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Sanjay Sharma Museum Jaipur – News18 हिंदी

अंकित राजपूत/जयपुर. संजय शर्मा संग्रहालय जयपुर के जलमहल के सामने स्थित, यह भारत का पहला संग्रहालय है, जिसमें इतिहास के प्रमाणों को संजोकर रखा गया है. इस संग्रहालय में आपको ऋग्वेद से लेकर उदयकालीन समय तक की प्राचीन सभ्यताओं की संस्कृति से जुड़े प्रमाणिक आवश्यकियों का संग्रहण किया गया है. यह संग्रहालय विश्व का सबसे बड़ा संग्रहालय है, जिसमें एक व्यक्ति द्वारा संग्रहित किए गए पाण्डु लिपियों (पुरातात्विक पाण्डुलिपियां) का सबसे बड़ा संग्रहण है. इस संग्रहालय में देश के एक हजार से ज्यादा शहरों, नगरों, और कस्बों में किए गए कार्यों के प्रमाण दर्शाए जाते हैं, और इससे भारतीय इतिहास, संस्कृति, और पाण्डुलिपियों के महत्वपूर्ण पहलुओं का पता चलता है.

इस संग्रहालय में मौजूद हैं इतिहास के बेहतरीन स्त्रोत
इस संग्रहालय में इतिहास से जुड़ी और उस समय के समाज में प्रचलित प्रथाओं, संस्कार और वस्तुओं का संग्रह है. जिसमें भारत के विभिन्न महाराजाओं, योगियों और भोगियों के सैकड़ों साल के प्राचीन ऐतिहासिक चित्र, कलाकृतियां, वस्त्र, चन्दोवा, टेन्ट, कनाते, सोने, चांदी के काम के बर्तन, हजारों वर्ष पुराने इंडोर और आउटडोर गेम्स, द्विआयामी, त्रिआयामी, स्वचालित खिलौने, प्राचीन स्वचालित वाद्ययंत्र, पंखे, और यंत्रित वेदशाला जैसी चीजें शामिल हैं. इसके साथ ही, संग्रहालय में भारत के सैकड़ों साल के इतिहासिक स्थलों पर पाए जाने वाले कागज, कपड़ा, हाथी के दांत, लकड़ी, अभ्रक, मार्बल, और कांस्य के काम के प्रमाण हैं, जो प्राचीन महलों की आंतरिक सजावट में उपयोग किए गए थे. इसमें टेराकोटा, चीनी मिट्टी, पीतल, तांबा, कांस्य, कागज, कपड़ा, अभ्रक, ब्लू पोटरी, पेपरमेशी, और लकड़ी जैसी प्राचीन कलाओं के उत्कृष्ट उदाहरण शामिल हैं.

रामकृपालु शर्मा ने समर्पित किया अपना जीवन
पं. राम कृपालु शर्मा, जिन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रति गहरा अनुराग रखा, एक प्रमुख कवि, लेखक, चिंतक थे. उनका जन्म 4 सितंबर, 1932 को हुआ था, और उन्होंने 18 साल की आयु में ‘प्रान्जली’ नामक पुस्तक की रचना की, जो कि गद्य और पद्य से भरपूर थी. 1955 में रामकृपालु शर्मा ने अपनी आत्म-साधना और अपने निजी धन से संग्रहालय की स्थापना की, और आज यह संग्रहालय विश्व के सबसे बड़े हस्तलिखित ग्रंथाकारों के संग्रहालयों में से एक है. इसमें एक लाख हस्तलिखित ग्रंथ और हजारों प्राचीन कला सामग्री की संरक्षण की जाती है. रामकृपालु शर्मा के पुत्र पुण्यात्मा संजय शर्मा की बीमारी से स्वर्गवास होने के बाद, संग्रहालय का नाम संजय शर्मा संग्रहालय और शोध संस्थान के रूप में रखा गया. इस संग्रहालय को देखने के लिए 100 रुपए का टिकट लिया जाता है.

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