Rajasthan

पूनिया की वायरल चिठ्ठी में बीजेपी नेताओं पर कड़े आरोप– News18 Hindi

जयपुर. भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अंदरुनी कलह थमने का नाम नहीं ले रही है. पार्टी कार्यालय में पोस्टर विवाद और पूर्व मंत्री रोहिताश्व शर्मा को नोटिस के बाद अब लेटर का सियासी बम सामने आया है. प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया (Satish Poonia) का यह पत्र हालांकि 22 साल पुराना है, लेकिन इसमें बीजेपी के मौजूदा बड़े नेताओं पर आरोप जड़े हुए हैं. पत्र में उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ और राम सिंह कस्वां को भस्मासुर की संज्ञा दी गई है.

बीजेपी में वसुंधरा राजे ग्रुप और प्रदेश अध्यक्ष पूनिया के बीच लगातार खींचतान चल रही है. इसे वसुंधरा राजे के पार्टी कार्यालय पर लगे पोस्टर को हटाने से बल मिला था. इसके बाद वसुंधरा समर्थक पूर्व मंत्री रोहिताश्व शर्मा को अनुशासनहीनता के नोटिस ने आग में घी डालने का काम किया. हालांकि वसुंधरा की ओर से इन पर कोई टिप्पणी नहीं आई है, लेकिन पार्टी पदाधिकारियों ने राजे के पोस्टर हटाने को सही ठहराया है.

शेखावत, भाभड़ा ने पीठ में छुरा घोंपा

अब प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का पुराना पत्र वायरल हो रहा है. यह तब का है जब सतीश पूनिया बीजेपी युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष थे. टिकट न मिलने से क्षुब्ध होकर उन्होंने तब यह चिठ्ठी लिखी थी. गुलाब चंद कटारिया को लिखे इस खत में पूनिया ने भैरोंसिंह शेखावत, पूर्व उप मुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा और पूर्व मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी पर आरोप लगाया कि इन नेताओं ने उनकी पीठ में छुरा घोंपने का काम किया. जो नेता उनके सामने टिकट दिलवाने की बात करते ​थे, उन्होंने ही दिल्ली में उनका टिकट कटवा दिया.

संसदीय राजनीति के नाम पर घोर उपेक्षा

पूनिया ने तब क्षुब्ध होकर पार्टी छोड़ने की बात भी पत्र में लिखी थी. उन्होंने लिखा कि मैं बुरे दिनों में पार्टी के साथ रहा हूं और अच्छे दिनों में जिम्मेदारी छोड़ रहा हूं. क्योंकि संसदीय राजनीति के नाम पर पार्टी में घोर उपेक्षा की जा रही है. मेरे मुकाबले बार बार उन लोगों को तवज्जो मिलती है जो परंपरागत रूप से पार्टी की विचारधारा के घोर विरोधी हैं. उन्होंने चिठ्ठी में राजेंद्र राठौड़ और राम सिंह कस्वां जैसे नेताओं को भस्मासुर की भी संज्ञा दी.

पूनिया बोले 22 साल पुराना पत्र अब वायरल क्यों 

इस लेटर पर पूनिया ने कहा कि यह उनके खिलाफ सियासी षडयंत्र है. 22 साल पुराने पत्र का अब सामने लाने का क्या औचित्य है ? उस वक्त की राजनीतिक परिस्थितियों के हिसाब से यह पत्र लिखा गया था. उसे उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. मैं गांव का व्यक्ति हूं तो शहरी लोगों को पसंद नहीं आ रहा हूं. अब इस पत्र की कोई रिलेवेंसी नहीं है.

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