राजस्थान जहां घी से महंगा पानी, 5 किलोमीटर में बसे इस गांव में पग-पग पर 150 साल पुराने पानी के कुंड-Rajasthan, where water is costlier than ghee

नरेश पारीक/चूरू : राजस्थान में एक बहुत पुरानी कहावत प्रचलित है कि ‘घी ढुले तो ढुले पानी ना ढुले’ मतलब घी भले ही गिरे पानी व्यर्थ नही बहना चाहिए. जी हां जिस प्रदेश में घी से ज्यादा पानी को महत्व दिया जाए यकीनन उस प्रदेश के लोगों से बेहतर शायद पानी का महत्व कोई दूसरा नही जानता. सेठ और साहूकारों के उसी प्रदेश में यहां सेठों ने पानी संग्रहण के लिए वो प्रयास किए जो यहां के लोगों के जीवन यापन में मील के पत्थर साबित हुए.
ऐसा ही एक गांव है दूधवाखारा जहां इस छोटे से गांव में बरसों पुराने पानी के इतने टांके है कि शायद आप गिनती भूल जाओ. गांव के बुजुर्ग ग्रामीण बताते है ये प्राचीन टांके (कुंड) ना सिर्फ आज गांव की ऐतिहासिक धरोहर है बल्कि आज भी ग्रामीणों और बेजुबान जानवरो की प्यास बुझा रहे है. इससे भी दिलचस्प बात ये है कि 100 से 150 साल पुराने इन टांकों में अब भी गर्मियों में ठंडा पानी और सर्दियों में पानी गर्म रहता है.
गांव के सेठो ने करवाया था निर्माण
दूधवाखारा गांव के देवेन्द्र दाधीच बताते है बरसो पहले गांव के लोगो के पास जब जीवन यापन करने का कोई जरिया और आय के स्त्रोत इतने नही थे और प्रदेश भीषण अकाल की चपेट में था तो गांव के सेठो ने ग्रामीणों का पलायन रोकने के उद्देश्य से इन टांकों का निर्माण करवाया.ग्रामीणों को मजदूरी के बदले खाना और पैसा मिलता और गांव में पानी संग्रहण का टांके के रूप में स्त्रोत.
चुन्ने पत्थर से है निर्मित
देवेन्द्र दाधीच बताते है निर्माण के बरसो बाद भी इन टांकों की मजबूती देखने लायक है. दाधीच बताते है इन टांकों के निर्माण में चुन्ने और पत्थर का प्रयोग किया गया है जिसके चलते इसमें ठहरे पानी की तासीर भी बाहर के मौसम के लिहाज से रहती है सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा.
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FIRST PUBLISHED : February 9, 2024, 18:15 IST