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सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 2 फैसले, उड़ गई कई बड़े नेताओं की नींद, आख‍िर ED को लेकर ऐसा क्‍या कहा द‍िया?

प्रवर्तन न‍िदेशायल (ED) को लेकर इन दिनों देशभर में सवाल उठ रहे हैं. विपक्षी नेता खासतौर से ED की कार्रवाई पर सरकार को निशाना बनाते रहे हैं, लेकिन पिछले दो दिनों में आए दो अदालती फैसलों ने उन नेताओं की नींद उड़ा दी है, जो ED की गिरफ्तारी के बाद या तो जेल में बंद हैं या फिर ED उनके खि‍लाफ कार्रवाई की तैयारी में है. देश को सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट और मद्रास हाई कोर्ट के ये दो फैसले यूं तो तमिलनाडु से जुड़े हैं लेकिन इनका असर ED से जुड़े देश भर के मामलों पर पड़ेगा.

दरअसल दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला सामने आया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की उस याचिका को खारिज केआर दिया जिसमें उन्होंने अपने चार डिस्ट्रिक्ट कलक्टरों को ED के समन को चुनौती दी थी. अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि ED किसी भी व्यक्ति को अपनी जांच के संबंध में समन कर सकती है और वो व्यक्ति उस समन की तामील के लिए बाध्य है। कोर्ट ने चारों वरिष्ठ अधिकारियों को समन की तामील करने और जाँच में सहयोग करने का भी निर्देश दिया. कोर्ट ने कहा कि ED PMLA क़ानून के तहत जाँच कर रही है और इस क़ानून के सेक्शन 50 के तहत वो जिसे भी समन करे, वो उसका सम्मान करने और पालन करने के लिए बाध्यकारी है.

दूसरा महत्वपूर्ण फ़ैसला कल यानी बुधवार को मद्रास हाई कोर्ट का सामने आया, जिसमें कोर्ट ने तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी की जमानत अर्ज़ी ख़ारिज करते हुए एक कड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर बेल (ज़मानत) को नियम और जेल (हिरासत) को अपवाद कहा जाता है, लेकिन PMLA में ये उलटा हो जाता है, यहाँ बेल अपवाद और जेल नियम बन जाता है. PMLA का सेक्शन 45(1) कहता है कि ज़मानत देने से पहले दो शर्तों का पालन होना ज़रूरी है। कोर्ट पूरी तरह से संतुष्ट होनी चाहिये कि आरोपी निर्दोष है और दूसरा वो ज़मानत पर रहते हुए दोबारा अपराध नहीं करेगा.

हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के इन फ़ैसलों ने PMLA क़ानून के तहत गिरफ़्तार और जेल में बंद नेताओं को नींद उड़ा दी है. ज़मानत के स्तर पर आरोपी का ये साबित करना कि वो पूरी तरह से निर्दोष है, बेहद मुश्किल है. ये काम ट्रायल में तो हो सकता है, लेकिन जमानत के स्तर पर लगभग नहीं। इसी तरह उन नेताओं और अन्य लोगों की भी परेशानी बढ़ा दी है, जो ED के समन को लगातार ठुकरा रहे हैं या उसका पालन नहीं कर रहे. कोर्ट ने साफ़ कर दिया है कि ED अपने मामले की जाँच के लिए किसी को भी समन करने के लिए स्वतंत्र है और समन पाने वाला उसकी तामील करने के लिए बाध्यकारी है.

Tags: Madras high court, Supreme Court

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