National

राष्ट्रपति चुनावों में 70 सालों में कभी नहीं जीता विपक्ष का प्रत्याशी

इस बार के राष्ट्रपति चुनावों में सत्ताधारी गठबंधन एनडीए की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू की जबरदस्त जीत के बाद ये बात फिर कही जा सकती है कि इन चुनावों में हमेशा सत्ताधारी पार्टी या गठबंधन का प्रत्याशी ही जीतकर देश का पहला नागरिक बनता है. विपक्ष या साझा विपक्ष का कोई भी उम्मीदवार पहले राष्ट्रपति के चुनावों के बाद से 70 सालों में जीत नहीं सका है.

बस एक ही बार सत्ताधारी पार्टी के प्रत्याशी को कड़े मुकाबले में मात खानी पड़ी जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खुद अपनी पार्टी के खिलाफ जाकर स्वतंत्र उम्मीदवार वीवी गिरी को जिताने की अपील अपनी ही पार्टी के सांसदों और विधायकों से की थी. वह अकेला मुकाबला था जब राष्ट्रपति का चुनाव बहुत नजदीकी और बहुत कांटे वाला था. उसके बाद हमेशा राष्ट्रपति के चुनाव एकतरफा ही रहा है.

पहले चुनावों में राजेंद्र प्रसाद का कद बहुत बड़ा था

बात पहले चुनाव से शुरू करते हैं. 1952 में जब पहला राष्ट्रपति चुनाव हुआ तो कांग्रेस के प्रत्याशी डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद थे. उनका कद सियासत में इतना बड़ा था और हर पार्टी उन्हें इतना आदर देती थी कि विपक्ष के किसी भी दल ने उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं खड़े करने का फैसला किया. लेकिन लेफ्ट पार्टियों के समर्थन स्वतंत्र तौर पर केटी शाह चुनाव में उतरे. वह खुद भी जानी मानी हस्ती थे.

डॉ. राजेंद्र प्रसाद का कद इतना बड़ा था कि उनके खिलाफ विपक्ष ने अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करने का फैसला किया था. (फाइल फोटो)

राजनीति में उनका अपना एक योगदान था. वह संविधान सभा में भी शामिल थे. इसके अलावा कुछ निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में थे, हालांकि उनका सभी का कद सियासत में अनजाना ही था.

इन सभी प्रत्याशियों ने चुनाव में खड़े होने का केवल ये तर्क दिया कि लोकतंत्र का तकाजा है कि चुनाव में किसी भी प्रत्याशी को टक्कर मिलनी ही चाहिए. हालांकि पहले चुनावों में राजेंद्र प्रसाद को 507,400 वोट वैल्यू हासिल हुई. लेकिन शाह को 92,827 वोट वैल्यू मिले. इस तरह से देखें तो राजेंद्र प्रसाद को 80 फीसदी से ज्यादा वोट मिले.

दूसरे चुनावों में राजेंद्र प्रसाद के खिलाफ विपक्ष ने नहीं उतारा प्रत्याशी

1957 के दूसरे राष्ट्रपति चुनाव में फिर यही स्थिति थी. राजेंद्र प्रसाद फिर कांग्रेस के उम्मीदवार बने और विपक्ष ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया. हालांकि अबकी बार छोटे मोटे निर्दलीय उम्मीदवार खड़े हुए. अबकी राजेंद्र प्रसाद को 98 फीसदी वोट मिले. इस बार उनके पक्ष में वोट वैल्यू 459,698 थी.

राधाकृष्णन बड़े अंतर से जीते थे

तीसरे राष्ट्रपति चुनाव में सर्वपल्ली राधाकृष्णन कांग्रेस के प्रत्याशी थे. उनका कद भी भारतीय राजनीति में काफी आदर वाला था. उनकी अपनी एक इमेज भी थी. उपराष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने जिस तरह अपना काम किया था, उससे विपक्ष भी उनसे प्रभावित था. लिहाजा इस चुनाव में उन्होंने 98.2 फीसदी वोटों के साथ 553,067 वोट वैल्यू हासिल किये. दो निर्दलीय भी मैदान में थे लेकिन वो 5000 वोट वैल्यू भी नहीं पा सके.

