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Jaisalmer news: जैसलमेर में सात बहनों की दैवीय शक्तियां जगजाहिर, जानें इतिहास

रिपोर्ट- प्रतापा राम

जैसलमेर. पश्चिमी भारत के कोने में, मखमली रेत के टीलों में बसे जैसलमेर को सोने का शहर कहें या अतीत की दबी कहानियों का शहर, क्योंकि हजारों वीरता, पराक्रम, प्रेम और दैवीय शक्तियों की कहानियां यहां दफन हैं. महेंद्र मूमल की प्रेम गाथा हो या राजाओं की वीरता या मां आवड़ और मांं स्वांगिया की दैवीय शक्तियां कई गाथाएं मौजूद हैं. हम आपको आज जैसलमेर में स्वांगिया या आवड़ माता के सात मन्दिर और उनकी विशेषताएं व चमत्कारिक शक्तियों के बारे में बताएंगे.

आपके शहर से (जैसलमेर)

(1) तनोट राय मंदिर
तनोट राय मंदिर राव तनु ने 8वीं शताब्दी में निर्माण करवाया. इस स्थान पर मोहम्मद बिन कासिम, हुसैनशाह पठान, लंगाहो, वराहों, यवनों जोइयों और खीचियों ने कई आक्रमण किए. तनोट के शासक विजयराव ने देवी के प्रताप से ईरान के शाह व खुरासान के शाह को पराजित कर कुल 22 युद्ध जीते. सिंध के मुसलमान ने जब विजयराव पर आक्रमण किया तो देवी से प्रार्थना की कि अगर विजयी हुआ तो अपना मस्तक देवी को अर्पित करेगा. युद्ध में देवी ने विजयराव की मदद की और राव की विजय हुई.

इस पर वह मंदिर में जाकर तलवार से अपना मस्तक काटने लगा तो देवी प्रकट हो गई और बोलीं कि मैंन तेरी पूजा मान ली और अपनी हाथ की सोने की चूड़ उतार दी. यही विजयराव इतिहास में विजयराव चूंडाला के नाम से प्रसिद्ध हुआ. 1965 ई और 1971 ई में पाकिस्तान से युद्ध हुआ. सभी युद्धों में देवी के प्रताप से विजय मिली. 1965 ई के बाद BSF द्वारा पूजा अर्चना की जाती है. जहां 1965 ई में पाकिस्तान के गिराए 300 बम बेअसर हुए थे. देवी की कृपा से पाकिस्तान के सैनिक रात के अंधेरे में आपस में लड़ कर मारे गए. इस समय पाकिस्तान ने 150 किमी तक कब्जा कर लिया था. तनोट देवी को थार की वैष्णों देवी भी कहा जाता है. BSF की एक यूनिट का नाम तनोट वारियर्स है.

(2) घंटियाली राय मंदिर

घंटियाली राय मंदिर तनोट से 5 KM की दूरी पर दक्षिण-पूर्व में है. वीरधवल नामक पुजारी को नवरात्र के दिनों में देवी ने शेरनी के रूप में दर्शन दिए, जिसके गले में घंटी बंधी थी. 1965 ई में पाकिस्तानी सैनिकों ने इस मंदिर की मूर्तियों को खंडित किया था. जिन्हें देवी ने मृत्यु दंड दिया.

(3) श्री देगराय मन्दिर

देगराय मंदिर जैसलमेर के पूर्व में देगराय जलाशय पर स्थित है. महारावल अखैसिह ने इस नवीन मंदिर का निर्माण करवाया था. देवियों ने महिष के रुप में विचरण कर रहे दैत्य को मारकर उसी के सिर का देग बनाकर उससे रक्तपान किया. यहां रात को नगाड़ों व घुघरुओं की ध्वनि सुनाई देती है. कभी-कभी दीपक स्वतः ही प्रज्ज्वलित हो जाता है.

