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राजस्थान की राजनीति में हनुमान बेनीवाल ‘जरुरत’ या ‘मजबूरी’, जानें कैसा है राजनीतिक का स्टाइल

हितेन्द्र शर्मा.

जयपुर. यू कैन लव हिम, यू कैन हेट हिम… बट यू कान्ट इग्नोर हिम….(आप उनसे प्रेम कर सकते हैं, उनसे नफरत कर सकते हैं, लेकिन नजरअंदाज नहीं कर सकते) अंग्रेजी का ये मुहावरा राजस्थान में यदि किसी राजनेता पर फिट बैठता है तो वो हैं हनुमान बेनीवाल. बेनीवाल फिलहाल नागौर सीट पर लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन इस बार विपरीत धुरी बनकर. इस बार वे कांग्रेस के साथ गठबंधन कर मैदान में डटे हैं.

ऐसी ही स्थिति दूसरी तरफ भी है. उनके सामने बीजेपी की ज्योति मिर्धा हैं. ज्योति राजस्थान की राजनीति के कद्दावर मिर्धा परिवार से आती हैं. खानदानी तौर पर कांग्रेसी रही ज्योति ने इस बार कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है. हनुमान बेनीवाल ने पिछली बार बीजेपी से गठबंधन कर नागौर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीते भी. आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल की मौजूदगी दोनों ही बड़ी पार्टियों में नागौर लोकसभा क्षेत्र में एक ‘वैक्यूम’ की तरफ भी इशारा करती है. इसीलिए इस बार भी वे ‘इग्नोर’ नहीं किए गए और कांग्रेस को उन्हें समर्थन देना पड़ा. नागौर सीट पर हनुमान के ‘करिश्मे’ को सब महसूस भी करते हैं.

दोनों तगड़े नेताओं के बीच टक्कर कांटे की है
फिलहाल नागौर लोकसभा सीट पर सियासी पारा भी लगातार बढ़ रही गर्मी से होड़ करता हुआ नजर आ रहा है. यह सूबे की सबसे हॉट सीटों में से एक है. पिछले दो लोकसभा चुनावों में बेनीवाल अपनी प्रतिद्वंद्वी ज्योति मिर्धा की हार का कारण रह चुके हैं. 2014 के चुनाव में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा जिसका नुकसान ज्योति को हुआण् वहीं, 2019 में बीजेपी के साथ गठबंधन में वे खुद चुनाव जीते. वहीं ज्योति मिर्धा 2009 में कांग्रेस की टिकट पर सांसद चुनी गई थीं. यानी इलाके के दोनों तगड़े नेताओं के बीच टक्कर कांटे की है.

‘लिहाज’ में पिघलते नहीं, बात कह डालने की आदत
हनुमान जब बीजेपी में थे तो वसुंधरा राजे से उनके तल्ख सियासी रिश्ते जगजाहिर हैं. यहां तक कि हनुमान उन पर निजी हमले करने से भी नहीं चूकते थे. पटरी नहीं बैठी तो बीजेपी से इस्तीफा दे दिया. बेनीवाल अपनी शर्तों पर राजनीति करने में माहिर हैं. अपने पिछले लोकसभा कार्यकाल में सरकार में साझीदार रहते हुए भी उन्होंने 2020 में कृषि से जुड़े केंद्र सरकार के तीन कानूनों का विरोध किया. उन्होंने एक झटके में तीन संसदीय समितियों से इस्तीफा दे दिया. कई और मुद्दों पर खुलकर बीजेपी के विरोध में आ गए.

आलोचना करने से नहीं चूकते
अब भी वे कांग्रेस से गठबंधन के बावजूद अपनी सभाओं में कांग्रेस के नेताओं की आलोचना करने से नहीं चूकते. कांग्रेस के कई स्थानीय नेताओं पर बीजेपी के ‘दुपट्टे’ गले में डालकर चुनाव प्रचार करने का आरोप लगा चुके हैं. उन्होंने यहां तक कह डाला कि कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा भी उन पर कार्रवाई नहीं कर रहे. हालांकि बयान के सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद कार्रवाई हुई.