पहली बार विपक्षी उम्मीदवार ने दी कड़ी चुनौती

इस दौर में सबसे धमाकेदार चुनाव 1967 में हुआ जबकि उपराष्ट्पति जाकिर हुसैन को कांग्रेस ने अपना राष्ट्पति उम्मीदवार बनाया तो विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट से इस्तीफा देकर आए पूर्व मुख्य न्यायाधीश के सुब्बाराव को खड़ा किया. चुनाव जोरदार रहा. अगर कांग्रेस ने जाकिर हुसैन के लिए जोर लगा दिया तो विपक्ष ने सुब्बाराव की जीत के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा दिया.

ये वो समय भी था, जब कुछ राज्यों में विपक्ष की सरकारें बन चुकी थीं. जाकिर हुसैन को 471,244 वोट वैल्यू हासिल हुए यानि 56.2 फीसदी और सुब्बाराव को 363,971 वोट मिले यानि 43.4 फीसदी. 1952 के बाद ये सबसे ज्यादा मुकाबले वाला चुनाव था.

वीवी गिरी कांग्रेस उम्मीदवार नहीं थे लेकिन कांग्रेस की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी के प्रत्याशी की बजाए उनका समर्थन किया. उन्होंने अपने पार्टी के लोगों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील करके ये जता दिया था कि वो वीवी गिरी के साथ हैं. (फाइल फोटो)

अबकी बार इंदिरा ने पासा पलटा था

1969 के राष्ट्रपति चुनावों में जो कुछ हुआ वो तो ऐतिहासिक था. सत्ताधारी कांग्रेस के सिंडिकेट ने नीलम संजीव रेड्डी को प्रत्याशी बनाया. वह लोकसभा में स्पीकर रह चुके थे. बड़े नेता थे लेकिन इंदिरा तब सिंडीकेट को औकात दिखाने में लगी हुईं थीं. उन्होंने इसके स्वतंत्र उम्मीदवार और बड़े ट्रेड यूनियन नेता वीवी गिरी को समर्थन दे दिया. खुलेतौर पर तो इंदिरा ने नीलम रेड्डी का विरोध नहीं किया लेकिन संकेतों में उन्होंंने अपनी पार्टी के सांसदों और विधायकों से अतंरात्मा की आवाज पर वोट देने को कहा.

ये चुनाव इतना नजदीकी था कि कुछ भी हो सकता था. लेकिन वीवी गिरी जीत गए. उन्हें 420,077 वोट वैल्यू मिले यानि 50.9 फीसदी और नीलम संजीव रेड्डी को 49.17 फीसदी वोट मिले. उन्हें कुल 405,427 वोट वैल्यू हासिल हुई.

फिर सत्ताधारी प्रत्याशी ही राष्ट्रपति बना

1974 का चुनाव फिर सत्ताधारी कांग्रेस के लिए आसान रहा. उनके प्रत्याशी फखरुद्दीन अली अहमद को लेफ्ट के प्रत्याशी त्रिदीब चौधरी को हराने में कोई मुश्किल नहीं हुई. 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई तो उन्होंने राजनीति छोड़ चुके नीलम संजीव रेड्डी को फिर से प्रत्याशी बनाया. इस बार कांग्रेस ने रेड्डी का सम्मान करते हुए उनके खिलाफ उम्मीदवार खड़ा नहीं किया. नीलम रेड्डी निर्विरोध जीते. ये पहला और आखिरी मौका था जब कोई राष्ट्रपति निर्विरोध चुना गया हो.

जैल सिंह ने विपक्षी उम्मीदवार को परास्त किया

1982 के चुनाव में कांग्रेस ने जब जैल सिंह को राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर खड़ा किया तो इसकी काफी आलोचना भी हुई, क्योंकि उन्होंने ये बयान दे दिया था कि वो इंदिरा के इतने लायल हैं कि उनके कहने पर झाडू भी लगा सकते हैं. विपक्ष ने उनके खिलाफ जस्टिस हंसराज खन्ना को उतारा. लेकिन जैल सिंह को 72.7 फीसदी मत हासिल हुए और वह आसानी से जीते. कुछ ऐसा ही 1987 के चुनाव में भी हुआ जबकि सत्ताधारी कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति आर. वेंकटरमन को उम्मीदवार बताया. हालांकि इस बार विपक्ष ने न्यायविद वीआर कृष्णाअय्यर को खड़ा किया. वेंकटरमन 72.3 फीसदी वोटवैल्यू के साथ जीते.

