सुबह की बेला में कुमारिका, दोपहर में यौवना और शाम को प्रौढ़ रूप में देती हैं दर्शन Rajasthan News- Jaipur News- History of famous temple maa Tripura Sundari of Banswara- religious place-big center of faith

जयपुर. राजस्थान के दक्षिणांचल में छोटी काशी के नाम से मशहूर बांसवाड़ा (Banswara) नैसर्गिक सौंदर्य की दृष्टि से सुरम्य है. सैकड़ों पुरातन मंदिरों की श्रृंखला इसे धार्मिक आस्था में भी पहले पायदान पर रखती है. वागड़ प्रदेश का यह क्षेत्र अति प्राचीनकाल से ही धर्म क्षेत्र रहा है. देश में त्रिपुर सुंदरी (Tripura Sundari) के और भी मंदिर हैं, लेकिन बांसवाड़ा का पुरामहत्व का मंदिर अपनी निर्माण कला, शिल्प और भव्यता के चलते मरुधरा ही नहीं देशभर में प्रसिद्ध है.
यह 52 शक्तिपीठों में से एक है. इस क्षेत्र में प्रवाहित अजस्त्र सलीला ‘माही’ नदी को पुराणों में ‘कलियुगे माही गंगा’ की संज्ञा दी गई है. वागड़ में ही तीन नदियों का संगम वेणेश्वरधाम भी है. यह क्षेत्र नदियों, जलाशयों एवं प्रकृति की सुरम्य वादियों से आच्छादित है.
तीन शताब्दी पुराना है मंदिर का इतिहासत्रिपुरा सुंदरी मंदिर कितना प्राचीन है ? इसका कोई प्रामाणिक आधार तो नहीं है. लेकिन वर्तमान में मंदिर के उत्तरी भाग में सम्राट कनिष्क के समय का एक शिव-लिंग विद्यमान है. लोगों का विश्वास है कि यह स्थान कनिष्क के पूर्व-काल से ही प्रतिष्ठित रहा होगा. कुछ विद्वान् देवी मां की शक्तिपीठ का अस्तित्व यहां तीसरी सदी से पूर्व मानते हैं. क्योंकि पहले यहां ‘गढ़पोली’ नामक ऐतिहासिक नगर था. ‘गढपोली’ का अर्थ है-दुर्गापुर. ऐसा माना जाता है कि गुजरात, मालवा और मारवाड़ के शासक त्रिपुरा सुन्दरी के उपासक थे.
मंदिर के जीर्णोद्धार का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है
गुजरात के सोलंकी राजा सिद्धराज जयसिंह की यह इष्ट देवी रही हैं. मां की उपासना के बाद ही वे युद्ध प्रयाण करते थे. कहा जाता है कि मालव नरेश जगदेश परमार ने तो मां के श्री चरणों में अपना शीश ही काट कर अर्पित कर दिया था. उसी समय राजा सिद्धराज की प्रार्थना पर मां ने पुत्रवत जगदेव को पुनर्जीवित कर दिया था. त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के जीर्णोद्धार का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है. 1501 में महाराजा धन्या माणिक्य देबबर्मा द्वारा किया गया था. कहा जाता है कि राजा के द्वारा युद्ध के मैदान में देवी त्रिपुरा सुंदरी माता की छोटी मूर्ति को ले जाया गया था.
तीन पुरियों में स्थित है त्रिपुरा सुंदरी मंदिर
नवरात्र में माता त्रिपुरा सुंदरी के दर्शन का विशेष महत्व है. बांसवाड़ा जिले से करीब 18 किलोमीटर दूर तलवाड़ा गांव में अरावली पर्वतमालाओं के बीच माता त्रिपुरा सुंदरी का भव्य मंदिर है. मुख्य मंदिर के द्वार के किवाड़ आदि चांदी के बने हैं. सिंहवाहिनी मां भगवती त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति अष्टदश (अठारह) भुजाओं वाली है. पांच फीट ऊंची मूर्ति में माता दुर्गा के नौ रूपों की प्रतिकृतियां अंकित हैं. माता के सिंह, मयूर और कमलासीनी होने के कारण यह दिन में तीन रूपों को धारण करती हुई प्रतीत होती है. इसमें प्रात:कालीन बेला में कुमारिका, मध्यान्ह में यौवना और सायंकालीन वेला में प्रौढ़ रूप में मां के दर्शन होती है. माता की इसी विशिष्टता के चलते इसे त्रिपुरा सुंदरी कहा जाने लगा. यह भी कहा जाता है कि मंदिर के आस-पास पहले कभी तीन दुर्ग थे. शक्तिपुरी, शिवपुरी तथा विष्णुपुरी नामक इन तीन पुरियों में स्थित होने के कारण देवी का नाम त्रिपुरा सुन्दरी पड़ा. जगतजननी त्रिपुरा सुन्दरी शक्तिपीठ के कारण यहां की लोक सत्ता प्राणवंत, ऊर्जावान और शक्ति सम्पन्न है.
