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राजस्थान टीचर ट्रांसफर पॉलिसी, जुमला या शिगुफा, 1990 से 2024 तक लागू नहीं हो पाई, पढ़ें पूरा इतिहास

जयपुर. राजस्थान में शिक्षकों की तबादलों की पॉलिसी अब एक जुमला लगने लगी है. पिछले तीन विधानसभा और लोकसभा चुनावों से लगातार हर राजनैतिक दल शिक्षकों से तबादला पॉलिसी लागू करने का वादा करते आ रहे हैं. लेकिन यह वादा तीन चुनावों बाद भी पूरा नहीं हो पाया है. अब एक बार फिर से लोकसभा चुनाव के बीच खबर आई है कि उड़ीसा वाली तबदाला पॉलिसी के आधार पर राजस्थान में तबादला पॉलिसी लागू होगी. लेकिन राजस्थान के शिक्षकों को यह बात जुमला ही लग रही है.

इन दिनों चुनावी माहौल में राजस्थान में शिक्षकों के बीच तबादला पॉलिसी की चर्चा जोरों पर है. हर राजनैतिक दल पहले भी सत्ता में आने से पहले शिक्षकों से तबादला पॉलिसी लाने का वादा करता रहा है. लेकिन तबादला पॉलिसी अभी तक नहीं आ पाई. राजस्थान के तृतीय श्रेणी शिक्षकों के साथ ऐसा बीते 15 बरसों से हो रहा है. पिछली सरकार ने हर विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों के तबादले किए लेकिन तृतीय श्रेणी अध्यापकों के तबादले नहीं हो पाए.

ना पॉलिसी आई और ना तबादले हुए
बीमारी से परेशान कई शिक्षकों ने बुजुर्ग माता पिता की सेवा के लिए तबादले जैसे तर्क दिए लेकिन उनकी पार नहीं पड़ पाई. सरकारों ने हर बार कहा कि पॉलिसी लाएंगे फिर तबादले करेंगे. लेकिन विधानसभा चुनाव के ऐलान तक ना पॉलिसी आई और ना तबादले हुए. अब विधानसभा चुनाव बीत गए और सरकार बदल गई. तीन महीने से ज्यादा समय तक राज्य में नई सरकार ने काम कर लिया. लेकिन तृतीय श्रेणी शिक्षकों को राहत नहीं मिली. लोकसभा चुनाव आ गए फिर भी तबादला पॉलिसी नहीं आ पाई.

बरसों से ड्राफ्ट तैयार तो हो रहे हैं
अब लोकसभा चुनाव के बीच शिक्षकों से राजनैतिक दल फिर से तबादलों पॉलिसी का वादा कर रहे हैं. लेकिन शिक्षक वर्ग को अब इस पर विश्वास नहीं रहा. अब उन्हें यह एक जुमला लगने लगा है. बरसों से ड्राफ्ट तैयार तो हो रहे हैं लेकिन तबादला पॉलिसी जारी नहीं हो रही है. अब एक बार लोकसभा चुनाव के बीच फिर से खबर आई है कि उड़ीसा की तबादला पॉलिसी को राजस्थान में लागू करने के लिए समिति बनाई गई है और सुझाव मांगे गए हैं. शिक्षक नेता रणजीत मीणा और महावीर सियाग समेत कर्मचारी नेता विपिन शर्मा का कहना है कि यह जुमला क्यों बन गया. इसे गहराई से समझने की जरुरत है.

इसलिए तबादला पॉलिसी शिक्षकों को लगने लगी है एक जुमला
01- सबसे पहले वर्ष 1994 में केंद्रीय शिक्षा सचिव की अध्यक्षता में कमेटी ने तबादला पॉलिसी का प्रारूप बनाया लेकिन पॉलिसी लागू नहीं हुई.
02- वर्ष 1997-1998 में तबादला नीति लाने की कवायद हुई लेकिन केवल ग्रामीण ठहराव के आधार पर तबादले हुए मगर पॉलिसी नहीं आई.
03- वर्ष 2005 में शिक्षकों के तबादले लिए कार्मिक विभाग ने दिशा निर्देश जारी किए मगर तबादला पॉलिसी लागू नहीं हुई.
04- 10 साल बाद वर्ष 2015 में तबादला पॉलिसी के लिए मंत्री मंडल समिति बनी. फिर भी प्रारूप ही मंजूर नही हुआ. पॉलिसी लागू नहीं हुई.

05- साल 2020 जनवरी में विशेष कर तृतीय श्रेणी शिक्षकों के लिए तबादला पॉलिसी बनाने के लिए समिति बनी. अगस्त में प्रारूप तैयार हुआ मगर पॉलिसी मंजूर नही हुई.
06- अब एक बार फिर से उड़ीसा की तबादला पॉलिसी जैसा ड्राफ्ट साल 2024 में तैयार करवाने की तैयारी शुरू की गई है.

नेताओं की चिंता हमें कौन अधिकारी कर्मचारी पूछेगा…
बहरहाल राजस्थान में तबादला पॉलिसी लागू होने से सीधे तौर पर तबादला उद्योग जैसे आरोप प्रत्यारोप देखने को नहीं मिलेंगे. वही राजनेताओं में पॉलिसी को लेकर दबी जुबां यह चिंता है कि अगर पॉलिसी आ जाएगी तो फिर हमें कौन अधिकारी कर्मचारी पूछेगा. इसी फेर में साल 1990 से लेकर 2024 तक तबादला पॉलिसी पर ना केवल जमकर सियासत हुई. लेकिन पॉलिसी लागू नही हो पाई.

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