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‘हारे का सहारा, खाटू श्याम हमारा’, क्यों बाबा को कहा जाता कलयुग का अवतार? पढ़ें बर्बरीक से कैसे बने देवता

राहुल मनोहर/ सीकर. जिले में स्थित खाटूश्याम जी में हर रोज लाखों श्रद्धालु शीश नवाने के लिए आते हैं. बाबा शाम को ‘हारे का सहारा’ और ‘लखदातार’ कहा जाता है. कोरोना के बाद बाबा श्याम के दरबार में आने वाले भक्तों की संख्या में कई गुना तक बढ़ोतरी हुई है. नए साल पर बाबा श्याम की नगरी में आकर 5 लाख से अधिक भक्तों ने शाम के दर्शन किए थे.

ऐसे में दिनों दिन बाबा श्याम की आस्था लोगों में बढ़ती जा रही है लेकिन क्या आपको पता है कि बाबा श्याम को भगवान कृष्ण का अवतार क्यों कहा जाता है और क्यों उन्हें कलयुग का देवता माना जाता है. क्या कारण है कि हजारों मीलों से दूर से भी भक्त उनकी ओर खींचे चला आता है. आज की स्पेशल स्टोरी में जाने बर्बरीक से श्याम बनने की पूरी कहानी…

बाबा श्याम का असली नाम है बर्बरीक
महाभारत में वर्णित है कि भीम के पुत्र घटोत्कच थे. उन्हीं के पुत्र थे बर्बरीक. बर्बरीक देवी मां के भक्त थे. बर्बरीक की तपस्या व भक्ति से प्रसन्न होकर देवी मां ने उन्हें तीन तीर दिए थे जिनमें से एक तीर से संपूर्ण वे पृथ्वी का विनाश कर सकते थे. ऐसे में जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तो बर्बरीक ने अपनी माता हिडिम्बा से युद्ध लड़ने की पेशकश की.

तब बर्बरीक की माता ने सोचा कि कौरवों की सेना बड़ी है और पांडवों की सेना छोटी इसलिए शायद युद्ध में कौरव पांडवों पर भारी पड़ेंगे. तब हिडिंबा ने कहा कि तुम हारने वाले के पक्ष में युद्ध लड़ोगे.

श्रीकृष्ण ने शीश दान में मांगा
इसके बाद माता की आज्ञा लेकर बर्बरीक महाभारत के युद्ध में शामिल होने के लिए निकल पड़े. लेकिन, भगवान श्रीकृष्ण को पता था कि जीत पांडवों की होने वाली है अगर बर्बरीक युद्ध स्थल पर पहुंचते हैं तो वे कौरव पक्ष में युद्ध लड़ेंगे. इसलिए भगवान श्री कृष्णा भिक्षु का रूप धारण कर बर्बरीक के पास पहुंचे तब. भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया.

दानशीलता के कारण बर्बरीक ने बिना किसी सवाल के अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को दान दे दिया. इसी दानशीलता के कारण श्री कृष्ण ने कहा कि तुम कलयुग में मेरे नाम से पूजे जाओगे, तुम्हें कलयुग में श्याम के नाम से पूजा जाएगा, तुम कलयुग का अवतार कहलाओगे और ‘हारे का सहारा’ बनोगे.

नदी में बहकर खाटू आया था श्याम का शीश
घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने जब भगवान श्री कृष्ण को अपना शीश दान में दिया तो बर्बरीक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा जताई तब श्री कृष्ण ने बराबरी के शीश को ऊंचाई वाली जगह पर रख दिया. तब बर्बरीक ने संपूर्ण महाभारत का युद्ध देखा. युद्ध समाप्ति के बाद भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को गर्भवती नदी में बहा दिया.

ऐसे में गर्भवती नदी से बर्बरीक यानी बाबा श्याम का शीश बहकर खाटू (उसे समय की खाटूवांग नगरी) आ गया. खाटूश्याम जी में गर्भवती नदी 1974 में लुप्त हो गई थी.

श्याम कुंड में मिला बाबा श्याम का शीश
स्थानीय लोगों के अनुसार पीपल के पेड़ के पास रोज एक गाय अपने आप दूध देती थी. ऐसे में लोगों को हैरानी हुई तो उन्होंने उसे जगह खुदा तो बाबा श्याम का शीश निकला. बाबा श्याम का यह शीश फाल्गुन मास की ग्यारस को मिला था. इसलिए बाबा श्याम का जन्मोत्सव भी फाल्गुन मास की ग्यारस को ही मनाया जाता है. खुदाई के बाद ग्रामीणों ने बाबा श्याम का शीश चौहान वंश की नर्मदा देवी को सौंप दिया. इसके बाद नर्मदा देवी ने गर्भ गृह में बाबा श्याम की स्थापना की और जिस जगह बाबा श्याम को खोदकर निकाला गया वहां पर श्याम कुंड बना दिया गया.

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सबसे बड़ा आस्था का केंद्र बना खाटूश्याम जी
खाटूश्याम जी में स्थित बाबा श्याम को भगवान कृष्ण का अवतार माना जाता है. कोरोना के बाद लगातार खाटूश्याम जी आने वाली श्रद्धालुओं की तादाद कई गुना बड़ी है. पर्यटन विभाग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में सबसे ज्यादा श्रद्धालु इस बार खाटूश्याम जी आए हैं.

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पर्यटन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार खाटूश्याम जी जयपुर को टक्कर दे रहा है. इस बार नए साल पर अनुमान के अनुसार 5 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने बाबा श्याम के दर्शन किए हैं. ऐसे में धीरे-धीरे बाबा श्याम की आस्था लोगों में धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है और बड़ी तादाद में श्याम वक्त खाटू श्याम जी आ रहे हैं.

Tags: Dharma Aastha, Khatu Shyam Yatra, Rajasthan news, Religion 18, Sikar news

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