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Thyroid Awareness Month: पुरुषों की तुलना में महिलाओं में दो गुना मामले

गर्भावस्था में है तो…
गर्भावस्था में महिला को हाइपो-थायरॉइड होता है तो बच्चे का मानसिक विकास रुक सकता है। साथ ही महिला में वजन बढ़ना, सुस्ती, सांस फूलना आदि लक्षण दिखते हैं। ऐसे में प्रेग्रेंसी प्लानिंग से पहले इसकी जांच करवानी चाहिए। जिन महिलाओं का गर्भधारण हो चुका है और उन्होंने थायरॉइड की जांच नहीं करवाई है तो उन्हें तुंरत इसकी जांच करवानी चाहिए। इसी तरह जब बच्चा जन्म लेता है तो उसकी थायरॉइड की स्क्रिनिंग होनी चाहिए क्योंकि बच्चों के ब्रेन का विकास शुरुआती ३ वर्षों में होता है। थायरॉइड है तो उसे समस्या हो सकती है।

नवजात की स्क्रीनिंग इसलिए भी जरूरी होती
अगर जन्म के समय नवजात की थायरॉइड की समस्या है और बीमारी का पता नहीं चलता है तो उसका शारीरिक और मानसिक विकास नहीं होगा। कई बार १५-१६ साल का बच्चा भी ४-५ वर्ष वाले बच्चों की तरह ही दिखता है। यह परेशानी बच्चों में सही समय पर थायरॉइड का इलाज न मिल पाने से होती है। इसको क्रेएटिनिज्म कहते हैं। इसलिए जन्म के समय हर बच्चे की स्क्रीनिंग जरूरी होती है। अपने डॉक्टर से जरूर बात करें।

संभावित कारण
80-90 फीसदी मामलों में यह बीमारी ऑटो इम्युन बीमारी के कारण होती है। अन्य कारणों की बात करें तो जेनेटिक कारण जैसे थायरॉइड ग्लैंड का न होना, कीमो या रेडिएशन थैरेपी और आयोडिन की कमी हो सकती है।

क्या ध्यान रखें
जिनमें यह कम बनता है उनमें वजन तेजी से बढ़ता और कोलेस्ट्रॉल भी बढ़ जाता है। इसलिए वजन नियंत्रित रखें। बीच-बीच में कोलेस्ट्रॉल की जांच करवाते रहें। फैटी चीजें कम खाएं। नियमित व्यायाम जरूर करें।
महिलाओं में ज्यादा क्यों
महिलाओं में गर्भधारण न होने की मुख्य कारणों में थायरॉइड की समस्या भी एक है। इसकी वजह महिलाओं में ऑटो इम्युन से जुड़ी बीमारियां जैसे कि गठिया आदि का अधिक होना भी है। इसलिए महिलाओं को ३० वर्ष और पुरुषों को ३५ वर्ष की उम्र से इसकी स्क्रीनिंग शुरू करवा देनी चाहिए।

हाइपोथायरॉइड के लक्षण
इसमें थायरॉइड हार्मोन कम बनता है इसलिए इसमें हाइपर थायरॉइड से उल्टे लक्षण दिखते हैं जैसे तेजी से वजन का बढ़ना, सर्दी ज्यादा लगना, मासिक धर्म का अधिक या बार-बार आना, कम उम्र में माहवारी और लड़कों में वयस्कों वाले गुण जैसे आवाज का भारी होना, बाल आना, अंडकोश का बढ़ना आदि।
जांच और इलाज
थायरॉइड की जांच बहुत ही आसान और सस्ती भी है। खून से होने वाली जांचें हर छोटे-बड़े सेंटर्स पर होती हैं। सरकारी अस्पतालों में यह नि:शुल्क ही की जाती हैं। जब हार्मोन की कमी होती है तो इसमें बाहर से हार्मोन देकर इलाज होता है। इसकी दवाइयां खाने के चार घंटे बाद या खाने से एक घंटे पहले ही लेनी चाहिए। इसका ध्यान नहीं रखा गया तो दवा असर नहीं करती है। जिनमें थायरॉइड हार्मोन ज्यादा बन रहा है उनमें हार्मोन को नियंत्रित करने वाली दवाइयां दी जाती हैं। नियमित दवाइयां लेकर इसको नियंत्रित किया जा सकता है।

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