अपने अंदाज के बादशाह है बेनीवाल
लोगों के बीच वे कभी भी अपने आपको औपचारिक तरीके से पेश नहीं करते. उनका गंवई, बेलौस लेकिन विटी अंदाज लोगों को बहुत भाता है. सोशल मीडिया पर भी अक्सर उनके ‘डायलॉग’ रील्स और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर वायरल होते रहते हैं. अपने प्रतिद्वंद्वियों पर लगातार कोई न कोई टिप्पणी अपनी सभाओं और रैलियों में करते रहते हैं. तुरंत प्रतिक्रिया देने की अपनी आदत के चलते ही उन्होंने लोकसभा परिसर के घुसपैठियों में से एक को पकड़ा और 2-4 मुक्के जमा भी दिए. ये उनका नेचुरल स्टाइल है. लोकसभा और विधानसभा में भी वे बिना किसी लाग-लपेट के खुलकर बोलने के लिए जाने जाते हैं.

‘इमोशनल-कनेक्ट’ में हैं माहिर
उनके नजदीकी लोग याद करते हैं कि छात्र राजनीति के दौरान भी मौजूदा व्यवस्था से उनकी पटरी नहीं बैठी. छात्रों के कामों को लेकर राजस्थान विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति से उलझकर जेल पहुंच गए. फिर उन्होंने जेल में भी भूख हड़ताल कर दी. व्यवस्था के खिलाफ उनके तेवर युवाओं में, खासकर ग्रामीण युवाओं में एक आकर्षण पैदा करते हैं. उनकी सभाओं में युवाओं की भीड़ उमड़ पड़ती है. वे भी युवाओं के साथ वैसे ही बेलौस-बेपरवाह हो जाते हैं. यही उनका ‘कनेक्शन मंत्र’ भी है. युवा प्रशंसकों के बीच ‘भाई साब’ के नाम से फेमस हनुमान कई बार रैलियों व सभाओं में उन्हें ‘भाई साब’ स्टाइल में डांट भी देते हैं. लेकिन लगातार संवाद में रहने के कारण युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं.

कौन हैं हनुमान बेनीवाल
हनुमान बेनीवाल कई अन्य राजनेताओं की तरह छात्र राजनीति की उपज हैं. वे 1995 में राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के लॉ कॉलेज छात्रसंघ अध्यक्ष तो दो साल बाद यानी 1997 में वे राजस्थान विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष बने. उनके पिता स्वर्गीय रामदेव बेनीवाल भी मूंडवा सीट से एमएलए रह चुके हैं. वे 2008 में पहली बार खींवसर विधानसभा से विधायक बने. लेकिन वसुंधरा राजे से तीखे मतभेद के कारण बीजेपी से इस्तीफा दे दिया. अगले यानी 2013 के चुनाव में वे निर्दलीय लड़े और जीते भी. साल 2018 में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बनाई. बीजेपी से गठबंधन कर 2019 में सांसद बने. 2023 विधानसभा चुनाव में फिर खींवसर से विधायक हैं. मौजूदा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन कर नागौर से चुनाव मैदान में हैं.

कई आरोप और विरोध भी
हनुमान बेनीवाल के राजनीतिक जीवन में कई आरोप उनके प्रतिद्वंद्वी लगाते रहे हैं. गाहे-बगाहे कई नेता और संगठन हनुमान पर जातिवादी राजनीति करने का आरोप लगा चुके हैं. एक बार जब बीजेपी के कद्दावर नेता यूनुस खान पर उन्होंने गैंगस्टर आनंदपाल को प्रश्रय देने का आरोप लगाया तो यूनुस ने हनुमान को ही अपराधी बता दिया था. मौजूदा चुनाव के दौरान ज्योति मिर्धा भी संसद में उपस्थिति को लेकर हनुमान को उन्हीं के देसी अंदाज में चुनौती दे चुकी है.

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