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हैरिटेज निगम के किशनपोल और हवामहल जोन जवाबदेह बने तो बने बात

दुनिया भर में भारत की आन बान शान की पहचान है जयपुर। जिसे गुलाबी नगरी के नाम से ही पहचान नहीं मिली ब​ल्कि भारत का पैरिस भी कहा जाता है। यहीं नहीं शहर की चारदीवारी की बनावट ने इसे यूनेस्कों की सूची में डालकर वर्ल्ड क्लास सिटी का दर्जा भी कुछ समय से दिला दिया है लेकिन अब इसकी मूल बसावट पर ग्रहण लगने लगा है। इसके सौंन्दर्य को बरकरार रखने की जवाबदेही नगर निगम हैरिटेज की है लेकिन जवाबदेह अ​धिकारी वातानुकूलित कमरों में बैठकर खानापूर्ति करके आयाराम गयाराम हो जाते हैं। जवाबदेही स्मार्ट सिटी के सीईओं की भी है लेकिन वह भी इसके रखरखाव के लिए मिलने वाले बजट को हिरमच पोत ठिकाने लगा देते हैं। चारदीवारी के वैभव को बरकरार रखने के लिए हैरिटेज नगर निगम के इवामहल ओर किशनपोल जोन जवाबदेह है,लेकिन कितनी जवाबदेही यह जिम्मेदाराना अंदाज में निभाते है वह जयपुर में इनके क्षेत्रा​धिकार वाले इलाके स्वयं बयां कर रहे हैं।

वर्तमान परिपेक्ष्य में देखें तो किशनपोल और हवामहल जोन में एक के बाद एक अवैध निर्माणों की खेती कुकरमुत्ते की तरह हो रही है। इन पर लगाम न तो कल लगी और न ही आज एवं न ही आने वाले कल में लगने वाली। सख्त रवैया अख्त्यार करने पर भी चार ​दीवारी में आवासीय के नाम पर व्यावसायिकता की खेती यू ही फलती फूलती रहेगी। अवैध निर्माणों की मिलने वाली ​शिकायतों को दफ्तरें दा​खिल कर दिया जाता है। यह सब मिलीभगत के खेल के संभव नहीं है। इसमें एक मात्र ब्यूरोक्रेसी को या किसी एक जोन को दोषी ठहराया जाना भी उचित नहीं है। प्रदेश में जिस तरह बजरी माफिया ने पैर पसार रखे हैं उसी तरह चारदीवारी की विरासत को भेदकर तहस-नहस करने के लिए भी माफिया जाल बना हुआ है। इस जाल में एडी से लेकर चोटी तक सारा का सारा सिस्टम भ्रष्टाचार की आचार संहिता का हिस्सा बना हुआ है,जिसके चलते मुख्य बाजारों में ही नहीं शहर को एक दूसरे से जोड़ती तंग गलियों में भी जाम के हालात रहते हैं। पकड़म पकड़ाई भी खानापूर्ति की तरह होती है। पकड़े गए जो चोर बाकी सब साहुकार करार दे दिए जाते हैं और लम्बे अर्से से चारदीवारी में इस खेल के चलते मूल स्वरूप को दीमक की तरह चाटा जा रहा है।

हो सकता है समस्या का समाधान मिल सकती है राहत : जब अवैधानिक तौर पर आवासीय के नाम पर व्यावसायिकता की रेवड़ी गली-गली बांटी जा रही है तो इसी में पार्किग का समाधान भी निकल सकता है। तंग रास्तों में हो रहे आवा​सीय के नाम पर व्याव​सायिक निर्माणों में अगर स्टील या फिर मिनी बेसमेंट में पा​र्किंग प्रावधान के प्रति सख्त रवैया अख्त्यार कर ले तो शहर की तंग गलियों की पार्किग  काफी हद तक सुधर सकती है। एक छोटे से छोटे व्यावसायिक परिसर में जब चाल आती है तो कम से कम दो दर्जन से ज्यादा दुपहिया वाहन रास्ता जाम के हालात पैदा कर देते हैं जो स्टील या फिर मिनी बेसमेंट के वर्रचस्व में आने के बाद नहीं होगा और आम आदमी को बहुत बड़ी राहत मिलेगी। निगम बायलाज को धत्ता बताते हुए जब इतना सबकुछ आंख मूंद कर हो रहा है तो आने  वाले कल की सहुलियत के मद्देनजर चारदीवारी के तंग रास्तों में पार्किंग भी अवैधानिक तरीके से बनाई जा सकती है लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि आयाराम गयाराम के नाम पर बाटी जा रही रेविडियों के बीच अपने हाथ कोई अ​धिकारी कोई नेता कोई कर्मचारी नहीं जलाना चाहेगा। अगर किसी ने रिस्क लेकर यह बीड़ा उठा लिया तो चारदीवारी के बां​शिन्दें ही नहीं ब​ल्कि आने वाले कल में व्यापारी भी आवासीय के नाम पर बने व्यावसा​यिक परिसर में बैठकर पार्किंग मुहैया कराने वाले अ​धिकारी का शुक्रिया अदा करेंगे।

आज जयपुर व्यापार महासंघ के तले जयपुर के व्यापारियों ने बड़ी चौपड़ पर धरना दिया अपनी समस्याओं को लेकर उसमें भी तंग गलियों में लगने वाले जाम का जिक्र भी हुआ। पार्किंग समस्या वर्ल्ड क्लास हैरिटेज के लिए एक ऐसी दीमक है जिसका समय पर निदान करने की नहीं सोची तो आने वाले कल के परिणाम ऐसे देखने को मिलेंगे जिसके चलते रूह भी कांप जाए तो कोई बड़ी बात नहीं

  • प्रेम शर्मा

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