स्मृति शेष: किरोड़ी सिंह बैंसला के एक इशारे पर मच जाता था सरकार में हड़कंप, पढ़ें पूरी जीवनी
करौली. गुर्जर आरक्षण आंदोलन की अगुवाई करने वाले कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला (Colonel Kirori Singh Bainsla) राजस्थान की एक ऐसी शख्सियत थी जिनके एक इशारे पर जहां गुर्जर समाज (Gujjar Samaj) उठ खड़ा होता था वहीं सरकार में हड़कंप मच (Stir in government) जाता था. कर्नल बैंसला का लंबी बीमारी के बाद गुरुवार को सुबह जयपुर में निधन (passed away) हो गया. बैंसला के निधन पर सीएम अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे समेत बीजेपी तथा कांग्रेस सहित अन्य पार्टियों से जुड़े नेताओं ने गहरा दुख जताया है. वहीं बैंसला के निधन से गुर्जर समाज में शोक की लहर दौड़ गई है. भारतीय सेना में सेवा देने के बाद कर्नल बैंसला ने समाज को आरक्षण दिलाने का बीड़ा उठाया था और उसके लिये वे आखिरी दम तक लड़ते रहे. यह बात दीगर है इस दौरान आंदोलन में कई तरह के दौर आये. कभी बिखराव तो कभी टकराव के हालात भी बने.
राजस्थान के करौली जिले के मूंडिया गांव में 12 सितंबर 1939 को जन्मे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई थी. उसके बाद उन्होंने भरतपुर और जयपुर के महाराजा कॉलेज में पढ़ाई की. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे महुआ में अंग्रेजी विषय के व्याख्याता के पद पर रहे. 2 साल तक व्याख्याता के पद पर नौकरी करने के बाद पिता के फौज में होने के चलते उनका रूझान भी सेना में जाने का हुआ और आखिर वो भी सिपाही के रूप में सेना में भर्ती हो गए.
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का निधन, गुर्जर आरक्षण आंदोलन को लेकर देशभर में हुये थे चर्चित
दो युद्धों में भूमिका निभाई थी बैंसला ने
बैंसला सेना की राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए थे. सेना में रहते हुए 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बहादुरी से वतन के लिए जौहर दिखाया. सेना में रहते हुए बैंसला एक बार पाकिस्तान के युद्धबंदी भी रहे. बताया जाता है कि बैंसला सेना में दो उपनामों से जाने जाते थे. उनके सीनियर्स उन्हें ‘जिब्राल्टर की चट्टान’ और साथी कमांडो ‘इंडियन रेम्बो’ कह कर बुलाते थे. सेना में अपनी जांबाजी के दम पर एक सिपाही से तरक्की पाते हुए कर्नल की रैंक तक पहुंचे.
1991 में भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हुये थे कर्नल बैंसला
1991 में भारतीय सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद 1994 में उनकी धर्मपत्नी ग्राम पंचायत मुड़िया की सरपंच बनी. इसके बाद 1996 में उनकी धर्मपत्नी की मृत्यु हो गई. बैंसला अब अपने बेटे के साथ हिंडौन के वर्धमान नगर में रहते थे. सेना में सेवा देने के बाद जब कर्नल बैंसला वापस लौटे तो उन्होंने गुर्जर समुदाय को आरक्षण दिलाने के लिय अपनी नई लड़ाई शुरू की.
कई बार ट्रेनें रोकी और पटरियों पर धरने पर बैठे
सार्वजनिक जीवन में आने के बाद वे गुर्जर आरक्षण समिति की अगुवाई करते हुए सरकारों से अपनी मांगें मनवाने में जुट गए. कई बार आंदोलनों के दौरान ट्रेनें रोकी, पटरियों पर धरने पर बैठे और सरकारों को आरक्षण पर फैसले के लिए मजबूर किया. हालांकि उनके इन आंदोलनों में 70 से अधिक लोगों की मौत भी हुईं. आरक्षण आंदोलन के कारण बैंसला को देशव्यापी पहचान मिली.
अब्राहम लिंकन से प्रभावित थे बैंसला
बैंसला का कहना था कि उनके जीवन को मुगल शासक बाबर और अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन दो लोगों की जीवनी ने प्रभावित किया है. उन्होंने वर्ष 2009 में टोंक- सवाई माधोपुर लोकसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन वे हार गए. कर्नल बैंसला दोनों ही प्रमुख राजनीति दल बीजेपी और कांग्रेस पर गुर्जर समाज की उपेक्षा के आरोप लगाते रहे.
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला पर भी लगे थे आरोप
उसके बाद उन पर खुद अथवा बेटे विजय बैंसला के लिए लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों पर टिकट के लिए दबाब बनाने के आरोप लगे हैं. बताया ये भी जा रहा है कि बेटी सुनीता को अजमेर लोकसभा सीट से बीजेपी का टिकट दिलाने की भी जोर आजमाइश जारी है. कर्नल बैंसला को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नजदीकी माना जाता था लेकिन वे कांग्रेसी विचारधारा से कम ही प्रभावित थे.
तीन बेटे और एक बेटी हैं कर्नल बैंसला के
मूंडिया गांव निवासी बच्चू सिंह बैंसला और रेशम देवी गुर्जर के घर जन्मे किरोड़ी सिंह बैंसला के तीन बेटे और एक बेटी है। इनमें बेटी सुनीता बैसला इनकम टैक्स सर्विस में है. वहीं बड़े बेटे दौलत सिंह बैसला भारतीय थल सेना ब्रिगेडियर और दूसरे बेटे जय सिंह बैंसला असम राइफल में डीआईजी हैं. उनके तीसरे बेटे विजय बैसला इंजीनियरिंग सेवा में हैं. बैंसला ने विजय सिंह बैंसला को अपना उत्तराधिकारी बना दिया था.
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