बालिका वधु से डॉक्टर बनने तक की इमोशनल कहानी, लॉकडाउन में बदली जिंदगी लेकिन हार नहीं मानी | dr. rupa yadav success story
बचपन से था जज्बा
बाकि बच्चों की तुलना में रूपा बेहद अलग थी। उनकी शादी 8 साल में हो गई लेकिन गौने तक वह अपने पिता जी के घर ही थी। गणित में वह इतनी अच्छी थी कि शिक्षक उसे ऊंची कक्षाओं में ले जाकर बच्चों को मिसालें दिया करते थे। ऐसे में रूपा के पिता मालीराम यादव को यह पता चल गया था कि उनकी बेटी बाकियों से अलग है। वह रूपा को खूब पढ़ाना-लिखाना चाहते थे लेकिन अपने बड़े भाई के सम्मान के आगे चुप थे। पिता रूपा को रोज अपने साथ खेतों में ले जाते और बैठकर चुपचाप पढ़ने को कहते। इस तरह रूपा ने 10वीं में 86 प्रतिशत अंक लाकर परिवारवालों का नाम रौशन कर दिखाया।
ससुरालवालों ने निभाया वचन
गौना होने के बाद रूपा के ससुरालवालों ने पिता को दिया वचन बखूबी निभाया। ताने सुनकर, उधार लेकर और दिन-रात मेहनत कर रूपा को आगे पढ़ाया। 12वीं में भी उसके अच्छे अंक आए, जिसके बाद उन्होंने नीट की तैयारी करने का फैसला लिया। वे एक एग्जाम में बैठीं, उस इंस्टीट्यूट ने रूपा के अच्छे नंबर देखकर फ्री में नीट की कोचिंग देने का फैसला किया। इसके साथ ही साथ रूपा ने बीएससी में भी एडमिशन ले लिया।
स्ट्रगल भरा रहा सफर
नीट के पहले ही प्रयास में रूपा की ऑल इंडिया रैंक 22000 आई। ससुराल वालों ने उन्हें कोटा कोचिंग के लिए भेजने का फैसला लिया ताकि परिवार से दूर रहकर वो सारा समय अपनी पढ़ाई को दे पाएं। इस बीच ससुराल में पैसों की किल्लत हुई, उन्होंने उधारी लेकर पढ़ाया। उनके पति और जीजा ने एक्ट्रा काम किया और रूपा की पढ़ाई जारी रखी।
लोग अलग नजरिए से देखते थे
लोग अकसर चौंककर पूछ लेते कि तुम बालिका वधु बनी, क्यों…ऐसे कई सवालों का सामना करना पड़ा। अच्छे दोस्तों की वजह से सफर खुशनुमा बना लेकिन चुनौतियां भी बहुत थी। मेरी तीन दोस्तों ने हर वक्त मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया है और मुझे संभाला है। जब मैं घर से दूर कोटा में पढ़ाई कर रही थी तो इन तीनों ने ही मुझे आगे बढ़ने की ताकत दी।
लॉकडाउन में जिंदगी ने ली करवट
रूपा लॉकडाउन में घर आ गई, लेकिन उसने पढ़ाई जारी रखी। इस बीच उसने एक बच्ची को जन्म दिया। रूपा की बिटीया महज 25 दिन की थी, तब उनका प्री फाइनल का पेपर था। रूपा की जेठानी और सास ने उनके बच्चे को संभाला और हर मुश्किल पार करते हुए उन्होंने अच्छे नंबरों से परीक्षा पास की। समय धीरे-धीरे गुजरता चला गया। बेटी के पहले जन्मदिन पर रूपा का फाइनल एग्जाम था। समय पर घर पहुंचने के लिए रूपा ने 3 घंटे का पेपर डेढ़ घंटे में पूरा किया, तुरंत बस पकड़ी और घर आ गई। लेकिन रूपा ने अपनी ममता को भी बखूबी निभाया और करियर की राह में आगे बढ़ती गईं।
घर और करियर दोनों एक बराबर
आज रूपा अपने परिवार और करियर दोनों को बखूबी संभाल रहीं हैं। रूपा चाहती हैं कि वो अपने गांव में खुद का एक हॉस्पिटल खेलें ताकि स्थानीय लोगों की सहायता की जा सके।