National

दास्तान-गो : ‘शिव राज्याभिषेक प्रयोग’, जिसके नतीजे में मुग़लिया सल्तनत हिल गई

दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक्ती तौर पर मौजूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्‌टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज…

—————–

साल 1674 का था वह. हिन्दू पंचांग के हिसाब से ज्येष्ठ का महीना. हालांकि किस्सा इससे यही कोई 10 साल पहले से शुरू करना बेहतर होगा. हिन्दुस्तान में दक्खन के पश्चिमी घाटों में शिवाजी भोंसले अपने मराठा लड़ाकों के साथ लगातार मुग़लों की नाक में दम किए हुए थे. इलाके के क़रीब 35 किलों पर कब्ज़ा कर चुके थे. इन क़ामयाबियों से मिले हौसले ने उन्हें मुग़लों के बड़े कारोबारी ठिकाने सूरत पर हमला करने के लिए उकसाया, जो उन्होंने किया भी. यह वाक़या हुआ 1665 का. सूरत पर हमला करने के बाद शिवाजी के मराठा लड़ाकों ने वहां मुग़लों का आसरा पाने वाले तमाम सेठ-महाजनों से बड़ी तादाद में धन वसूली की और वापस लौट गए.

यह तब के मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की अहम नस पर चोट थी गोया. बौखला गया इससे. बादशाह ने अपने सेनापति आमेर, राजस्थान के ‘मिर्ज़ा’ राजा जय सिहं की अगुवाई में 1,50,000 की फौज शिवाजी को काबू में करने के लिए रवाना कर दी. मुग़ल फौज ने शिवाजी के कब्जाए तमाम इलाकों पर अपना कब्ज़ा किया. भारी ख़ूंरेज़ी की, लूटपाट मचाई. कुछ हजार लड़ाकों को साथ लेकर मुग़ल फौज़ का सामना कर रहे शिवाजी को तब लगा कि उनकी मातहत अवाम के साथ मुग़लिया सेना द्वारा की जा रही ऐसी खूंरेज़ी और लूटपाट को रोकने का एक ही रास्ता बचा है अब. कि वे कोई समझौता कर लें, मिर्ज़ा राजा से. लिहाज़ा वही किया उन्होंने फिर.

शिवबा ने संदेश भिजवाया जय सिंह को. जय सिंह ख़ुद यही चाहते थे. सो, दोनों मिले पुरंदर किले में. जून की 11 तारीख़, 1665 का साल. क़रार हुआ. शिवाजी के हिस्से में उनके 12 किले आए. इन इलाकों से वे कर वसूल सकते थे. शिवाजी के आठ साल के पुत्र संभाजी को पांच हजारी मनसबदार बनाया गया. यानी वह इतनी फौज़ के मुखिया के तौर पर मुग़ल सल्तनत के सहयोगी सेनानायक तय किए गए, जिन्हें हुक़्म मिलते ही अभियानों पर जाना था. जबकि शिवाजी को अपने जीते हुए 23 किले मुग़लिया सल्तनत को सौंपने पड़े. वे बीजापुर और गोलकुंडा पर भी अधिकार चाहते थे. मिर्ज़ा राजा ने उन्हें भरोसा दिलाया कि मुग़ल बादशाह यह मंज़ूरी दे सकते हैं.

SHIVAJI, SHIVAJI News, SHIVAJI latest news, SHIVAJI Today News

शिवाजी के हिस्से में उनके 12 किले आए.

बदले में शिवाजी को दो काम करने थे. एक- मुग़ल बादशाह से ख़ुद आगरा जाकर मिलना था. दूसरा- मुग़लिया सल्तनत को 40 लाख की रकम (उस वक़्त की मुद्रा में) देनी थी. शिवाजी थोड़े संकोच के साथ इसके लिए राजी हुए. मराठा दरबार में इस पर चर्चा हुई. वहां भी ज़्यादातर सलाहकारों की राय थी कि शिवाजी को बादशाह से मिलना चाहिए. लिहाज़ा शिवाजी अपनी मां जीजाबाई को राज्य का संरक्षक बनाकर संभाजी और अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों को साथ लेकर आगरा के लिए निकल पड़े. वहां पहुंचे तो मिर्ज़ा राजा जय सिंह के बेटे राम सिंह और सल्तनत के अन्य ओहदेदार मुख़लिस ख़ां ने शिवाजी का स्वागत किया. यह उनके लिए एक तरह पहला झटका था.

