Rajasthan

12 घंटे चला ऑपरेशन, पापा को डोनेट किया लिवर, मगर नहीं बचा सकी जिंदगी, अब बनूंगी डॉक्टर

शक्ति सिंह/कोटा. यह कहानी है संघर्ष से सफलता तक की जहां कोटा कोचिंग के एक स्टूडेंट ने पढ़ाई के दौरान लीवर सिरोसिस से जूझते पिता को खुद का लीवर डोनेट किया. जीवन बचाने का यह प्रयास सफल नहीं हुआ और एग्जाम से पहले पिता को खो दिया. फिर भी हिम्मत रखी और कड़ी मेहनत कर मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट-यूजी 2023 को क्रेक कर दिखाया. जी हां हम बात कर रहे हैं ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले में स्थित पारादीप पोर्ट निवासी एलन स्टूडेंट स्नेहा श्रावणी नायक की. स्नेहा देश में लीवर डोनेट करने वाली संभवतया सबसे कम उम्र की दूसरी डोनर है. इससे पहले केरल के त्रिशूर जिले की 17 वर्षीय देवानंदा ने अपने पिता को लीवर डोनेट किया था.

स्नेहा ने बताया कि मैं पढ़ाई में होशियार थी और डॉक्टर बनना मेरा सपना है. मैंने ओडिशा बोर्ड से दसवीं में 91.33 प्रतिशत एवं 12वीं में 90.58 प्रतिशत अंक प्राप्त किए. फिर वर्ष 2022 में नीट की तैयारी के लिए कोटा आ गई. पिता हेमंत कुमार नायक पारादीप में ही प्रिंटिंग प्रेस चलाते थे. उन्हें कुछ सालों से पेट में गैस व फैटी लीवर जैसी समस्याएं थी, फिर वजन कम होने लगा और पेट में पानी भरने लग गया. 16 अगस्त 2022 को तबियत ज्यादा खराब हो गई और मम्मी उन्हें इलाज के लिए हैदराबाद लेकर गई. जांच के बाद लीवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी. इसी दिन एलन में मेरा पहला मेजर टेस्ट था.

खुद का वजन घटाना पड़ा
स्नेहा ने बताया कि लीवर ट्रांसप्लांट कराने का निर्णय लिया गया. डॉक्टरों ने बताया कि सिर्फ पत्नी और बच्चे ही लीवर डोनेट कर सकते हैं. नियमानुसार उम्र 40 से कम एवं 18 वर्ष से ज्यादा होनी चाहिए. ऐसे में सिर्फ मैं ही लीवर डोनेट कर सकती थी. संयोग से उस समय मेरी उम्र 18 वर्ष दो महीने हो चुकी थी. मुझे हैदराबाद जाना था. मैं 19 सितंबर को कोटा से रवाना हुई मेरा लीवर भी फैटी आया. इसलिए डॉक्टर्स ने छह दिन में तीन किलो वजन यानी 59 किलो से घटाकर 56 किलो करने को कहा. मैं सुबह-शाम चार-चार किलोमीटर वॉक करती थी. एक-एक रोटी और सलाद खाती थी. दूध-चाय बंद कर दिया. इसी दौरान मैं और पापा कोरोना पॉजिटिव भी हो गए थे.

12 घंटे चला ऑपरेशन
डॉक्टर्स ने लीवर ट्रांसप्लांट के लिए 10 अक्टूबर 2022 का दिन निश्चित किया. सुबह 6.45 बजे सबसे पहले मेरा ऑपरेशन शुरू हुआ और शाम को 7.30 बजे खत्म हुआ. मेरा गॉल ब्लैडर भी निकाल दिया, क्योंकि लीवर गॉल ब्लैडर से कवर होता है. इसलिए उसे निकाले बिना लीवर तक नहीं पहुंच सकते. मुझे जीवनभर बिना गॉल ब्लेडर के रहना है. फिर सुबह 11 बजे पापा का ऑपरेशन शुरू हुआ और रात में 11.45 बजे तक चला. मुझे 1 नवंबर 2022 को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज दे दिया था. मैं कोटा आ गई और मम्मी-पापा को हैदराबाद ही रहना पड़ा. ऑपरेशन की वजह से मेरे पेट में दर्द रहता था. दर्द से ध्यान भटकाने के लिए डाउट सॉल्व करने बैठ जाती थी. मैंने 68 प्रतिशत लीवर डोनेट किया है.

कमाई का जरिया हुआ खत्म
स्नेहा ने बताया कि पापा की प्रिंटिंग प्रेस से अच्छी इनकम हो जाती थी. बीमारी में करीब 60 लाख रूपए खर्च हुए. सारी सेविंग्स चली गई. मामा, मौसी व अन्य रिश्तेदारों ने भी मदद की. पापा की तबियत खराब होने से प्रिंटिंग प्रेस बंद थी, ऐसे में कमाई का जरिया भी खत्म हो गया था. ऑपरेशन के डेढ़ महीने बाद मम्मी-पापा घर लौट गए लेकिन, दिसंबर में पापा को बुखार आने लग गया. पता चला कि लीवर में इंफेक्शन हो गया है तो फिर से उपचार शुरू हुआ. 27 जनवरी को पापा को डिस्चार्ज दे दिया. मम्मी-पापा घर चले गए और मैं कोटा आ गई. जो टॉपिक्स छूट गए थे, फैकल्टीज ने उन्हें कवर करवाया. जनवरी में कोटा आने के बाद पढ़ाई शुरू करने लगी लेकिन, 9 फरवरी 2023 को पापा की तबियत ज्यादा खराब हो गई थी. एम्स भुवनेश्वर में एडमिट कराया.

मेंटोर ने किया सपोर्ट
स्नेहा ने बताया कि 15 फरवरी को कोटा से रवाना हुई. पहुंची तब तक पापा का निधन हो चुका था. छोड़ दिया था कोटा, फैकल्टीज ने बुलाया मैं आधे साल भी कोटा नहीं रह सकी. एलन की फैकल्टीज ने हर तरह से सपोर्ट किया. पापा के जाने के करीब 15 दिन बाद मेंटोर का कॉल आया तो मैंने उन्हें कहा कि अब मैं नहीं आऊंगी. उन्होंने मोटिवेट किया तो वापिस हॉस्टल में बात की और कोटा आ गई. पांच माइनर टेस्ट दिए. मेजर टेस्ट में रैंक 3032, तीसरे मेजर में 1736, ऑल इंडिया ओपन टेस्ट में रैंक 971 एवं इसके बाद रैंक 1726 हासिल की.

Tags: Local18, Success Story

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