Bharatpur Women Making Eco-Friendly Diyas from Cow Dung

Bharatpur News: राजस्थान के भरतपुर जिले के उच्चैन क्षेत्र के खरैरा गांव की महिलाएं आज आत्मनिर्भरता और पर्यावरण संरक्षण की एक नई मिसाल पेश कर रही हैं. इन ग्रामीण महिलाओं ने अपनी प्रतिभा को पहचानते हुए गाय के गोबर जैसे पारंपरिक और आसानी से उपलब्ध होने वाले संसाधन को आय का जरिया बना लिया है.
एकल ग्रामोत्थान फाउंडेशन की पहल के तहत, गांव की महिलाएं अब गोबर से सुंदर दीये, गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां, अगरबत्ती स्टैंड और विभिन्न सजावटी वस्तुएं बना रही हैं. यह पहल न केवल महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना रही है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी एक मजबूत संदेश दे रही है, क्योंकि ये उत्पाद मिट्टी या प्लास्टिक के हानिकारक विकल्पों की जगह ले रहे हैं.
गोबर से बन रही हैं सुंदर, उपयोगी और पर्यावरण-अनुकूल वस्तुएंफाउंडेशन की ओर से महिलाओं को गोबर से उत्पाद बनाने का विशेष प्रशिक्षण दिया गया है. इस प्रशिक्षण में गोबर को प्रोसेस करने, सुखाने और उसे सांचों में ढालने की कला सिखाई गई.
उत्पाद विविधता: प्रशिक्षण के बाद महिलाएं दीये, मूर्तियां, अगरबत्ती स्टैंड, कलश और अन्य धार्मिक-सजावटी वस्तुएं कुशलता से तैयार कर रही हैं.
त्योहारी मांग: इन उत्पादों की दीपावली जैसे त्योहारों के दौरान मांग काफी बढ़ जाती है, क्योंकि ग्राहक अब पर्यावरण-अनुकूल (Eco-Friendly) उत्पादों को प्राथमिकता दे रहे हैं. अच्छी मांग के कारण उन्हें अच्छा मुनाफा भी मिलता है.
विशेषता: गोबर से बने ये दीये और मूर्तियां प्राकृतिक रूप से जैव-अपघटित (Biodegradable) होते हैं और जलाने पर धार्मिक महत्व के साथ-साथ वातावरण को शुद्ध करने में भी सहायक माने जाते हैं.
महिलाओं की बढ़ी आमदनी और आत्मविश्वासइस पहल का सबसे बड़ा सामाजिक प्रभाव महिलाओं की आर्थिक स्थिति पर पड़ा है. गांव की महिलाओं का कहना है कि वे अब अपनी मेहनत और हुनर से हर महीने 8,000 से 10,000 रुपये तक की आय आसानी से अर्जित कर लेती हैं.
पहले जो महिलाएं केवल घर के काम या खेतों तक सीमित थीं, अब वे अपने हुनर और मेहनत से घर की अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन चुकी हैं. गांव की एक महिला सदस्य बताती हैं “पहले हम सिर्फ खेतों में मजदूरी करते थे, लेकिन अब अपने हाथों से बनी इन पवित्र मूर्तियों से हमें न सिर्फ पैसे मिल रहे हैं, बल्कि गर्व और सम्मान भी मिल रहा है.” इस काम से उनका आत्मविश्वास बहुत बढ़ा है.
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदमएकल ग्रामोत्थान फाउंडेशन की टीम का कहना है कि इस पहल का दोहरा उद्देश्य है: ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और गोबर जैसे अपशिष्ट का सही उपयोग करना.
गोबर के उत्पादों के उपयोग से मिट्टी की खपत कम होती है और प्लास्टिक के उपयोग पर भी रोक लगती है. इससे न केवल कचरे में कमी आई है, बल्कि एक प्राकृतिक संसाधन का पुनः उपयोग भी हो रहा है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को टिकाऊपन प्रदान करता है.
अब यह सफल पहल आसपास के अन्य गांवों में भी विस्तार की दिशा में है, ताकि अधिक से अधिक महिलाओं को इससे जोड़ा जा सके.