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संघ प्रमुख के इरादे समझें, बयान को लेकर बाल की खाल न निकालें! – rss chief mohan bhagwat statement why look for shivling in every mosque and his intentions | – News in Hindi

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत का कल एक बड़ा बयान आया है. बयान ज्ञानवापी और उसके बाद हुए कई विवादों को लेकर है. मौका था संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह का. संघ हर साल शिक्षा वर्ग का आयोजन करता है, जिसमें स्वयंसेवकों को संघ से जुड़े विषयों और प्रक्रिया के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रथम और द्वितीय वर्ष के शिक्षावर्ग तो देश के तमाम छोटे – बड़े शहरों में आयोजित होते हैं, लेकिन तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का आयोजन हमेशा इसके मुख्यालय नागपुर में होता है. इस अवसर पर संघ प्रमुख खुद नागपुर में हाजिर होते हैं और समापन के मौके पर उनका व्यक्तव्य भी होता है, जिसमें तमाम राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय मसलों पर आरएसएस के दृष्टिकोण को स्वयंसेवकों के सामने रखा जाता है, जो सोशल मीडिया के जमाने में घर बैठे, क्या आम और क्या खास, सबको उपलब्ध हो जाता है.

संघ प्रमुख ने अपने भाषण में तमाम मुद्दों को छुआ, यहां तक कि रूस- यूक्रेन युद्ध पर भी वो बोले. ये कहा कि शक्तिशाली होने के कारण रूस ने यूक्रेन पर हमला किया और कोई भी देश यूक्रेन की सहायता के लिए सीधे-सीधे रूस का मुकाबला नहीं कर पाया, क्योंकि सबको रूस के परमाणु बम का डर है, क्योंकि पुतिन ऐलान कर चुके हैं कि अगर जरूरत पड़ी, तो वो इसके इस्तेमाल से भी हिचकेंगे नहीं. भागवत ने पश्चिमी देशों की नीयत पर भी सवाल उठाए, कहा यूक्रेन की सहायता करने वाले इन देशों के इरादे भी नेक नहीं है. संघ प्रमुख के मुताबिक, भारत को शक्तिशाली होने की जरूरत क्यों है, यूक्रेन की घटना ये बताने के लिए काफी है, चीन जैसे देश रूस के रवैये जैसे और कुटिल सोच वाले हो सकते हैं.

लेकिन संघ प्रमुख के जिस बयान पर सबका ध्यान गया, वो था ज्ञानवापी के बाद शुरू हुए कई अन्य मस्जिदों और इमारतों से जुड़े विवाद को लेकर. भागवत ने कहा- “ज्ञानवापी के बारे में हमारी कुछ श्रद्धाएं हैं, परंपरा से चलती आई हैं, ठीक हैं. परंतु हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना? अरे वो भी एक पूजा है, ठीक है बाहर से आई है. लेकिन जिन्होंने अपनाई है, वो मुसलमान बाहर से संबंध नहीं रखते, ये उनको भी समझना चाहिए. यद्यपि पूजा उनकी उधर की है, उसमें वो रहना चाहते हैं, तो अच्छी बात है, हमारे यहां किसी पूजा का विरोध नहीं. सबकी मान्यता और सबके प्रतीक के प्रति पवित्रता की भावना है, परंतु पूजा वहां की होने के बाद भी वो हमारे प्राचीन सनातन काल से चलते आ रहे ऋषि-मुनि, राजा- क्षत्रियों के वंशज हैं, समान पूर्वजों के वंशज हैं. परंपरा हमको समान मिली है.”

भागवत के वक्तव्य के इसी हिस्से को लेकर मीडिया से लेकर आम आदमी के बीच ये व्याख्या हो रही है कि संघ नहीं चाहता कि देश के उन मंदिरों का मसला उठे, जिन पर या तो मस्जिदें बनाई गई हैं या फिर जिनकी सामग्री का इस्तेमाल कर मस्जिदें खड़ी की गई हैं. इसी से ये भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि संघ उन लोगों का समर्थन नहीं करता, जो ये मुहिम लेकर चले हैं कि हिंदू धर्मस्थलों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदों को उनके पुराने स्वरूप में लाया जाए या फिर कम से कम ये तो साफ ही हो कि मध्यकाल में हिंदुओं पर कितना अत्याचार हुआ है इस तरह के कृत्य के जरिये.

