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ढाका: बांग्लादेश की यूनुस सरकार भारत के एहसान भूल चुकी है और पाकिस्तान की तिमारदारी में लगी हुई है. देश तबाही की कगार पर पहुंच चुका है और मोहम्मद यूनुस के राज में देश राजनीतिक अनिश्चितता, आर्थिक चिंता से गुजर रहा है. यहां पर अब लोकतंत्र के भविष्य पर भी खतरा मंडरा रहा है. इस देश में हिंदुओं के साथ 2014 से शुरू हुआ बेपनाह टॉर्चर जारी है, द हिंदू की पिछले साल एक रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश में हिंसा में 650 से भी ज्यादा हिंदुओं की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. इन हत्याओं से शेख हसीना का दिल भी जल रहा है.

यूनुस ने कैसे करवाया हिंदू नरसंहार का पाप?

हाल ही में हसीना ने फर्स्टपोस्ट को दिए इंटरव्यू में हिंदुओं पर हिंसा को लेकर अंदरूनी सच्चाई बताई है. उन्होंने कहा है कि ये सब अचानक से नहीं हुआ बल्कि चरमपंथियों ने जानबूझकर हिंदुओं के खिलाफ अभियान चलाया है. शेख हसीना ने दावा किया है कि इन चरमपंथियों को ताकतवर बनाने के पीछे असल में यूनुस का ही हाथ है.

Yunus से पहले कैसा था Bangladesh?

उन्होंने कहा कि ‘मेरी सरकार के दौरान हमने चरमपंथियों की परवाह किए बिना सभी नागरिकों की सुरक्षा के लिए कड़े प्रयास किए थे. बांग्लादेश की स्थापना धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर हुई थी जो विविधता का सम्मान करते थे. अब, धार्मिक अल्पसंख्यक डर में जी रहे हैं, उनके मंदिरों पर हमला किया जा रहा है, उनके व्यवसाय नष्ट किए जा रहे हैं, और उनके परिवारों को धमकी दी जा रही है’.

अब कैसे जी रहे हैं अल्पसंख्यक?

उन्होंने आगे कहा कि बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करने में अंतरिम सरकार की विफलता सिर्फ लापरवाही नहीं है बल्कि यूनुस प्रशासन हिंदुओं के खिलाफ हिंसा भागीदार है.हसीना ने आगे कहा, ‘जब आप सत्ता हासिल करने के लिए खुद को चरमपंथी ताकतों के साथ जोड़ते हैं, तो जब वे ताकतें असहिष्णुता और हिंसा के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाती हैं. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को तब चुप नहीं रहना चाहिए जब बांग्लादेश की हिंदू आबादी और अन्य अल्पसंख्यक इस उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं’.

बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ क्या-क्या हुआ?

हसीना के देश से हटने के बाद व्यापक हिंसा हुई, खासकर बांग्लादेश में रहने वाले हिंदू समुदाय के खिलाफ. उनके घरों को आग लगाने से लेकर एक हिंदू पार्षद की हत्या और एक हिंदू धार्मिक नेता को गिरफ्तार करने तक, यूनुस सरकार के तहत बांग्लादेश धार्मिक उत्पीड़न का एक गढ़ बन गया है.इस साल की शुरुआत में, बांग्लादेश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक संगठन, बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद ने कहा कि 2025 के पहले छमाही में सांप्रदायिक हिंसा के 258 मामले सामने आए.

समूह ने कहा, ‘सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को राजनीतिक घटनाओं के रूप में वर्णित करके उनके होने से इनकार किया है। परिणामस्वरूप, इन अपराधों को करने वाले अपराधी बेखौफ हो गए हैं, जिससे अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों की असुरक्षा बढ़ गई है’.

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