Environmental Protection From Automobiles Scrap – Himanshu Jangid – ऑटोमोबाइल्स स्क्रैप से पर्यावरण संरक्षण और हैंडीक्राफ्ट को दे रहे बढ़ावा – हिमांशु जांगिड

-डेल्फिक्स डायलॉग सीरीज में कार्टिस्ट के फांउडर हिमांशु जांगिड ने शेयर किए अनुभव

अनुराग त्रिवेदी
जयपुर. डेल्फिक काउंसिल ऑफ राजस्थान की वर्चुअल सीरीज डेल्फिक डायलॉग की 15वीं कड़ी में ऑटोमोबाइल आर्ट पर काम कर रहे कार्टिस्ट के फाउंडर हिमांशु जांगिड़ रूबरू हुए। उन्होंने डेल्फिक की सदस्य शिप्रा शर्मा के साथ अभी तक की यात्रा एवं अनुभव साझा किए। काउंसिल की राजस्थान अध्यक्ष और वन एवं पर्यावरण विभाग की प्रमुख शासन सचिव श्रेया गुहा ने बताया कि सस्टेनेबिलिटी और ऑटोमोबाइल आर्ट पर कार्टिस्ट का काम सराहनीय रहा है। हिमांशु ने सेशन में कार और आर्टिस्ट को मिलाकर बनाई गई अपनी संस्था कार्टिस्ट का जिक्र करते हुए बताया कि पुराने ऑटोमोबाइल्स स्क्रैप और लोकल आर्ट के जरिए हैंडीक्राफ्ट्स को आगे बढ़ाने की मुहीम चलाई। उन्होंने बताया कि कॅरियर के शुरुआती दिनों में उन्हें पुरानी गाडिय़ां संग्रहित करने का शौक था। देशभर से तकरीबन 100 पुरानी गाडिय़ां संग्रहित कीं। इस दौरान के अनुभवों पर पता लगा कि लोगों को पुरानी गाडिय़ों के आर्टवर्क के बारे में जानकारी मौजूद नहीं, इसके बाद इन आर्ट वर्क से जुड़ी विशेषताओं को देशभर में लोगों तक पहुंचाने की मुहीम में जुट गया।
विंटेज कार्स का रेस्टॉरेशन
हिमांशु ने बताया कि उन्होंने वर्ष 1936 की मर्सिडीज और एमजीपीसी जैसी गाडिय़ां रेस्टोर कीं। हेरिटेज कैलेंडर निकालने का विचार भी इसी दौरान आया। 2010 से उन्होंने इसकी शुरुआत की। विंटेज गाडिय़ों को रिस्टोर कर उन्होंने अलग-अलग हैरिटेज प्लेस पर जाकर कैलेंडर तैयार किए। कार्टिस्ट फेस्टिवल का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि 2015 में जयपुर के रामबाग एसएमएस कन्वेंशन से इसकी शुरुआत हुई। पहले फेस्टिवल में देश भर से तकरीबन 100 कलाकारों ने शिरकत की। स्कूली बच्चों को इस फेस्टिवल से इसलिए जोड़ा गया क्योंकि जब तक बच्चे आर्ट को अच्छी तरह से देखेंगे- समझेंगे नहीं, तब तक उनमें कला और कलाकारों के प्रति समझ विकसित नहीं होगी।
कबाड़ नहीं है पुरानी गाडिय़ां
उन्होंने बताया कि जिस तेजी से ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री ग्रो कर रही है, उसी अनुपात में ऑटोमोबाइल वेस्टेज बढ़ रहा है। इस वेस्टेज को लोकल आर्ट के जरिए हैंडीक्राफ्ट में तब्दील करते हुए इसका सदुपयोग किया जा सकता है। साथ ही इस मुहिम से स्थानीय कलाकारों की आजीविका भी सुदृढ़ हो सकती है। चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि एक समय के बाद पुरानी गाडिय़ों को कबाड़ मान लिया जाता है, लेकिन अगर उन्हें सही तरीके से कला के जरिए इस्तेमाल किया जाए तो वे उपयोगी फर्नीचर का रूप ले सकती हैं।