(4) भादरियाराय का मन्दिर

इस मंदिर इसका निर्माण महारावल गजसिंह ने बासणपी की लड़ाई जीतने के पश्चात करवाया और अपनी रानी और मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह की पुत्री रुपकंवर के साथ जाकर मंदिर की प्रतिष्ठा करवाई. महारावल शालीवाहन ने देवी को चांदी का भव्य सिंहासन अर्पित किया. सिंहासन के ऊपर जैसलमेर का राज्यचिन्ह उत्कीर्ण है, जिसे महारावल शालीवाहन सिंह ने भेंट चढ़ाया. फिर जवाहरसिंह ने इसका जीर्णोद्धार करवाया. देवी शक्तियों ने वहादरिया ग्वाले को परचा दिया. वहादरिया के निवेदन करने पर देवी ने यहीं निवास किया. इसी कारण वाहदरिया भादरिया नाम से यह मंदिर प्रसिद्ध हुआ.

राव तणु ने यहां पहुंच कर देवियों के दर्शन किए. इस स्थान को आधुनिक रूप संत हरिवंश राय निर्मल ने दिया. यहां पर विशाल गौशाला और एशिया का सबसे बड़ा भूमिगत पुस्तकालय स्थित है. यहां पर एक विश्वविद्यालय बनना भी प्रस्तावित है. महाराज ने शिक्षा, पर्यावरण, नशामुक्ति, चिकित्सा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर काम किया. कन्या भ्रूण हत्या, दहेज, बाल विवाह का सदा विरोध किया. यहां का शक्ति और सरस्वती का अनूठा संगम अन्यत्र दुर्लभ है.

(5) श्री तेमड़ेराय मंदिर

श्री तेेमड़ेराय मंदिर जैसलमेर के दक्षिण में गरलाउणे पहाड़ की कंदरा में बना हुआ है. इसका निर्माण महारावल केहर ने करवाया था. केहर ने मंदिर की पहाड़ी के नीचे एक सरोवर का निर्माण करवाया और सरोवर के निकट दो परसाले भी बनवाई. यहां देवी की पूजा छछुन्दरी के रुप में होती है. चारण इसे द्वितीय हिंगलाज मानते हैं. महारावल अमरसिंह ने तेमडेराय पहाड़ की पाज बंधाई, मंदिर के सामने बुर्ज, पगोथिये और उस पर बंगला बनवाया. महारावल जसवंतसिंह ने परसाल व बुर्ज का निर्माण करवाया और प्रतिष्ठा करवाई. महारावल जवाहरसिंह ने इसके निज मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. यहां शक्तियों ने तेमड़ा नामक दैत्य का वध किया था. बीकानेर महाराजा रायसिंह ने अपनी रानी और जैसलमेर की राजकुमारी गंगाकुमारी के साथ यहां की यात्रा की और देवी ने नागिणियों के रुप में दर्शन दिए तो रायसिंह ने मंदिर के सामने खंभों वाला देवल बनाया. करणी माता भी तेमड़ेराय की परम भक्त थी. इसलिए कुछ लोग करणी जी को स्वांगीया का अवतार भी मानते हैं.

(6) स्वांगिया माता गजरूप सागर मन्दिर

यह गजरुप सागर तालाब के पास समतल पहाड़ी पर निर्मित मंदिर है. जिसका निर्माण महारावल गजसिंह ने करवाया था. वे सुबह उठते ही किले से देवी के दर्शन करते।

(7) श्री काले डूंगरराय मन्दिर

जैसलमेर से 25 किमी दूर इस मंदिर का जीर्णोद्धार महारावल जवाहरसिंह ने निर्माण कराया. यह मंदिर काले रंग के पहाड़ पर स्थित है. सिंध का मुसलमान इन कन्याओं से बाल विवाह करना चाहता था. सिंध से लौटते समय देवी ने हाकड़ा से मार्ग मांगा परंतु हाकड़ा के मार्ग नहीं देने पर देवी के चमत्कार से हाकड़ा नदी का पानी सुख गया. इसके पश्चात शक्तियां कुछ समय यहां भी रही थीं.

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