50 साल के इस शख्स ने अब तक बनाई है लाखों पतंगें, खरीदारी के लिए दूसरे राज्यों से आते है लोग

अंकित राजपूत/ जयपुर. मकर संक्रांति का त्यौहार नजदीक आ रहा है और बाजारों में पतंगों की रौनक दिखाई देने लगी हैं. जयपुर में संक्रांति पर पतंगबाजी का उत्साह अलग ही देखने को मिलता है. बता दें कि पुराने समय से ही पतंगबाजी का चलन है. साथ ही यहां बनने वाली पंतगो की डिमांड भी खूब रहती हैं. आज आपके ऐसे ही एक परिवार के बारे में बताएंगे जो सालों से पंतग बन रहा हैं. वैसे जयपुर में सिर्फ पंतग ही बनती हैं. पंतग को उड़ानें वाला मांझा उत्तर प्रदेश के बरेली में बनता है. जो जयपुर सहित पूरे भारत में पहुंचता है. लेकिन जयपुर में बनने वाली पतंगों की मांग पूरी भारत में रहती है.
जयपुर में विशेष रूप से कागज़ की पतंगों का काम ज्यादा होता हैं. इस समय जयपुर के चारदीवारी बाजार के कई लोग पतंग बनाने के कारोबार में लगे हुए हैं. जयपुर के अजमेर गेट पर रहने वाले मोहम्मद शहिद भगत 50 सालों से पंतग बनाते आए हैं. उन्होंने अब तक लाखों पतंगें बनाई है और जीवन भर उन्होंने पतंग का हि कारोबार किया है.
कैसे बनती हैं जयपुर की फेमस कागज की पंतग
जयपुर के अजमेर गेट पर रहने वाले मोहम्मद शहिद भगत 50 सालों से पतंग बनाते आए हैं. उन्होंने अब लाखों पतंगें बनाई है. मोहम्मद शाहिद इस समय 75 साल के हैं. उनका पूरा परिवार पतंग बनाने का कारोबार करता है. मोहम्मद शहिद बताते हैं कि पतंग बनाने के लिए कागज, कमान ठडड्, धागा और मैदा घाई जो नीला थोथा और चीनी से बनती हैं.जो पतंगों को चिपकाने के लिए काम लिया जाता हैं पतंग बनाने के कागज की एक रिम से लगभग 900 पतंग तैयार होते हैं. मुख्य रूप से पतंगें इन्हीं साम्रगी से बनती हैं. पतंग बनाने के लिए सबसे पहले पतंग के कागज की कंटिग होती हैं. उसके बाद कमान ठडड्, धागे से पतंग के आकार में बारिक लकड़ी को सेट किया जाता है और मैदा घाई की सहायता से पंतग कागज़ और कमान ठडड् को चिपकाया जाता हैं और कुछ ही मिनटों में एक पतंग बनकर तैयार हो जाती हैं.
एक सीजन में बना देते हैं 2 लाख पंतगें
मोहम्मद शहिद बताते हैं कि जब उन्होंने पंतग बनाना शुरू किया था. तब बाजार में पतंगों की कीमत 50 पैसे हुआ करती थी और समय के साथ पतंगों की किमत में बदलाव आया है. अब हमारे द्वारा बनाई गई पतंग की किमत 5 रूपए से लेकर 20 रूपए तक बिकती हैं. साथ ही मोहम्मद शहिद बताते हैं कि उन्होंने यह पतंग बनाने की कला गुजरात के अहमदाबाद से सीखी. उसके बाद उन्होंने जयपुर आकर पतंग बनाना शुरू किया. और धीरे धीरे अपने परिवार के सदस्यों को भी पतंग बनाना सिखाया और अब परिवार के सदस्य मिलकर मकरसंक्रांति के सीजन में लगभग 2 लाख पतंगें बना लेते हैं और बाजारों में उनके पतंगों की खूब डिमांड रहती हैं.
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FIRST PUBLISHED : January 11, 2024, 13:16 IST