इस भीषण गर्मी में जहां दिन के समय तो पैर बाहर निकालना ही जान से हाथ धो बैठने के बराबर है, ऐसे में एक बाबा हठ पर अड़े हुए हैं. हठ की इंतेहा तो तब हो गई जब इस चिलचिलाती गर्मी में सिर पर आग जलाकर और चारों तरफ आग की लपटों के बीच यह बाबा हठ योग कर रहे हैं. जिले में इन दिनों भीषण गर्मी से पारा 45 डिग्री के पार पहुंच गया है. लोग तन झुलसा देने वाली भीषण गर्मी में घरों में कैद है लेकिन एक हठ योगी बाबा इन चिलचिलाती धूप में पहाड़ियों में हठ योग कर अपनी तपस्या कर रहे हैं.
बाड़मेर जिले के शिव मुंडी निवासी बाबा सियाराम मूल रूप से ओडिशा से ताल्लुक है. सियाराम दास करीब 12-13 साल पहले बाडमेर पहुंचे थे. वे 13 साल की उम्र में सन्यास ले चुके थे. उसके बाद बनारस में अपने गुरु सीताराम महाराज से उन्होनें दीक्षा ली. फिर बाडमेर के शिव मूंडी के नीचे उनके दादा गुरु ने एक आश्रम बनवाया. दादा गुरु ने भी 40 साल यहां रहकर तपस्या की थी. उन्होनें ही सियाराम महाराज को यहां बुलाया था.
बाबा सियाराम का दावा- 17 साल से कर रहे हठ योग
बाबा सियाराम बताते हैं कि करीब 17 साल से लगातार अप्रैल- मई की भीषण गर्मी में वे इसी तरह से हठ योग करते हैं, लेकिन इसे उन्होनें साध लिया है. अब तपती गर्मी उन्हें नहीं तपाती. वे ईश्वर की शरण में चले जाते हैं. हर दिन दोपहर में डेढ़ से दो घंटे तक उनका यह हठ योग जारी रहता है. बाबा सियाराम का कहना है कि हठयोग कोर्स में अनुष्ठान चार महीने में गर्मी के समय में किया जाता है. बाबा सियाराम के मुताबिक अग्नि तपस्या (साधना) में 6 कोर्स होते हैं. सभी कोर्स तीन-तीन साल के होते हैं.
बाड़मेर जिले के शिव मुंडी निवासी बाबा सियाराम मूल रूप से ओडिशा से ताल्लुक है. सियाराम दास करीब 12-13 साल पहले बाडमेर पहुंचे थे. वे 13 साल की उम्र में सन्यास ले चुके थे.
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पंच धूनी (3 साल), सप्त धूनी (6 साल), द्वादश धूनी(9 साल), चौरासी धूनी (12 साल), कोट धूनी(15 साल) और खपर धूनी (18 साल) होती है. अभी खपर धूनी चल रही है. इस अनुष्ठान में धूप से कोई लेना-देना नहीं होता है. जब तक जप करते हैं तब तक न तो गर्मी लगती है और न ही आग का तप लगता है.
लोगों का लगा रहता है तांता
साधु को देखने वाले भक्तों का भी तांता लगा रहा है. मंदिर परिसर में हर समय भजन-कीर्तन की आवाज सुनाई पड़ती है. जिले के इतिहास में पहली मर्तबा इस तरह की तपस्या को देखकर या सुनकर लोग आश्चर्यचकित हैं.
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