Rajasthan

यहां के मंदिरों में नहीं चढ़ा…आधुनिक घंटियों का रंग, आरती के समय हाथ से बजाई जाती है झालर

मोहित शर्मा/करौली. देशभर के अधिकांश छोटे व बड़े मंदिरों में आरती के समय बजाई जाने वाली घंटियों में इलेक्ट्रॉनिक घंटियों का प्रचलन समय के साथ-साथ तेजी से देखा जा सकता है. लेकिन राजस्थान की धार्मिक नगरी करौली के सभी मंदिरों में आज भी आरती के समय हाथ से बजाई जाने वाली घंटी ‘झालर’ की ध्वनि ही सुनाई देती है.

सबसे अहम बात तो यह है कि यहां के अधिकांश मंदिरों में इलेक्ट्रॉनिक घंटीयो नें अपनी पहुंच तो बना ली. लेकिन कहीं ना कहीं यहां के मंदिरों में आज भी बजने वाली हाथ की झालर के आगे बिजली से स्वसंचालित और बिना किसी मेहनत के बजने वाली यह इलेक्ट्रॉनिक घंटियां यहां के सभी मंदिरों में नाकामयाब साबित हुई है. क्योंकि यहां पर हाथों से बजाई जाने वाली झालर के स्वर में राधा कृष्ण की ध्वनि गुंजायमान और इसकी आवाज भी किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है.

भगवत सेवा के अनुसार स्वयं बजानी चाहिए घंटियां

जन-जन के आराध्य देव भगवान मदन मोहन के मंदिर में स्थित किशोर राय जी के मंदिर के पुजारी प्रदीप गोस्वामी बताते हैं कि आज के समय में हर व्यक्ति के अंदर क्षमता कम हो गई है. जिससे मंदिरों में आधुनिक घंटीयो का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है. लेकिन इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर कभी भी आरती के लिए निर्भर नहीं होना चाहिए. क्योंकि यह कभी भी बंद पड़ सकते हैं. वह बताते हैं कि स्वयं बजाने वाली झालर ही सही मायने में भगवत सेवा का कार्य है. जिसका निर्वहन करौली में परंपराओं के अनुसार आज भी हर मंदिर में कायम है.

इलेक्ट्रॉनिक घंटीयो का नहीं है कोई महत्व 

वहीं, श्री राधा गोविंद देव जी पंचायती मंदिर के पुजारी लड्डू गोपाल गोस्वामी का कहना है कि वर्तमान समय में जो आधुनिक घंटियां आई है. इनका कोई भी महत्व नहीं है. आरती के वक्त बजाए जाने वाले उपकरणों में झालर का ही सबसे ज्यादा महत्व हैं. जो दो व्यक्तियों द्वारा हाथों से बजाई जाती है. धार्मिक नगरी में इसका प्रचलन मंदिरों में आरती के समय प्राचीन समय से ही चला आ रहा है. उनका कहना है कि इसका विशेष महत्व यह भी है कि झालर जब भी बजती है. इसमें से राधा कृष्ण की ध्वनि निकलती है. जो भगवान के लिए भी अति प्रिय होती है.

झालर के साथ आरती उतारने में अलग ही आनंद 

पुजारी लड्डू गोपाल गोस्वामी का यह भी कहना है कि बजाय इलेक्ट्रॉनिक घंटीयो के, झालर बजाने में एक अलग ही प्रकार का आनंद आता है. क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक घंटियों कि ध्वनि कानों में चुभने के साथ-साथ दूर तक भी नहीं पहुंच पाती है. लेकिन हाथों से बजाई जाने वाली झालर की ध्वनि में एक अलग ही प्रकार का भक्ति रस और इसकी ध्वनि भी किलोमीटर दूर तक सुनी जा सकती है.

Tags: Karauli news, Local18, Rajasthan news

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