लोकसभा महासचिव ने SC में दाखिल किया हलफनामा, कहा- सुनवाई योग्य नहीं सांसद की याचिका – News18 हिंदी

नई दिल्ली: टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा को लोकसभा से निष्कासित के मामले में लोकसभा महासचिव ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर याचिका का विरोध किया. इस दौरान लोकसभा महासचिव ने कहा कि निष्कासन के खिलाफ महुआ की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है. TMC सांसद की ये याचिका भारत के संविधान की योजना के तहत स्वीकार्य विधायी कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा की सीमा को पूरा नहीं करती है. इसके साथ ही हलफनामे में कहा गया कि अनुच्छेद 122 एक ऐसी रूपरेखा की परिकल्पना करता है, जिसमें संसद को पहली बार में न्यायिक हस्तक्षेप के बिना अपने आंतरिक कार्यों और शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति है, क्योंकि संसद अपनी आंतरिक कार्यवाही के संबंध में संप्रभु है. ऐसे में महुआ की याचिका पूरी तरह गलत है.
कुछ ऐसे थे लोकसभा महासचिव के तर्क
शीर्ष अदालत में लोकसभा महासचिव ने कहा कि तृणमूल सांसद की याचिका न्यायिक समीक्षा के दायरे से पूरी तरह बाहर है. ऐसे में किसी भी कीमत पर उनकी सुनवाई योग्य नहीं है. महुआ की याचिका ऐसी कार्रवाई पर विचार नहीं करती है, जो ठोस या घोर अवैधता या असंवैधानिकता के बराबर हो. जिन मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है, उनमें से किसी का भी उल्लंघन नहीं किया गया है.
लोकसभा महासचिव की ओर से याचिका में कहा गया है कि सांसद द्वारा लिए गए निर्णय को आनुपातिकता के सिद्धांत के आधार पर परीक्षण नहीं किया जा सकता है. ऐसी कोई भी कवायद शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के विपरीत होगी, जो भारत के संविधान की मूल विशेषता है. सभी प्रक्रियाओं का विधिवत पालन किया गया है. संविधान का अनुच्छेद 122 जो प्रावधान करता है कि प्रक्रिया की किसी भी कथित अनियमितता के आधार पर संसद में कार्यवाही की वैधता पर सवाल नहीं उठाया जाएगा. इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने खुद माना है कि संसद के फैसले की तथ्यों के आधार पर दोबारा जांच नहीं की जा सकती कि लगाए गए आरोप के लिए संबंधित सदस्य को निष्कासित करना उचित था या नहीं.
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बता दें कि, शीर्ष अदालत ने तीन जनवरी को निष्कासन को चुनौती देने वाली मोइत्रा की याचिका पर लोकसभा महासचिव से जवाब मांगा था. पीठ ने उनके अंतरिम अनुरोध पर आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था. इस पर उन्होंने अदालत से लोकसभा की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति देने का अनुरोध किया था. लेकिन न्यायालय ने यह कहते हुए इसकी अनुमति नहीं दी कि यह उन्हें पूर्ण राहत देने के समान होगा. शीर्ष अदालत ने लोकसभा अध्यक्ष और सदन की आचार समिति को नोटिस जारी करने से भी इनकार कर दिया था. मोइत्रा ने अपनी याचिका में दोनों को प्रतिवादी बनाया था.
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वहीं, पिछले साल 8 दिसंबर को आचार समिति की रिपोर्ट पर लोकसभा में तीखी बहस के बाद संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने ‘अनैतिक आचरण’ के लिए टीएमसी सांसद को सदन से निष्कासित करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया जिसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया. इस बहस के दौरान मोइत्रा को बोलने की अनुमति नहीं दी गई थी. जोशी ने कहा था कि आचार समिति ने मोइत्रा को ‘अनैतिक आचरण’ और सदन की अवमानना का दोषी पाया क्योंकि उन्होंने लोकसभा सदस्यों के लिए बने पोर्टल की जानकारी (उपयोगकर्ता आईडी और पासवर्ड) अनधिकृत लोगों के साथ साझा किए थे, जिसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर विपरीत प्रभाव पड़ा था. समिति ने यह भी सिफारिश की थी कि मोइत्रा के ‘अत्यधिक आपत्तिजनक, अनैतिक, जघन्य और आपराधिक आचरण’ को देखते हुए सरकार द्वारा तय समय सीमा के साथ एक गहन कानूनी और संस्थागत जांच शुरू की जाए.
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FIRST PUBLISHED : March 12, 2024, 05:17 IST