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महाविकास अघाड़ी के वो 3 ‘खलनायक’, जिनके कारण पार्टियों में बगावत के लगे आरोप!

अमित मोदक
मुंबई: अशोक चव्हाण, मिलिंद देवड़ा, बाबा सिद्दीकी एक-एक करके कई नेता कांग्रेस छोड़ रहे थे. अब सवाल पूछा जा रहा है कि नाना पटोले क्या कर रहे हैं. क्या कांग्रेस के भीतर गुटबाजी के लिए नाना जिम्मेदार हैं? क्या नाना कांग्रेस नहीं संभाल सकते? क्या नाना का नेताओं से कोई संवाद नहीं है? क्या नाना पटोले कांग्रेस के लिए खलनायक हैं?

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक चव्हाण ने बीजेपी की शरण ले ली है. सवाल पूछा जा रहा है कि क्या अशोक चव्हाण के इस्तीफे तक प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले को इसकी जानकारी नहीं थी? एक साल से अशोक चव्हाण की नाराजगी की खबरें आ रही हैं तो क्या उनसे कोई बातचीत नहीं हुई? या फिर क्या इस आरोप में कोई सच्चाई है कि अशोक चव्हाण विभिन्न घोटालों के कारण भाजपा में चले गए?

दरअसल, जब से महाराष्ट्र कांग्रेस नाना पटोले के हाथ में गई, तब से उनके प्रति चव्हाण में नाराजगी थी. बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुए नाना को पार्टी की कमान सौंपी गई. वहीं, मोदी लहर में चुने गए अशोक चव्हाण को नजरअंदाज कर दिया गया. इसके बाद से चव्हाण परेशान थे. बालासाहेब थोराट के बाद वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर नाना पटोले को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाना कई लोगों को पसंद नहीं आया.

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष निशाने पर
नाना पटोले एक आक्रामक नेता के तौर पर जाने जाते हैं. आरोप है कि वे बीजेपी पर हमला तो करते हैं लेकिन साथ ही कांग्रेस नेताओं के खिलाफ भी बोलते हैं. महाराष्ट्र में नाना पटोले बनाम नितिन राऊत, नाना पटोले बनाम विजय वड्डेट्टीवार विवाद देखने को मिला.

आरोप लगे कि नाना अपने ही नेताओं को मुसीबत में डाल रहे हैं. आरोप यह भी है कि पटोले के कई फैसले कांग्रेस के खिलाफ जा रहे हैं. इसका उदाहरण नासिक स्नातक चुनाव है. सत्यजीत तांबे और उनके पिता को उम्मीदवार बनाने का विचार नाना और कांग्रेस के सामने आया. सत्यजीत तांबे बीजेपी के समर्थन से चुने गए थे. उस चुनाव के बाद नाना और बालासाहेब थोराट के बीच विवाद चरम पर पहुंच गया. वहीं, आशीष देशमुख ने सीधे हाईकमान को पत्र लिखकर पटोले की शिकायत की थी.

उन्होंने आरोप लगाया गया कि विभिन्न गुटों के कारण विदर्भ में कांग्रेस कमजोर हो रही है. उन्होंने सीधे तौर पर नाना को हटाने की मांग कर डाली. नाना से नाराजगी की चर्चा सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि महाविकास अघाड़ी में भी थी और ये चर्चा नाना के विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफे के कारण शुरू हुई. महाविकास अघाड़ी के नेता अब भी कहते हैं कि उनकी सरकार के पतन में उनका फैसला जिम्मेदार था. अगर नाना विधानसभा अध्यक्ष बने रहते तो बीजेपी और शिंदे के लिए सरकार बनाना आसान नहीं होता. नाना पटोले के उस फैसले पर आज भी नेता खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं.

कुल मिलाकर यह आरोप लगाया जा रहा है कि कांग्रेस में फसाद के लिए विभिन्न पार्टियां जिम्मेदार हैं. नाना पटोले को खलनायक बनाया जा रहा है. उधर, कांग्रेस का आरोप है कि अशोक चव्हाण ने जांच के डर से दबाव में आकर पार्टी छोड़ी है.

राउत और सीनियर पवार
शिवसेना, एनसीपी और अब कांग्रेस टूट चुकी है. इस हर टूट में किसी न किसी को खलनायक घोषित किया गया था. शिवसेना के समय संजय राउत को खलनायक घोषित किया गया था. आरोप था कि संजय राउत उद्धव ठाकरे और नेताओं के बीच फैसला कर रहे थे. राउत और शरद पवार की नजदीकियां भी कई लोगों को रास नहीं आ रही थीं.

अजित पवार ने शरद पवार को खलनायक बताया. अजित पवार ने एनसीपी की कमान उन्हें न देकर सुप्रिया सुले को दिए जाने से नाराज थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि एनसीपी के लिए इतने साल बिताने के बाद भी वह शरद पवार के बेटे नहीं थे इसलिए उनके साथ अन्याय हुआ. राज्य में तीन प्रमुख राजनीतिक विभाजनों के लिए तीन खलनायकों की पहचान की गई. संजय राउत और शरद पवार काम पर वापस लौट आए हैं.

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