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खेलने-कूदने की उम्र में बच्चे ने पिता के जीवन के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका, कहानी सुन हो जाएगी आपकी आंखें नम

नई दिल्ली. देश में इस समय यूपी के एक 17 साल के लड़के की सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका  की हर तरफ चर्चा हो रही है. इस नाबालिग लड़के ने अपने पिता को लीवर दान (Liver Donate) करने के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया है. पिछले दिनों ही सुप्रीम कोर्ट ने इस लड़के की याचिका पर यूपी सरकार से जवाब मांगा था. आज यानी 12 सितंबर को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली थी, लेकिन तकनीकी कारणों से सुनवाई नहीं हो सकी. उम्मीद है कि मंगलवार या अगले कुछ दिनों में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करे.

कुछ दिन पहले ही यूपी के एक 17 साल के लड़के (Minor Boy) ने अपने पिता को लिवर दान करने की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर (Petition Filed) की थी. लड़के ने याचिका में कहा हा कि उसके पिता की हालात गंभीर है और उन्हें तत्काल ही लीवर ट्रांसप्लांट (Liver Transplant) करने की जरूरत है. ऐसे में उसे अपने पिता को लिवर ट्रांसप्लांट करने की अनुमति दी जाए. क्योंकि, देश के कानून के मुताबिक नाबालिगों को अंग दान करने की अनुमति नहीं है. ऐसे में उसे लिवर दान करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुमति अनिवार्य है.

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17 साल के लड़के की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को नोटिस जारी कर इस मामले में जवाब दाखिल करने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने इस लड़के की याचिका पर यूपी के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी को सुनवाई की अगली तारीख यानी 12 सितंबर को उपस्थित रहने का भी आदेश दिया था. लेकिन, सोमवार यानी 12 सितंबर को इस मामले की कोर्ट में सुनवाई नहीं हो सकी. आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा था कि नाबालिग लड़का लीवर दान कर सकता है या नहीं. इसको देखने के लिए पहले लड़के का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाना चाहिए.

लिवर ट्रांसप्लांट के लिए मांगी अनुमति
आपको बता दें कि ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिशू रूल्स 2014 के मुताबिक, ‘नाबालिग के अंगों के दान के लिए राज्य सरकार और संबंधित अथॉरिटी से मंजूरी लेना अनिवार्य है. हालांकि, पहले भी इस तरह के कई मामलों में अदालतों के फैसले नजीर बने हैं.

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ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिशू रूल्स 2014 के मुताबिक, ‘नाबालिग के अंगों के दान के लिए राज्य सरकार और संबंधित अथॉरिटी से मंजूरी लेना अनिवार्य है.

क्या है भारत में कानून
भारतीय कानून के अनुसार, नाबालिग को मृत्यु से पहले लिवर, किडनी या अपने शरीर का कोई अंग दान करने की अनुमति नहीं है. मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के तहत केवल एक मृत नाबालिग के अंग/ऊतक दान किए जा सकते हैं. 2011 में एक संशोधन द्वारा, एक नाबालिग को मृत्यु से पहले एक अंग या ऊतक दान करने की अनुमति देने के लिए एक अपवाद बनाया गया है.

ये फैसले नजीर बन चुके हैं
आपको बता दें कि 2020 में एक ऐसा ही मामला दिल्ली उच्च न्यायालय के सामने आया था, जिसमें एक 17 वर्षीय लड़की को अपने लिवर का हिस्सा अपने पिता को दान करने की अनुमति दी थी. उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा था कि अंग या ऊतक दान पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है, लेकिन दान की अनुमति असाधारण परिस्थितियों में और नियमों के अनुसार होगा.’

दिल्‍ली में ईडब्‍ल्‍यूएस केटेगरी के लोगों के निजी अस्‍पतालों में फ्री इलाज के लिए 11 सेंटर पर रेफरल लेटर बन रहे हैं.

किसी शख्स का पूरी तरह से डैमेज लीवर को प्रत्यारोपण के जरिए बचाया जा सकता है. (सांकेतिक फोटो)

क्या कहते हैं जानकार
वहीं, राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल, दिल्ली के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी विभाग में कार्यरत डॉ अमित बी एल कहते हैं, ‘कोई भी शख्स अंगदान दो प्रकार से कर सकता है. एक, मरने के बाद, जिसे शवदान कहते हैं और दूसरा जीवित व्यक्ति. पहला ब्रेन डेड या ब्रेन स्टेम डेड पीड़ित व्यक्ति का अंग तब दान किया जाता है, जब व्यक्ति ने अपने जीवनकाल के दौरान अपने अंगों को दान कर दिया हो या फिर उसके परिवार की सहमति ली गई हो. एक निकट रिश्तेदार होना चाहिए जो 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र का हो (पति या पत्नी, पुत्र, बेटी, पिता, माता, भाई, बहन, दादा-दादी, पोता). इसके साथ ही एक शुभचिंतक भी किसी निकट संबंधी दाता की अनुपस्थिति में अंग दान कर सकता है, लेकिन इसके लिए प्राधिकरण समिति से विशेष मंजूरी की आवश्यकता होती है. दाताओं की अदला-बदली की अवधारणा मौजूद है, जिसमें बेजोड़ दाता और प्राप्तकर्ता के जोड़े के बीच निकट संबंधी दाताओं के अंगों की अदला-बदली की जाती है. किसी का अंग धन लाभ के लिए करना भारतीय कानून में निषेध है.’

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गौरतलब है कि लिवर अगर किसी शख्स का पूरी तरह से डैमेज हो जाता है तो लिवर प्रत्यारोपण के जरिए उस व्यक्ति को बचाया जा सकता है. लिवर प्रत्यारोपित व्यक्ति 4-6 हफ्तों में पहले की तरह ही काम करने लगता है. ज्यादातर लोग जिन्हें लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है, वे मृत दाता से अंग दान के लिए महीनों या वर्षों तक इंतजार करते रहते हैं. लिवर की बीमारी की लास्ट स्टेज वाले लोगों के लिए लिविंग लिवर डोनेशन बेहतर विकल्प है.

Tags: Doctors, Liver transplant, Supreme court of india, UP Government

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