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बिच्छू की तरह डंक मारती है ये पहाड़ी घास लेकिन फायदे जान हो जाएंगे हैरान, स्वाद में भी लाजवाब

सोनिया मिश्रा/ चमोली. बिच्छू घास उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में पाई जाने वाली घास है, जिसे छूने से सभी डरते हैं. वहीं दूसरी ओर यह स्वादिष्ट होने के साथ कई पौष्टिक तत्वों से भी भरपूर होती है. इसकी तासीर गर्म होती है, इसलिए सर्दियों में इसकी सब्जी और साग लोग खूब पसंद करते हैं. कंडाली यानि बिच्छू घास को कई नामों से जाना जाता है. जहां गढ़वाल में इसे कंडाली कहते हैं, तो वहीं कुमाऊं में इसे सिंसौण कहा जाता है. अगर गलती से भी यह शरीर के किसी हिस्से पर लग जाती है, तो इससे तेज झनझनाहट शुरू हो जाती है. सब्जी के अलावा अब धीरे धीरे अब इस घास की चाय, सूप भी बनाया जाता है.

वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. उमेश उपाध्याय बताते हैं कि अर्टिकाकेई वनस्पति परिवार के इस पौधे का वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है. इसकी पत्तियों पर छोटे-छोटे बालों जैसे कांटे होते हैं. पत्तियों के हाथ या शरीर के किसी अन्य अंग में लगते ही उसमें झनझनाहट शुरू हो जाती है, जो कंबल से रगड़ने से दूर हो जाती है. वह बताते हैं कि इसका असर बिच्छू के डंक से कम नहीं होता है, इसीलिए इसे बिच्छू घास कहा जाता है.

इन रोगों के इलाज में होता है बिच्छू घास का प्रयोग
डॉ. उमेश उपाध्याय बताते हैं कि औषधीय गुणों से भरपूर कंडाली का खास महत्व है. बिच्छू घास का प्रयोग पित्त दोष, शरीर के किसी हिस्से में मोच, जकड़न और मलेरिया के इलाज में तो होता ही है, इसके बीजों को पेट साफ करने वाली दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. बिच्छू घास में काफी मात्रा में आयरन होता है. इस पर जारी परीक्षण सफल रहे, तो उससे जल्द ही बुखार ठीक करने में इसका उपयोग होगा. इसमें विटामिन ए, सी आयरन, पोटैशियम, मैंगनीज और कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इसको प्राकृतिक मल्‍टी विटामिन भी कहा जाता है. इसके कांटों मे मौजूद हिस्टामीन की वजह से छुने के बाद जलन होती है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और हेल्थ बेनिफिट रेसिपी की सलाह, हमारे एक्सपर्ट्स से की गई चर्चा के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, न कि व्यक्तिगत सलाह. हर व्यक्ति की आवश्यकताएं अलग हैं, इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही, कोई चीज उपयोग करें. कृपया ध्यान दें, Local-18 की टीम किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगी.

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