शंकरदयाल कांग्रेस प्रत्याशी थे और आसानी से जीते

1992 में कांग्रेस उम्मीदवार शंकरदयाल शर्मा थे जबकि विपक्ष ने मेघालय के दिग्गज नेता जार्ज गिल्बर्ट स्वैल को खड़ा किया था. गिल्बर्ट कई बार लोकसभा सदस्य रह चुके थे. उनकी नार्थ ईस्ट में अपनी खास पहचान थी लेकिन पेशे से प्रोफेसर गिल्बर्ट केवल 33.8 प्रतिशत वोट ही ले पाए.1997 में सत्ताधारी कांग्रेस के उम्मीदवार केआऱ नारायणन थे, जिन्होंने विपक्ष के साझा प्रत्याशी और चुनाव सुधारों के बाद हीरो बन गए टीएन शेषन को इतनी बुरी तरह हराया कि लोग चकित रह गए. शेषन को केवल 05 फीसदी वोट मिले थे.

APJ Abdul Kalam
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम एनडीए के प्रत्याशी थे. उन्होंने सीपीएम की प्रत्याशी कैप्टेन लक्ष्मी सहगल को हराया था. हालांकि उस चुनाव में कई विपक्षी दलों ने कलाम के प्रति समर्थन जाहिर किया था. (फोटो सोशल मीडिया)

बीजेपी के राज में एपीजे कलाम राष्ट्रपति बने

2002 में बीजेपी सत्ता में थी. अटलबिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. उन्होंने देश के शीर्ष मिसाइल विज्ञानी एपीजे कलाम को खड़ा किया. हालांकि कांग्रेस और कई दलों ने उनका समर्थन किया लेकिन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कैप्टन लक्ष्मी सहगल को अपना उम्मीदवार बनाया था. कलाम को 89.6 फीसदी वोट हासिल हुए और वह आराम से जीत गए.

प्रतिभा पाटिल ने दिग्गज भैरों सिंह शेखावत को हराया था

2005 में कांग्रेस फिर यूपीए गठबंधन बनाकर सत्ता में लौटी और 2007 के राष्ट्रपति चुनावों में प्रतिभा पाटिल को चुनाव में खड़ा किया. सोनिया गांधी की करीबी प्रतिभा पाटिल पहली महिला राष्ट्रपति बनीं. उन्हें 65.8 फीसदी वोट मिले. हालांकि बीजेपी ने दिग्गज नेता भैरों सिंह शेखावत को राष्ट्पति के उम्मीदवार के तौर पर खड़ा किया था लेकिन वह 34.2 फीसदी वोट लेकर पीछे रह गए.

प्रणब यूपीए के उम्मीदवार के तौर पर जीते

2012 में यूपीए ने केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाया. अबकी बार एनडीए ने पूर्व लोकसभा स्पीकर पीए संगमा को उनके खिलाफ उतारा. लेकिन हैरानी की बात रही कि संगमा केवल 08 फीसदी वोट ही ले सके.

अब राष्ट्रपति चुनावों में एनडीए का जलवा

2017 में जब राष्ट्रपति का चुनाव हुआ तब तक नरेंद्र मोदी की अगूुवाई में एनडीए सत्ता में आ चुकी थी. एनडीए ने बिहार में राज्यपाल रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाया. हालांकि उनका नाम चौंकाने वाला था लेकिन उन्होंने यूपीए की मजबूत प्रत्याशी मीराकुमार को 65.6 फीसदी वोट लेकर हरा दिया. तो इस बार सत्ताधारी एनडीए की द्रौपदी मूर्मू ने यूपीए के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा करीब करीब एकतरफा तरीके से हरा दिया.

Tags: Draupadi murmu, President of India, Presidential election 2022, Rashtrapati bhawan, Rashtrapati Chunav

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj