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राजस्थान के इस गांव की अनोखी परंपरा, बेटियों के जन्म पर मनाते हैं ढूंढोत्सव, ऐसे करते हैं अपनी लाडली का सम्मान

Last Updated:March 13, 2025, 14:34 IST

Udaipur Rajasthan Holi Dhundhotsav Tradition: उदयपुर के धारता गांव में होली के अगले दिन धुंलंडी का खास महत्व होता है. इस गांव में बेटियों के जन्म पर खास तरीके से खुशियां मनाते हैं. इस अनूठी परंपरा को “ढूंढोत्सव…और पढ़ेंX
बालिकाओं
बालिकाओं का उत्सव 

हाइलाइट्स

उदयपुर के धारता गांव में बेटियों के जन्म पर ढूंढोत्सव मनाते हैं.गांववाले ढोल-नगाड़ों के साथ बेटियों के घर जाकर बधाइयां देते हैं.यह परंपरा बेटी बचाओ और सम्मान का संदेश देती है.

उदयपुर. राजस्थान के उदयपुर जिला के मावली ब्लॉक के धारता गांव में होली के अगले दिन धुलंडी का खास महत्व होता है. इस दिन पूरा गांव ढोल-नगाड़ों के साथ उन घरों में पहुंचता है, जहां पिछले वर्ष के दौरान बेटी का जन्म हुआ हो. इस अनूठी परंपरा को “ढूंढोत्सव” कहा जाता है, जिसमें बेटियों के जन्म की खुशी सामूहिक रूप से मनाई जाती है. धुलंडी के दिन पूरे गांव के लोग माताजी के चौक पर इकट्ठा होते हैं और वहां जश्न मनाने के बाद बेटियों के घर जाने का क्रम शुरू होता है.

ऐसे होती है ढूंढोत्सव की शुरुआत

सबसे पहले उन घरों में जाया जाता है, जहां बेटियां जन्मीं हैं. गांववाले ढोल-नगाड़ों के साथ वहां पहुंचते हैं और बेटी के परिवार को बधाइयां देते हैं. बेटियों की लंबी उम्र और उज्ज्वल भविष्य की कामना की जाती है. परंपरा के तहत, जिस बेटी की पहली होली होती है, उसे उसके रिश्तेदार बहन गोद में लेकर बैठती है. परिवार द्वारा पूरे गांव को गुड़-मिठाई खिलाई जाती है, ताकि सबका मुंह मीठा हो सके. इसके बाद गांववाले अगली बेटी के घर की ओर बढ़ते हैं. अगर किसी साल गांव में किसी बेटी का जन्म नहीं होता, तो पास के रोडी क्षेत्र में जाकर देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, क्योंकि गांववाले बेटियों को लक्ष्मी का रूप मानते हैं.

बेटी बचाओ का संदेश देता है गांव

गांव के बुजुर्ग जगदीश शर्मा बताते हैं कि पिछले 50 सालों से यह परंपरा निभाते आ रहे हैं. यहां बेटियों को हमेशा प्राथमिकता दी जाती है. वहीं, मुकेश चंद्र आमेटा का कहना है कि गांव में बेटी बचाओ अभियान को लेकर जागरूक हैं और लोग बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करते हैं. गांव की ज्योति रानी शर्मा बताती हैं कि वह पिछले 15 साल से इस परंपरा को देख रही हैं. यह केवल एक रस्म नहीं, बल्कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का सशक्त संदेश देने वाला पर्व है.

बेटा-बेटी में नहीं मानते कोई फर्क 

गांव के भुवनेश आमेटा कहते हैं कि गांव की बेटियां बेटों से कम नहीं हैं. पूरे गांव को बेटियों की उपलब्धियों पर गर्व होता है. इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य समाज में बेटियों के प्रति सकारात्मक सोच को बढ़ावा देना है. धारता गांव की यह परंपरा समाज में बेटियों के सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए एक मिसाल पेश करती है.जहां आज भी कई जगहों पर बेटियों को बोझ समझा जाता है, वहीं यह गांव हर बेटी के जन्म को एक उत्सव की तरह मनाकर एक नई सोच को जन्म दे रहा है.


Location :

Udaipur,Rajasthan

First Published :

March 13, 2025, 14:34 IST

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इस गांव में बेटियों के जन्म पर मनाते हैं ढूंढोत्सव, बेहद खास है यह परंपरा

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