दसअसल संघ प्रमुख के बयान को समग्रता में देखने की आवश्यकता है. उनके पूरे भाषण में जो केंद्रीय मुद्दा है वो है भारतीयता. उनका कहना है कि हिंदुस्तान की अपनी सदियों पुरानी परंपरा, संस्कृति और आचार- व्यवहार है, जिसका पालन सबको करना चाहिए, चाहे वो किसी भी पंथ, संप्रदाय से क्यों न जुड़े हों. वो मुसलमानों के बारे में भी कहते हैं कि उनका कोई दोष नहीं है, बल्कि जेहादी मानसिकता वाले विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने उन्हें तलवार या फिर दबाव के तहत मुस्लिम बना डाला, वो जबरदस्ती किये गये धर्मांतरण के कारण अपना हिंदू धर्म छोड़ने को विवश हो गये. ऐसी ही परिस्थितियों में हिंदुओं को नीचा दिखाने, मनोबल तोड़ने और नये- नये मुस्लिम बने लोगों को मजहबी तौर पर चुस्त बनाने और हिंदू धर्म से विरत करने के लिए तमाम मंदिर तोड़े गये.

संघ प्रमुख जो कह रहे हैं, उसका ऐतिहासिक आधार भी है. 1669 में जब औरंगजेब के समय काशी विश्वनाथ सहित तमाम हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया, तो उसका प्रमुख कारण ये था कि हिंदू से नया- नया मुसलमान बने लोगों की हिंदू धर्म प्रतीकों, तौर तरीकों और शिक्षा- उपासना की पद्धि में आस्था कम नहीं हुई थी. मुस्लिम भी गुरूकुलों में शिक्षा हासिल करने के लिए जा रहे थे, संस्कृत का अध्ययन कर रहे थे, पवित्र सरोवरों में स्नान कर रहे थे, चेचक से बचने के लिए शीतला माता की आराधना कर रहे थे. औरंगजेब जैसे कट्टर शासक को लगा कि अगर यही हाल रहा, तो तलवार या फिर जजिया कर न चुका पाने के कारण नये- नये मुस्लिम बने ये लोग वापस हिंदू बन सकते हैं या फिर नाम मात्र के ही मुस्लिम बने रह सकते हैं. ऐसे में भला औरंगजेब का पूरे हिंदुस्तान को इस्लाम के अधीन लाने का सपना कैसे पूरा होता. इसी कट्टर सोच के तहत उसने तमाम मंदिरों को तुड़वाया, पाठशालाएं ध्वस्त की, जजिया कर की वसूली और सख्त की, ताकि हिंदू बने रहना कठिन हो जाए और नये- नये मुस्लिम बने लोगों को इस्लाम अपनाये रहने के फायदे और फिर से हिंदू धर्म अपनाने की हालत में नुकसान नजर आए.

भागवत ने मजबूरी में मुसलमान बने ऐसे लोगों के लिए घर वापसी का विकल्प भी रखा और हिंदुओं से ऐसा करने वाले लोगों को खुले दिल से अपनाने की अपील की. जो इस्लाम में बने रहना चाहते हैं, उनसे भारतीयता के मूल तत्व को पकड़े रखने की सलाह भी दी, आखिर हजारों वर्षों से हिंदुस्तान की पहचान जो है वो. इस सिलसिले में उन्होंने पुराना रहन-सहन, पहनावा बनाये रखने पर जोर दिया, न कि विदेश की धरती से आक्रांताओं के जरिये थोपे गये रहन- सहन और पहनावा पर अमल करने की मजबूरी को बनाये रखना. अगर देखा जाए, तो भागवत जो कह रहे हैं, उसको मानने में भले ही कट्टरपंथी मौलानाओं या फिर मुस्लिम नेताओं को अपनी दुकान बंद होते दिख सकती है, लेकिन दुनिया का सबसे बडा मुस्लिम देश इसका बड़ा उदाहरण है. इसलिए इस्लाम को स्वीकार करने के बावजूद इंडोनेशिया के लोगों ने अपनी विरासत और संस्कृति से किनारा नहीं किया. उनके नाम आज भी हिंदू जैसे हैं, रामायण बैले पूरे इंडोनेशिया में होते हैं, बाली सहित तमाम जगहों पर हिंदू मंदिर बने हुए है, उनकी राष्ट्रीय एयरलाइंस का नाम आज भी गरूड़ है और मेघावती व सुकर्णों जैसे नाम बड़े-बड़े नेताओं के होते हैं. ऐसा नहीं कि इस्लाम स्वीकार करने के साथ ही नाम से लेकर पहनावा तक अरबी कर डाला. पायजामों के पांयचे टखनों से उपर जाना या फिर हिजाब के लिए जोर करना इसी मानसिकता का सूचक है, वो भी तब जबकि खुद सउदी अरब जैसा देश अपनी इमेज को दुरूस्त करने के लिए सिर्फ महिलाओं वाला विमान दस्ते की तस्वीरें पूरी दुनिया को दिखाता है, बो भी बिना हिजाब वाली युवतियों की.

