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मासिक शुरू होने पर क्या हिंदू नाबालिग लड़कियां बिना मां-बाप की अनुमति के शादी कर सकती हैं? सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई

नई दिल्ली. देश में इस समय नाबालिग लड़कियों की शादी (Marriage of Minor Girls) की उम्र को लेकर बहस छिड़ी हुई है. पिछले दिनों देश की कई उच्च न्यायलयों ( High Courts) के द्वारा एक समान मामलों पर दिए अलग-अलग फैसलों ने इस बहस को और बढ़ा दिया है. ऐसे में हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई (Hindu, Muslim, Sikh and Christian) सहित कई धर्मों के नाबालिग लड़कियों की एक उम्र (Age) करने की मांग फिर से उठने लगी है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में 9 नवंबर को इस विषय पर अहम सुनवाई होने वाली है. बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने पिछले दिनों कानूनी रूप से विवाहित एक जोड़े को साथ रहने से वंचित नहीं रखने का फरमान सुनाया था. हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य जानबूझकर एक नाबालिग विवाहित जोड़े के निजी दायरे में प्रवेश नहीं कर सकता है और न ही अलग कर सकता है. हाईकोर्ट ने यह आदेश बिहार की एक मुस्लिम नाबालिग दंपत्ति की याचिका पर सुनाया. दोनों ने मां-बाप के अनुमति के बिना ही मुस्लिम रीति-रिवाज से निकाह किया था. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या हिंदू मैरिज एक्ट में भी नाबालिग को अपने मां-बाप की अनुमति के बिना शादी करने का अधिकार है और क्या यह शादी वैध होगी?

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले दिनों कहा था कि मुस्लिम कानून के तहत, मासिक धर्म (यौवनारंभ) के बाद कोई लड़की अपने माता-पिता की सहमति के बिना भी शादी कर सकती है. साथ ही उसे अपने पति के साथ रहने का अधिकार है, भले ही वह 18 वर्ष से कम उम्र की क्यों न हो. हाईकोर्ट ने विवाहित जोड़े की रक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार को आदेश जारी किया था.

Punjab and Haryana High Court

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने नाबालिग मुस्लिम लड़कियों की शादी को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

देश में नाबालिग लड़कियों की शादी को लेकर बहस
गौरतलब है कि इसी तरह का एक और मामला पिछले महीने ही पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के सामने भी आया था. हाईकोर्ट ने तब नाबालिग मुस्लिम लड़कियों की शादी को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया. पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘15 साल से अधिक उम्र की मुस्लिम लड़की अपनी पसंद से किसी भी व्यक्ति से शादी कर सकती है और उसकी यह शादी वैध मानी जाएगी. न्यायालय ने 16 वर्षीय एक लड़की को अपने पति के साथ रहने का अधिकार है’

एक ही तरह के मामले में फैसले अलग-अलग
हाईकोर्ट के इन दोनों फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. कानून के कुछ जानकारों की मानें तो बाल विवाह कानून के तहत ऐसी शादी पर रोक नहीं लगाई जा सकती. 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की ने अपनी इच्छा से शादी की है तो इसे गैरकानूनी नहीं ठहराया जा सकता. हालांकि, राज्य के वकील ने याचिका का विरोध किया और कहा कि वह नाबालिग है, इसलिए उसे आशियाना होम में रखा जा रहा है. राज्य के वकील ने याचिका खारिज करने की गुहार लगाई थी.

Delhi High Court, दिल्ली हाई कोर्ट,

मुस्लिम कानून के तहत मासिक धर्म के बाद लड़की अपने माता-पिता की सहमति के बिना भी शादी कर सकती है- HC (News18)

नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी भी अमान्य?
लेकिन, इसी तरह का एक और मामले में 31 अक्टूबर 2022 को कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक अलग ही फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने कहा कि एक नाबालिग मुस्लिम लड़की की शादी अमान्य मानी जाएगी, फिर चाहे इसे इस्लाम धर्म ने अपने नियमों में जायज ही क्यों न ठहराया हो. हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा एसलिए क्योंकि नाबालिग रहने पर शादी कराना ‘यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम’ (POCSO) के प्रावधानों का उल्लंघन है.

POCSO एक्ट में क्या है प्रावधान
अदालत ने कहा कि पॉस्को एक्ट एक स्पेशल एक्ट है, इसलिए ये हर व्यक्तिगत कानून को ओवरराइड करता है. पॉक्सो अधिनियम के मुताबिक, किसी भी महिला के यौन गतिविधियों में शामिल होने की कानूनी उम्र 18 साल है. 18 साल से पहले शादी एक गैर-कानूनी गतिविधि है.

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हाईकोर्ट के इन दोनों फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. (News18)

क्या कहते हैं जानकार
सुप्रीम कोर्ट के वकील राहुल कुमार कहते हैं, हाल के दिनों में इस तरह के कई मामले सामने आए हैं. इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होने वाली है. लेकिन, भारत में अलग-अलग धर्म के लड़के-लड़कियों की शादी के लिए अलग-अलग कानून हैं, लेकिन 3 तरह के कानून महत्वपूर्ण हैं. इन तीनों कानून में लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की उम्र 21 साल ही है. इसके अलावा मुस्लिम लड़के-लड़कियों की शादी उनके मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार होती है, जिसके बारे में संसद से कोई कानून नहीं बना है. हिन्दुओं के लिए हिन्दू विवाह कानून 1955 है. इस कानून कई सेक्शन में जैन, बौद्ध और सिख धर्म की भी शादियां होती हैं. इसके अलावा सिखों की शादी आनंद कारज विवाह अधिनियम 2012 के तहत भी होती है. ईसाइयों की शादी के लिए के लिए क्रिश्चयन मैरिज एक्ट 1872 है. स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 भी है. इसके तहत दो धर्मों या किसी भी धर्मों के लोग अपनी शादी रजिस्टर करा सकते हैं. इस कानून के मुताबिक भी शादी के लिए लड़की की न्यूनतम उम्र 18 साल और लड़कों की 21 साल होनी चाहिए.

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राहुल कुमार आगे कहते हैं, भारत में बड़े पैमाने पर नाबालिगों की भी शादियां होती हैं. देश में लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र बढ़ाने पर विवाद हैं. इसलिए भारत में लड़के और लड़कियों की शादी की उम्र को एक करने की बजाय सभी धर्म के लड़के और लड़कियों की शादी की उम्र एक जैसी करने की पहल की बात उठ रही है. क्योंकि नाबालिग नाबालिग की शादी होने के बाद बच्चे होने पर कोर्ट उनको अलग नहीं कर सकता. इसलिए हाल के दिनो में कई मामले ऐसे आए हैं, जिसमें लड़की ने यौवन हासिल कर लिया था और उसने 15 साल की उम्र पार कर ली थी. हिंदु रीति-रिवाज में भी और मुस्लिम कानून के तहत भी नाबालिग की शादियां जायज मानी जाती है.

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