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पाकिस्तान बंटवारे में कुर्सी-कमोड तक ले गया, पर एक चीज को हाथ तक नहीं लगाया

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ. आजादी से पहले ही बंटवारे पर मुहर लग गई. 15 अगस्त में अभी करीब ढाई महीने बचे थे. इससे इससे पहले ही बंटवारे के सारे कागजात तैयार कर लिए जाने थे. विभाजन की जिम्मेदारी दो लोगों को सौंपी गई. दोनों पेशे से वकील थे और शेवरले से दफ्तर जाया करते थे. इनमें से एक हिंदू था तो दूसरा मुसलमान. चौधरी मुहम्मद अली को पाकिस्तान की तरफ से बंटवारे की शर्तें तय करने की जिम्मेदारी मिली. तो एचएम पटेल भारत की तरफ ये जिम्मा उठा रहे थे.

मशहूर इतिहासकार डॉमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स अपनी किताब ”फ्रीडम एट मिडनाइट” में लिखते हैं कि सबसे ज्यादा तू तू- मैं मैं पैसे के बंटवारे को लेकर हुई. अंग्रेजों ने यूं तो भारत का खून चूस लिया था, लेकिन 5 अरब डॉलर का कर्ज भी छोड़ दिया था. यह कर्ज लड़ाई के दौरान चढ़ा था. ऐसे में यह भी तय करना था कि आखिर बंटवारे के बाद अंग्रेजों का कर्ज चुकाएगा कौन?

इसके अलावा नगद धन का भी बंटवारा होना था. सरकारी बैंकों में जो पैसा जमा था, रिजर्व बैंक के तहखाना में जो सोने की ईंटें थीं, उन सब का बंटवारा होना था. समस्या इतनी जटिल हो गई कि इसे हल करने के लिए पटेल और मुहम्मद अली को सरदार पटेल के घर के एक कमरे में बंद कर दिया गया और उनसे कहा गया कि जब तक किसी समझौते पर नहीं पहुंच जाते, तब तक वहीं रहना पड़ेगा.

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कैसे हुआ नकदी और कर्ज का बंटवारा?
आखिरकार दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि बैंक में मौजूद नगद रकम व अंग्रेजों से मिलने वाले पौंड का 17.5% पाकिस्तान को मिलेगा और भारत के कर्ज का 17.5% प्रतिशत पाकिस्तान चुकाएगा. दोनों ने यह भी तय किया कि भारत की चल संपत्ति का 80 फीसदी भारत को मिलेगा और 20% पाकिस्तान के हिस्से जाएगा. सबसे ज्यादा झगड़ा भारत की लाइब्रेरी में किताबों को लेकर हुआ. एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका का बंटवारा इस तरह किया गया कि एक खंड भारत तो दूसरा खंड पाकिस्तान (Pakistan) के हिस्से आया और फिर तीसरा भारत (India) को मिला.

शब्दकोष के अध्याय फाड़ दिए गए. आधे भारत के हिस्से आए और आधे पाकिस्तान के. जिस किताब की सिर्फ एक प्रति थी, उसके बारे में यह फैसला करना पड़ा कि यह आखिर किस राज्य के काम का है. कभी-कभी तो फैसला करने में हाथापाई तक की नौबत आ जाती.

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कुर्सी-कमोड तक लिया पर शराब नहीं
बंटवारे के दौरान मेज, कुर्सी, आलमारी, हैंगर, टेबल लैंप, पंखे, कलमदान, सोफा सेट, कमोड जैसी चीजों तक का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान हर चीज के लिए लड़ने को तैयार था, एक चीज ऐसी थी, जिसके बंटवारे की बात आती तो पाकिस्तान तुरंत पीछे हट जाता. वह चीज थी शराब. चूंकि पाकिस्तान मुस्लिम मुल्क था, ऐसे में वहां शराब हराम थी, इसलिये शराब का बंटवारा नहीं किया. सारी शराब भारत को मिली. इसके बदले में किस्तान के हिस्से में कुछ रकम डाल दी गई.

कैसे हुआ वायसराय की बग्घी का बंटवारा?
विभाजन (India Partition) के दौरान सबसे ज्यादा झगड़ा वायसराय भवन के अस्तबल को लेकर हुआ. झगड़ा 12 घोड़ागाड़ी को लेकर था. ये घोड़ा गाड़ी सोने और चांदी की बने थे और साम्राज्यवादी सत्ता की शान शौकत के प्रतीक थे. भारत के हर वायसराय और हर शाही मेहमान को इन्हीं में से एक घोड़ा गाड़ी पर बैठाकर राजधानी दिल्ली की सैर कराई जाती थी.

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6 घोड़ा गाड़ी सोने की थी और 6 चांदी की. अफसरों ने तय किया कि उनके सेट को तोड़ना बेवकूफी होगी और तय किया गया कि सोने का सेट किसी एक को दे दिया जाए और चांदी का किसी एक को, लेकिन मामला फंस गया कि इस बात का फैसला कैसे होगा कि कौन सा सेट किसको मिलेगा.

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जब उछाला गया चांदी का सिक्का
आखिरकार माउंटबेटन (Lord Mountbatten) के एडीसी लेफ्टिनेंट कमांडर पीटर होज ने सुझाव दिया की सिक्का उछाल कर इस बात का फैसला कर लिया जाए कि इन शाही गाड़ियों का कौन सा सेट किस देश को मिलेगा. पाकिस्तान बॉडीगार्ड के हाल ही में नियुक्त कमांडर मेजर याकूब खान और वायसराय के बॉडीगार्ड के कमांडर मेजर गोविंद सिंह वहीं खड़े थे. चांदी का सिक्का उछाला गया और गोविंद सिंह ने चिल्लाकर ‘पुतली’…जब सिक्का फर्श पर गिरा तो गोविंद सिंह खुशी से उछल पड़े. भाग्य ने फैसला कर दिया था कि सोने की गाड़ी भारत के हिस्से आएगी.

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