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जंगली फूलों से बना ये रायता और अचार खाकर दूर होती हैं पेट की बीमारियां! कलियां और छाल भी औषधि

हिमांशु जोशी/ पिथौरागढ़. उत्तराखंड के जंगलों में कई ऐसे पेड़-पौधे पाए जाते हैं, जो खूबसूरत होने के साथ ही औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं. इनका उपयोग करके यहां के लोग सदियों से निरोग रहते आए हैं. इन दिनों उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में क्वेराल के खूबसूरत फूल खिले हुए हैं. ये फूल आकर्षक होने के साथ ही अपने आप में कई औषधीय गुणों को समेटे हुए हैं. पेड़ों में खिले ये रंग-बिरंगे फूल जितने खूबसूरत हैं, उतने ही सेहत के लिए दवाई का काम भी करते हैं.

इन दिनों उत्तराखंड के पहाड़ी गर्म इलाकों के जंगलों में क्वेराल जिसे कचनार नाम से जाना जाता है, हर जगह खिले हुए हैं. इनकी कलियां तोड़कर उसका रायता और अचार बनाया जाता है, जो पेट के रोगों के लिए रामबाण औषधि के तौर पर काम करता है. इसमें एंटी बैक्टीरियल प्रॉपर्टी, एंटी डायबिटिक प्रॉपर्टी के साथ ही एंटी डायरियल प्रॉपर्टी होती हैं, जो थायराइड को कंट्रोल करने का काम करती हैं. इसके अलावा ब्लड यूरिया को कंट्रोल करने में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान रहता है.

कलियां और फूल भी औषधि
पिथौरागढ़ में आयुर्वेद के जानकार डॉ. राकेश पंत ने इसकी विशेषता बताते हुए कहा कि कचनार का उपयोग आज भी पहाड़ी इलाकों में पेट की बीमारियों को दूर करने में किया जाता है. कचनार प्रकृति से उपहार के रूप में मिला एक पेड़ है, जिसकी छाल से कई प्रकार की आयुर्वेदिक दवाइयां भी बनाई जाती हैं और इसकी कलियां और फूल को खाने से पेट की गंभीर बीमारियां भी दूर होती हैं.

कचनार के अचार की बढ़ी डिमांड
राकेश पंत ने बताया कि इतने औषधीय गुण होने के कारण अब कचनार के अचार की डिमांड भी बाजार में बढ़ रही है. प्रकृति से निशुल्क मिले इस पेड़ का व्यावसायिक उपयोग भी किया जा सकता है, जिससे कि यह पेड़ पहाड़ में रहने वाले लोगों की आजीविका बढ़ाने में भी मददगार साबित हो सके. जरूरत है तो इसके व्यापक प्रचार-प्रसार की.

Tags: Health News, Life18, Local18, Pithoragarh news, Uttarakhand news

Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. Local-18 किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.

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