तारीख़ 12 मई, साल 1666, जब औरंगज़ेब के दरबार में शिवाजी पेश हुए. दीवान-ए-आम में शिवाजी ने बादशाह को तीन बार सलाम किया. लेकिन औरंगज़ेब ने अनदेखी कर दी. फिर शिवाजी की ओर से 2,000 सोने की मोहरें बतौर ‘नज़र’ पेश की गईं. इसके अलावा 6,000 की रकम ‘निसार’ के तौर पर पेश की गई. बादशाह ने इसे सिर्फ़ सिर हिलाकर ही क़बूल किया. इसके बाद अपने एक अर्दली के कान में कुछ कहा. उसे सुनने के बाद उस अर्दली ने शिवाजी को उनके पुत्र के साथ दरबार में बहुत पीछे की तरफ खड़ा कर दिया. यह पांच हजारी मनसबदारों की क़तार थी, जो असल में हैसियत के हिसाब से उस वक़्त संभाजी थे. यह बर्ताव शिवाजी को बेइज़्ज़जी लगा अब.

SHIVAJI, SHIVAJI News, SHIVAJI latest news, SHIVAJI Today News

12 मई, 1666 को औरंगज़ेब के दरबार में शिवाजी पेश हुए.

राम सिंह शिवाजी के साथ ही थे. आपा खो रहे शिवाजी ने उनसे सवाल किया, ‘मुझे किन लोगों के बीच खड़ा किया गया है.’ राम सिंह ने बताया, ‘ये पांच हजारी मनसबदारों की क़तार है.’ इतना सुनते ही शिवाजी के सब्र का बांध टूट गया. वे ऊंची आवाज़ में बोले, ‘मेरा लड़का और मेरा नौकर तक पांच हजारी है. क्या मुझे इस तरह बेइज्ज़त करने के लिए यहां बुलाया गया है.’ इसी तेवर में कुछ और सवाल-ज़वाब चल ही रहे थे कि दरबार में बादशाह की आवाज़ गूंजी, ‘यह शोर कैसा?’ जवाब राम सिंह ने दिया, ‘माफ़ी हुज़ूर, शेर जंगल में रहता है. यहां की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है.’ ‘गुलाब जल छिड़कवाइए उन पर. ठंडक मिल जाए मेहमानख़ाने भिजवा दिया जाए.’

बादशाह ने राम सिंह का इशारा समझकर मज़ाकिया लहज़े में हुक्म दिया था. तिलमिला गए थे इससे शिवाजी. राम सिंह बाद में उन्हें आगरा के बाहरी इलाके में मौज़ूद मेहमानख़ाने (जयपुर पैलेस) ले गए. लेकिन यहां बादशाह ने शिवाजी को उनके पूरे लश्कर समेत नज़रबंद कर लिया. वक़्त की नज़ाक़त भांप कुछ वक़्त वहीं रहे. फिर मौका देख पुत्र और सभी साथियों के साथ वहां से भाग निकले. अगस्त 19, 1666 का तारीख़ थी. शिवाजी भेष बदलकर मथुरा, प्रयाग, बनारस, पुरी के रास्ते गोंडवाना और गोलकुंडा पार कर रायगढ़ के सुरक्षित किले में जा पहुंचे. इस घटना ने शिवाजी और उनके समर्थकों के ज़ेहन में एक बात साफ कर दी थी. जब तक शिवाजी ‘अभिषिक्त राजा’ नहीं हो जाते, उनकी और उनके राज्य की वह गरिमा स्थापित नहीं होगी, जिसका वे लक्ष्य लेकर चले हैं.

लिहाज़ा, गौरव की पुनर्स्थापना के बाद ‘शिव-राज्याभिषेक’ तय हुआ. इसे पहले अगले तीन-साढ़े तीन साल के भीतर शिवाजी ने वे तमाम किले मुग़लिया सल्तनत से वापस छीने, जो पुरंदर की संधि के तहत उन्हें छोड़ने पड़े थे. इसके बाद सुदिन, सुघड़ी, मुहुर्त वग़ैरह देखकर राज्याभिषेक की तिथि तय की गई. ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी. अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से छह जून की तारीख, 1674 का साल. ईशान्ययज्ञ, ग्रहयज्ञ, नक्षत्रयज्ञ की तिथियां तय हुईं. काशी विश्वनाथ के नामी मराठी ब्राह्मण आचार्य विश्वेश्वर भट़ट (गागा भट्‌ट) ने राज्याभिषेक की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली. बताते हैं, वे कोई विवाद निपटाने के लिए उस वक़्त कोंकण के इलाके में पहले से ही मौज़ूद थे.

