Rajasthan

70 साल की उम्र में भी पुरानी धरोहर से प्यार, मजदूरी भी करनी पड़ी पर नहीं छोड़ी अपनी कला

रविन्द्र कुमार/झुंझुनूं : फाल्गुन के महीने में अलगोजा और बांसुरी की धुन हर किसी को मंत्र मुग्ध कर देती है. ये वाद्य यंत्र राजस्थान के काफी प्राचीन वाद्य यंत्रों में से एक है. झुंझुनू के हासलसर गांव के रहने वाले भागुराम पिछले 50 साल से अलगोजा और बांसुरी बजा रहे हैं. उन्होंने ये वाद्य यंत्र बजाना अपने पिताजी से सीखा था. तब से लेकर आज तक वे अपनी इस सांस्कृतिक विरासत को बचाए हुए हैं.

भागुराम ने बताया कि यह उनका बचपन से ही शौक था. बांसुरी बजाने से इतनी कमाई नहीं हो पाती थी की घर का खर्चा चल पाए. तब साथ में उन्हें पल्लादारी का काम भी करना पड़ता था. पहले लोग बांसुरी व अलगोजा को सुनते थे. अब सिर्फ यह एक शौक मात्र बनकर रह गया है.

भागूराम ने अलगोजा के बारे में जानकारी देते हुए बताया की यह बांसुरी की तरह होता है, जिसे बांस, पीतल या अन्य किसी भी धातु से बनाया जा सकता है. अलगोजा में स्वरों के लिए 6 छेद होते हैं, जिनकी दूरी स्वरों की शुद्धता के लिए निश्चित होती है. वादक दो अलगोजे मुंह में रखकर उन्हें एक साथ बजाता है. एक अलगोजे पर स्वर कायम रखे जाते हैं और दूसरे पर स्वर बताए जाते हैं.

भागूराम ने बताया कि बांसुरी से अब आमदनी तभी होती है जब कोई शादियों में या किसी अन्य प्रोग्राम में उनको बुलाते हैं.इस के अलवा फाल्गुन माह में आयोजित होने वाले धमाल प्रोग्रामो में जाते हैं वहां पर लोगों को अपनी मधुर बांसुरी व अलगोजे की धुन सुनाते हैं.

Tags: Jhunjhunu news, Local18, Rajasthan news

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