त्रिपुरा सुंदरी 52 शक्तिपीठों में शामिल
पौराणिक कथानुसार दक्ष प्रजापति का यज्ञ तहस-नहस हो जाने के बाद भगवान शिव जब सती की मृत देह कंधे पर रख कर झूमने लगे. तब भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए योगमाया के सुदर्शन चक्र की सहायता से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर भूतल पर गिरा दिया. उस समय जिन-जिन स्थानों पर सती के अंग गिरे वे सभी स्थल शक्तिपीठ बन गए. ऐसे शक्तिपीठ 52 हैं और उन्हीं में से एक शक्तिपीठ है त्रिपुरा सुंदरी. मां की मूर्ति के पीछे पीठ पर 42 भैरवों और 64 योगिनियों की बहुत ही सुंदर मूर्तियां अंकित हैं. भगवती की मूर्ति के दायीं और बायीं ओर के भागों में श्रीकृष्ण तथा अन्य देवियां और विशिष्ट पशु अंकित हैं और देव-दानव-संग्राम की झांकी दृष्टिगत होती है.
गर्भगृह में 18 भुजाओं वाली आकर्षक मूर्ति
त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के गर्भगृह में देवी की विविध अस्त्र-शस्त्रों से युक्त अठारह भुजाओं वाली श्यामवर्णी, अत्यंत तेजयुक्त आकर्षक मूर्ति है. भक्तजन उन्हें तरताई माता, त्रिपुरा सुन्दरी, महात्रिपुरसुन्दरी आदि नामों से संबोधित करते हैं. मां भगवती सिंहवाहिनी हैं. इसके प्रभामण्डल में नौ-दस छोटी मूर्तियां भी हैं जिन्हें दस महाविद्या अथवा नव दुर्गा कहा जाता है. मूर्ति के नीचे के भाग में काले और चमकीले संगमरमरी पत्थर पर श्रीयंत्र उत्कीर्ण है जिसका विशेष तांत्रिक महत्व है. मंदिर के पृष्ठ भाग में त्रिवेद, उत्तर में अष्ट भुजा सरस्वती मंदिर, दक्षिण में काली मंदिर था. उसके अवशेष आज भी विद्यमान हैं. यहां देवी के अनेक सिद्ध उपासकों व चमत्कारों की गाथाएं सुनने को मिल जाती हैं.

मुख्य मंदिर के द्वार के किवाड़ आदि चांदी के बने हैं. सिंहवाहिनी मां भगवती त्रिपुरा सुंदरी की मूर्ति अष्टदश (अठारह) भुजाओं वाली है.
नवरात्रों में नौ दिन तक विशेष कार्यक्रम
मंदिर शताब्दियों से विशिष्ट शक्ति साधकों का प्रसिद्ध उपासना केन्द्र रहा है. इस शक्तिपीठ पर दूर-दूर से लोग आकर शीश झुका मां का आशीर्वाद पाते हैं. नवरात्रि पर्व पर इस मंदिर परिसर में प्रतिदिन समारोहपूर्वक विशेष कार्यक्रम होते हैं. नौ दिन तक त्रिपुरा सुंदरी की नित-नूतन श्रृंगार की मनोहारी झांकी बरबस मन मोह लेती है. चौबीसों घंटे भजन-कीर्तन, जागरण, साधना, उपासना, जप व अनुष्ठान की लहर में डूबा हर भक्त हर पल केवल माता की जय का उद्घोष करता दिखाई देता है. प्रथम दिवस शुभ मुहूर्त में मंदिर में घट स्थापना की जाती है. शुद्ध स्थान पर गोबर मिट्टी बिछा कर उसमें जौ या गेहूं बोये जाते हैं. इसके समीप ही अखण्ड ज्योति जलाई जाती है. दो-तीन दिन पश्चात् धान के अंकुर फूटते हैं, जिन्हें ज्वारे कहते हैं. नवरात्रि की अष्टमी और नवमी को यहां हवन होता है. तत्पश्चात् पूजा अर्चना करके इस कलश को ज्वारों सहित माही नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है. विसर्जन स्थल पर पुनः एक मेला सा जुटता है.