जहां तक ज्ञानवापी का सवाल है, उसके बारे में भागवत सहित पूरे संघ परिवार का मानना है कि वो हिंदुओं की आस्था का वो पवित्र केंद्र है, वैसा ही जैसा कि अयोध्या या मथुरा का दर्जा है हिंदुओं के लिए. इन मसलों को बातचीत या फिर कानूनी तौर पर हल किय जाना चाहिए. जहां तक संघ के खुद सीधे-सीधे इसमें शामिल होने का सवाल है, संघ पहले ही साफ कर चुका है कि राम जन्मभूमि का आंदोलन ऐतिहासिक तौर पर शुरु हुआ था, जिसमें जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए संघ वीएचपी के जरिये इसमें शामिल हुआ था. ज्ञानवापी और मथुरा कृष्ण मंदिर के लिए जो आंदोलन हो रहे हैं, उसमे संघ के शामिल होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हिंदू समाज इसकी चिंता खुद कर सकता है, काफी जागरूक हो चुका है.

जहां तक तमाम मस्जिदों के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़ा करना है, उसके बारे में संघ की सोच ये है कि हर धर्म स्थल पर विवाद खड़ा करने से कोई फायदा नहीं होने वाला. जो महत्वपूर्ण हैं, आस्था के बड़े केंद्र हैं, उन पर जरूर ध्यान दिया जाना चाहिए, लेकिन सिर्फ विवाद खड़ा करने के लिए विवाद करना उचित नहीं है. इसका अर्थ कतई ये नहीं है कि संघ को ज्ञानवापी और मथुरा के मामले में कोई रुचि नहीं है या फिर वो उन लोगों की आलोचना करता है, जो ये कर रहे हैं. संघ का ध्यान सिर्फ इस बात पर है कि महत्वपूर्ण मुद्दों, स्थलों पर तो ठीक है, लेकिन हर जगह बेवजह विवाद नहीं खडा किया जा सकता.

वैसे भी हर आदमी के लिए अदालत का दरवाजा तो खुला ही है, ज्ञानवापी और मथुरा के अलावा अगर कही और भी सबूत हैं और अदालत अगर उसे सही मानती है, तो लोग अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे ही, संघ ऐसे लोगों का विरोध नहीं करेगा. मुद्दा सिर्फ ये है कि एक साथ हजारों मामलों को खड़ा कर देने पर विवाद कोई एक साथ सुलझने वाला नहीं है, आसान भी नहीं है. भारत के विश्वगुरू बनने का रास्ता इन विवादों की वजह से अवरुद्ध नहीं होना चाहिए, जिसकी नोटिस अब दुनिया ले रही है. भारत तभी मजबूत होगा, जब आंतरिक शांति बनी रहेगी, सभी पंथों के लोग मिलजुलकर भारत के मूल संस्कारों के साथ इसको आगे बढ़ाने का काम करेंगे. संघ की यही वो सोच है, जिसे भागवत स्वर दे रहे हैं, इससे ज्यादा उनके वक्तव्य में और कुछ पढ़ने की जरूरत नहीं. इससे जमीयत उलेमा ए हिंद जैसे मजहबी संगठनों और शशि थरूर जैसे बुद्धिजीवियों को भी सीख लेने की जरूरत है, जो सिर्फ और सिर्फ इस्लाम और मुस्लिम हितों की चिंता करते नजर आते हैं, भागवत जैसा समावेशी भाव नहीं रखते.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

ब्लॉगर के बारे में

ब्रजेश कुमार सिंह

ब्रजेश कुमार सिंह

लेखक नेटवर्क18 समूह में मैनेजिंग एडिटर के तौर पर कार्यरत हैं. भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली से 1995-96 में पत्रकारिता की ट्रेनिंग, बाद में मास कम्युनिकेशन में पीएचडी. अमर उजाला समूह, आजतक, स्टार न्यूज़, एबीपी न्यूज़ और ज़ी न्यूज़ में काम करने के बाद अप्रैल 2019 से नेटवर्क18 के साथ. इतिहास और राजनीति में गहरी रुचि रखने वाले पत्रकार, समसामयिक विषयों पर नियमित लेखन, दो दशक तक देश-विदेश में रिपोर्टिंग का अनुभव.

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