विधानसभा चुनाव 2023 भाजपा-कांग्रेस में नहीं बल्कि अशोक गहलोत-सचिन पायलट के बीच
जयपुर,(प्रेम शर्मा): प्रदेश में कांग्रेसी युवा तुर्क पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट भले ही अपने आप को कांग्रेस का अभिन्न अंग बताते हुए डेढ़ साल से भाजपा में जाने की सुर्खियों का खंडन करते आ रहे हो,लेकिन केन्द्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की केबिनेट में राहुल गांधी सखा ज्योतिरादित्य सिधिंया के उड्डयन मंत्री बनने का असर आज नहीं तो कल राजस्थान में भी रंग दिखाएगा। आज भाजपा में 2023 को लेकर मुख्यमंत्री का चेहरा देखा जाए तो वरियता के आधार पर वसुंधरा राजे,ओम बिड़ला,ओम माथुर,गजेन्द्र सिंह शेखावत है,लेकिन इस दौड़ में प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया,सांसद दिया कुमारी,राज्यवर्धन सिंह राठौड, राजेन्द्र राठौड भी हाथ-पांव मारने में पीछे नहीं है।वहीं भाजपा हाईकमान विधानसभा चुनाव 2023 की शतरंजी बिसात अभी से अपने तरीके से बिछाने में लगी है और कांग्रेस को समूल से नष्ट करने पर आमदा भाजपा का मुख्यमंत्री चेहरा सचिन पायलट हो तो आश्चर्य नहीं यानि 2023 का चुनाव प्रदेश में कांग्रेस भाजपा के बीच नहीं बल्कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच होगा।
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में सिद्धांतों की बात करना पागलपन की निशानी है येनकेन सत्ता हासिलकर उसमें बने रहना ही उनके मौलिक अधिकार है और इसी का नाम जनसेवा है। इसी के चलते अतिमहत्वाकांक्षी सचिन पायलट ने हाईकमान सहित प्रदेश सरकार की नाक में करीब डेढ साल से दम कर रखा है,क्योंकि केन्द्र में मनमोहन सरकार में मंत्री सुख भोग चुके सचिन पायलट प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष बने तब से ही उनकी नजर मुख्यमंत्री पद पर थी,लेकिन अशोक गहलोत के रहते उनके इस मंंसुबे पर पानी फिर गया और उपमुख्यमंत्री पद से संतुष्टि करनी पड़ी लेकिन अति सर्दावर्जते के चलते उन्हें इस प्रतिष्ठा से भी हाथ धोना पड़ गया।
अब महत्वाकांक्षा बंदर की तरह भीतर ही भीतर गुलाटी तो मार ही रही थी सो गुबार बनकर निकली हरियाणा में 19 विधायकों के साथ सरकार के कामकाज पर अंगुली उठाते हुए अशोक गहलोत को हटाने की मांग के साथ। रंग चढा डेढ साल पहले हरियाणा के गुरूग्राम में हरियाणा सरकार की मेहमानवाजी में,लेकिन हाईकमान के आगे दाल नहीं गली और भाजपा में प्रदेश नेताओं ने सचिन पायलट की रहनुमाई स्वीकारने से साफ मना कर दिया। पासा पलटता देख अपने आप को कांग्रेसी करार देतेे हुए सचिन पायलट की हाईकमान से समझौता वार्ता हुई और कुछ एमओयू फिक्स हुए जिसके चलते उनकी वापसी हुई खिसयानी बिल्ली खंभा नौचे की तर्ज पर और डेढ साल बाद उन्होंने फिर अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। पायलट समर्थक विधायक खुलकर प्रदेश सरकार के खिलाफ पाला देने लगे। एक विधायक पूर्व मंत्री के इस्तीफा प्रकरण से इसकी शुरूआत हुई। कांग्रेस के अलावा अन्य उन विधायकों को भी निशाना बनाया गया जो गहलोत सरकार को समर्थन दिए हु़ए हैं।
उधर भाजपा में डेढ साल पहले सचिन को लेकर प्रदेश के नेताओं की असहमति को हाईकमान ने अपनी अनदेखी समझी।बाडाबंदी का दौर उस समय कोरोना को नजर अंदाज करते हुए भाजपा में भी चला लेकिन गहलोत सदन में बहुमत हासिल करने में कामयाब हुए। इस दौरान केन्द्र का समर्थन दे रहे हनुमान बेनीवाल ने भी अपनी उपस्थिती दर्ज करवाई वसुंधरा राजे पर कटाक्ष करते हुए कि वह गहलोत के पाले में है। कुल मिलाकर इस प्रकरण में अब प्रदेश भाजपा के नेता ओम बिडला,ओम माथुर, गजेन्द्र सिंह शेखावत,दिया कुमारी,राज्यवर्धन सिंह को छोडकर सभी नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की नजर में खटक रहे हैं और इन दोनों नेताओं ने सचिन पायलट को भाजपा की ओर से अगला मुख्यमंत्री बनाने की ठान ली है जिसे पूरा करने की अहम् जिम्मेदारी सौपी है केन्द्र सरकार में हाल ही नवाजे गए उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को। राहुल गांधी के बाल सखा सिंधिया अगर उनके एक ओर सखा सचिन को इसके लिए मना लेते है तो मानकर भाजपा एक तीर से कई शिकार कर लेगी। प्रदेश में वसुंधरा के भी पर उनके ही भतीजे द्वारा कतर लिए जाएंगे और हाईकमान को आंख दिखाने वालों को सबक देने के साथ प्रदेश से कांग्रेस के सफाए में एक कदम आगे की ओर होगी भाजपा, यानि 2023 का चुनाव भाजपा-कांग्रेस का नहीं होकर अशोक गहलोत-सचिन पायलट के बीच होगा और भाजपा की ओर से बिसात बिछाने के लिए सचिन को हर तरह की छूट होगी। मुकाबला रौचक होगा लेकिन बाजी मारवाड के गांधी जननायक अशोक गहलोत के हाथ रहेगी या फिर अतिमहत्वाकांक्षी सचिन पायलट के साथ। इसके लिए हमें इंतजार करना पडेगा 2023 का,क्योंकि वर्तमान में अशोक गहलोत ही नहीं सचिन पायलट के रवैये से हाइकमान भी सुब्ध है और उधर मोदी-शाह की जोडी ने सिंधिया को पायलट के पीछे लगा दिया है इसकी खबर भी कांग्रेस हाईकमान तक पहुंच गई है,जिसके चलते इतना तो साफ है कि प्रदेश में अशोक गहलोत की किसी बात की अनदेखी करने की रिस्क हाईकमान नहीं उठाएंगा।उधर भाजपा में सचिन पायलट को लाल कारपेट मिला तो विरोधी भाजपा दिग्गज प्रदेश में चुप्पी साध लेगें यह भी इतना आसान नहीं हैं।यानि सत्ता लालसा की आग दोनों ओर हैं अब समय की नजाकत देखे की यह आग ज्वालामुखी बनकर किसका आधार स्तम्भ आने वाले कल मे साबित होती हैं।