इधर, कहा जाता है कि शिवाजी के राज्याभिषेक के लिहाज़ से भी कुछ लोगों को आपत्ति थी. इनमें ब्राह्मण थे और क्षत्रिय भी. मुख्य रूप से आपत्तियां शिवाजी की जाति से संबंधित थीं. ऐसे में, गागा भट़्ट ही इस विवाद को निपटाने के लिए भी, सबसे उपयुक्त विशेषज्ञ माने गए. उन्होंने शिवाजी की वंशावली बनाई. पौराणिक दृष्टांत, अपने ज्ञान के आधार पर सिद्ध किया कि शिवबा क्षत्रिय कुल से ताल्लुक रखते हैं. उनका राज्याभिषेक हो सकता है. इसके बाद उनके ही नेतृत्त्व में राज्याभिषेक की विधियां शुरू हुईं. सुख, संपत्ति, धन, ऐश्वर्य के प्रतीक ‘इंद्रासन’ के समान गूलर के वृक्ष की लकडी का विशेष सिंहासन बनवाया गया. सभी तीर्थों से जल और मिट्‌टी मंगवाई गई.

तय तिथि पर शिवाजी को पंचामृत स्नान कराया गया. इसके बाद विधि-विधान से उन्होंने नए वस्त्र, नया छत्र, राजदंड, नया मुकुट धारण किया. इस तरह शिवाजी का ‘एंद्रेय राज्याभिषेक’ हुआ. कहते हैं, ये आयोजन पूरे छह दिनों तक चला, जिसके बाद सबके लाड़ले शिवबा अब ‘छत्रपति शिवाजी’ कहलाने लगे. हालांकि शिवाजी का काम अभी पूरा नहीं हुआ था. क्योंकि वे सिर्फ राजा नहीं बनना चाहते मुग़ल सल्तनत के विकल्प की तरह ‘हिन्दवी स्वराज्य’ का खाका सामने रखना चाहते थे. सही अर्थों में ‘स्वराज्य’ की नींव रखना चाहते थे. लिहाज़ा, सबसे पहले उन्होंने अपने राज्य में अरबी, फारसी, उर्दू की जगह संस्कृत, मराठी को आधिकारिक भाषा बनाया. प्रयोग शुरू किया.

यही नहीं, रघुनाथपंत हनुमंते को ख़ास तौर पर इस काम के लिए नियुक्त किया कि वे प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन करें. प्रचलित उर्दू, अरबी, फारसी के शब्दों के संस्कृत, मराठी और देवनागरी के विकल्प तलाशें और सुझाएं. ‘शुक्रनीति’ में वर्णित अष्प्रधान मंडल नियुक्त किया. इनमें पेशवा (प्रधानमंत्री), सेनापति, पंडितराव (न्यायाधीश) प्रमुख हुए. अपनी मुद्रा चलाई. इसे नाम दिया गया, ‘शिवराई.’ हिज़्री कैलेंडर की जगह अपना कैलेंडर चलाया. इसे ‘शिव-शक’ कहा गया. अपनी कर-प्रणाली स्थापित की. इसके तहत ‘चौथ’ और ‘सरदेशमुखी’ जैसे कर वसूलने के न्याय और युक्तिसंगत तरीके प्रचलन में लाए.

इस तरह लगभग 10 वर्षों तक (राज्याभिषेक से पहले 1670 से ही शासन-व्यवस्था को औपचारिक आकार देना शुरू कर दिया था, जो निधन के समय 1680 तक जारी रहा) विधिवत् शासन रहा शिवाजी का. लेकिन इस दौरान उन्होंने जिस तरह के प्रयोग किए, उसने मुग़लिया सल्तनत को हिलाकर रख दिया. उसके लिए गंभीर चुनौती पेश की और हिन्दुस्तान के सामने ‘हिन्दवी स्वराज्य’ का रास्ता खोल दिया, जिसे अगले मराठा शासकों ने आगे बढ़ाया. उसे विस्तार दिया.

Tags: Chatrapati Shivaji, Hindi news, News18 Hindi Originals

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj