Rajasthan

डेढ़ साल में खोई आंखों की रोशनी, लेकिन हौसले से जीते कई मेडल, धौलपुर के प्रवीण ने दुबई में रचा इतिहास

धौलपुर. राजस्थान के धौलपुर जिले में जन्मे प्रवीण शर्मा की कहानी संघर्ष, संकल्प और सफलता का जीवंत उदाहरण है. महज डेढ़ साल की उम्र में स्टीवंस जॉनसन सिंड्रोम नामक गंभीर बीमारी के कारण उन्होंने हमेशा के लिए अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी. इसके बावजूद प्रवीण शर्मा ने कभी हार नहीं मानी. उन्होंने असफलता के भय को पीछे छोड़ते हुए निरंतर अभ्यास, मजबूत इच्छाशक्ति और दृढ़ निश्चय के साथ खेल को अपना माध्यम बनाया और आज एशियन यूथ पैरा गेम्स में दो गोल्ड और एक ब्रॉन्ज मेडल जीतकर दुबई की धरती पर भारत का तिरंगा लहरा दिया.

दुबई में 7 से 14 सितंबर तक आयोजित एशियन यूथ पैरा गेम्स में राजस्थान के धौलपुर जिले के छोटे से गांव बांसरई का नाम अंतरराष्ट्रीय खेल मंच पर गर्व से लिया गया. ग्राम बांसरई, जिला धौलपुर निवासी भारतीय पैरा एथलीट प्रवीण शर्मा ने एशियन यूथ पैरा गेम्स 2025 में शानदार प्रदर्शन करते हुए देश का नाम रोशन किया. इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में उन्होंने शॉट पुट में स्वर्ण पदक, डिस्कस थ्रो में स्वर्ण पदक और जैवलिन थ्रो में कांस्य पदक जीतकर भारत के लिए ऐतिहासिक सफलता दर्ज की.

दादा का विश्वास बना सबसे बड़ी ताकतप्रवीण शर्मा की इस कामयाबी के पीछे उनके दादा श्री रामबाबू शर्मा सबसे मजबूत स्तंभ के रूप में सामने आए. गांव बांसरई की मिट्टी में पले-बढ़े प्रवीण की प्रतिभा को पहचानकर दादा रामबाबू शर्मा ने बचपन से ही उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी. कठिन परिस्थितियों में भी उनका विश्वास कभी डगमगाया नहीं. परिवार का कहना है कि दादा हमेशा कहा करते थे कि उनका पोता एक दिन देश के लिए खेलेगा और आज वही सपना दुबई की धरती पर साकार हो गया.

पिता का संघर्ष और मार्गदर्शनप्रवीण के पिता श्री ब्रजेश शर्मा ने भी बेटे के खेल सफर में हर स्तर पर सहयोग दिया. उन्होंने अनुशासन, मेहनत और आत्मविश्वास की सीख देकर प्रवीण को इस मुकाम तक पहुंचाया. परिवार का मानना है कि पिता के संघर्ष और निरंतर मार्गदर्शन ने प्रवीण को मानसिक रूप से मजबूत बनाया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुकाबला करने का हौसला दिया.

संस्था के सहयोग से मिला सही मंचप्रवीण शर्मा की अंतरराष्ट्रीय सफलता में GO Sports स्पॉन्सरशिप संस्था की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही. संस्था के सहयोग से उन्हें उच्च स्तरीय प्रशिक्षण, आधुनिक खेल उपकरण और बेहतर तकनीकी मार्गदर्शन मिला. इसी सहयोग ने प्रवीण को एशियाई मंच पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करने का आत्मविश्वास दिया.

गांव से विश्व मंच तक तिरंगे की उड़ान
प्रवीण शर्मा की यह जीत केवल पदकों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह गांव बांसरई, जिला धौलपुर और पूरे भारत के लिए गर्व का क्षण है. उनकी कहानी यह साबित करती है कि अगर दादा की दुआ, पिता का संघर्ष और सही सहयोग मिल जाए तो गांव का खिलाड़ी भी विश्व मंच पर तिरंगा लहरा सकता है.

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