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राजस्थान के इस जिले की हवेलियां विदेशियों की पहली पसंद, हवामहल…अठखम्भा छतरी देख हार बैठते हैं दिल

नरेश पारीक/चूरू. थार के प्रवेश द्वार के नाम से मशहूर चूरू अपनी कला और गगनचुंबी हवेलियों के लिए काफी मशहूर है. पहली नजर में ही किसी को भी संमोहित करने वाली यहां की हवेलियां आज विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद हैं. यहां सबसे दिलचस्प बात यह है कि चुरू का कोई शाही इतिहास नहीं है. ये हवेलियां अमीर और समृद्ध व्यापारियों के घर थे, जो यहां रहते थे. हवेलियों में पेंटिंग मालिक की जीवन शैली का प्रतिबिंब है, या उस समय के फैशन का चित्रण है, जैसे कार या ट्रेन में यात्रा करना.

बेजोड़ स्थापत्य कला का नायाब उदाहरण प्रस्तुत करती इन हवेलियों पर उकेरे ये चित्र जैसे इन्हें आज ही चित्रित किया गया हो. हवेलियों के दरवाजे भी जटिल रूप से डिजाइन किए गए हैं और कोई भी उन्हें निहारने में पूरा दिन बिता सकता है. ऐसे में यहां हवामहल से लेकर मालजी का कमरा और अठखम्भा छतरी देशी ही नहीं, बल्कि विदेशियों की भी पहली पसंद है.

मालजी का कमरा: इसका निर्माण सेठ मालचंद कोठारी ने अपने मनोरंजन के लिए सन 1925 में करवाया था. करीब 100 वर्ष पुरानी इस हवेली के निर्माण में चूने का उपयोग हुआ है. इसकी छत ढोले की है. इटालियन कलाकारी, भित्ति चित्र और नक्काशी इसकी सुंदरता में चार चांद लगाती है और आज देसी-विदेशी पर्यटकों की पहली पसंद है. वर्तमान में इस हवेली में जिले का पहला हैरिटेज होटल संचालित हो रहा है, जहां पर्यटक शाही के साथ लग्जरी सुविधाओं का लुत्फ उठा सकते हैं.

अठखम्भा छतरी: शहर के सब्जी मंडी में स्थित अठखम्भा छतरी देशी और विदेशी पर्यटकों के लिए आज आकर्षण का केंद्र है. नगर श्री के सचिव श्याम सुंदर शर्मा बताते हैx कि छतरियां राजा, महाराजा और वीर पुरुषों की स्मृति में बनाई जाती थीं और जिला मुख्यालय के मुख्य बाजार में स्थित अठखम्भा छतरी भी आज विरों के शौर्य और पराक्रम की गवाही देती है. शर्मा बताते हैं कि करीब 247 वर्ष पूर्व इस अठखम्भा छतरी का निर्माण बख्शी राम जी टकनेत की स्मृति में हुआ था. आठ खम्भों पर बनी इस ऐतिहासिक छतरी को खास इसके गुम्बद में चित्रकारी और पत्थर के खम्भों पर हुई दुर्लभ नक्काशी खास बनाती है.

चूरू का हवामहल : सुराणा की हवेली 1870 में तैयार हुई थी. इतिहासकार बताते हैं कि इस हवेली के सभी खिड़की और दरवाजों को खोला और बंद किया जाए तो सुबह से शाम हो जाती है. इसमें कुल खिड़की और दरवाजों की संख्या 1111 है. इसलिए इसके अधिकांश दरवाजों को बंद ही रखा जाता है. कहा जाता है कि कहीं न कहीं इस हवेली को बनवाने के पीछे हवा महल का ही कॉन्सेप्ट था. स्थानीय लोग इसे चूरू का हवामहल कहते हैं. यहां आने वाले सैलानी इस हवेली को देखकर चौंक जाते हैं

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