मंदिर के पास दिवाली पर मेले का आयोजन
दिवाली पर त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के पास हर साल विशाल मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें लगभग दो लाख से अधिक तीर्थयात्री शामिल होते हैं. दीवाली वह त्यौहार है जो व्यापक रूप से देवी सती या मां काली की प्रार्थना करने के लिए देशभर में सबसे अधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है. मेले में राजस्थान के अलावा गुजरात, मध्यप्रदेश आदि के लोग भी शिरकत करते हैं. मंदिर में अन्य सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में दुर्गा पूजा और काली पूजा भी शामिल हैं.
मंदिर की देखभाल पांचाल समाज का दायित्व
कहा जाता है कि मंदिर का जीर्णोद्धार तीसरी शताब्दी के आस-पास पांचाल जाति के चांदा भाई ने करवाया था. मंदिर के समीप ही भागी (फटी) खदान है, जहां किसी समय लोहे की खदान हुआ करती थी. किंवदंती के अनुसार एक दिन त्रिपुरा सुंदरी भिखारिन के रूप में खदान के द्वार पर पहुंची, किन्तु पांचालों ने उस तरफ ध्यान नहीं दिया. देवी ने क्रोधवश खदान ध्वस्त कर दी, जिससे कई लोग काल के ग्रास बने. देवी मां को प्रसन्न करने के लिए पांचालों ने यहां मां का मंदिर तथा तालाब बनवाया. पुन: मंदिर का जीर्णोंद्धार 19वीं शताब्दी में कराया गया. सं. 1930 वि. में पांचाल-समाज द्वारा मंदिर पर नया शिखर चढ़ाया गया. आज भी त्रिपुरा सुन्दरी मंदिर की देखभाल पांचाल समाज ही करता है. पांचाल जाति के लोग मां त्रिपुरा को अपनी ‘कुल देवी’ मानते हैं.
खुदाई में निकली थी शिव-पार्वती की मूर्ति
पुरातन काल में इस मंदिर के पीछे के भाग में कदाचित्त अनेक मंदिर थे. सन 1982 ई. में खुदाई करते समय उनमें से अनेक मूर्तियां प्राप्त हुईं हैं, जिनमें से भगवान् शिव की एक बहुत ही सुंदर मूर्ति प्रमुख है. शिव जी की जंघा पर पार्वती विराजमान हैं और एक ओर ऋद्धि-सिद्धि सहित गणेश तथा दूसरी ओर स्वामी कार्तिकेय हैं. मां त्रिपुरा के उक्त मंदिर में प्रतिदिन उपासकों और दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है.
शक्ति की उपासना के लिए चारों नवरात्र श्रेष्ठ
भारतीय आध्यात्म में शक्ति उपासना के लिए नवरात्र को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है. यूं तो वर्षभर में चार नवरात्र आते हैं. इनमें चैत्र या बासंती और शारदीय नवरात्र का विशेष महत्व है. इसके अलावा दो नवरात्र गुप्त माने जाते हैं. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से रामनवमी तक बासंती नवरात्र और शारदीय नवरात्र अश्विन शुक्ल पद की प्रतिपदा से मनाए जाते हैं. इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. यहां दोनों नवरात्र के दिनों में धार्मिक आयोजन होते हैं. गरबा, डांडिया समेत कई प्रकार के नृत्य व दुर्गा पाठ के आयोजन होते हैं.
वाजपेयी बोले-त्रिपुरा नहीं, त्रिपुर सुंदरी कहो
मंदिर की महत्ता के चलते देश के कई बड़े नेताओं ने भी मां का आशीर्वाद लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी, हरिदेव जोशी, वसुंधरा राजे, अशोक गहलोत सहित कई बड़े नाम है जो मंदिर में दर्शन के बाद ही अपना बांसवाड़ा का दौरा शुरू करते हैं. पूर्व सीएम वसुंधरा राजे चुनाव परिणाम के दिन यही मां की शरण में आ जाती हैं. 1982 में अटल बिहारी वाजपेयी ने वहां मौजूद पंडित से पूछा कि मंदिर का नाम त्रिपुरा सुंदरी किसने किया ? क्योंकि इस मंदिर का नाम तो त्रिपुर सुंदरी मंदिर है. पंडित ने उन्हें बताया कि स्थानीय लोगों के बोलते बोलते अपभ्रंश हो गया. अब लोग त्रिपुरा सुंदरी मंदिर कहते हैं. तब वाजपेयी ने कहा कि इस मंदिर को त्रिपुर सुंदरी ही कहो.