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a-professor-did-research-on-honeybees-and-found-its-five-new-species – हिंदी

कोटा. कोटा के वर्धमान महावीर खुला विश्विद्यालय के प्राणी शास्त्र विभाग में सहायक आचार्य डॉ.संदीप हुड्डा ने मधुमक्खियो पर एक रिसर्च किया है. इस रिसर्च में 49 प्रजातियों की मधुमक्खियों की खोज के साथ पांच प्रकार की नई मधुमक्खियों की प्रजाति भी मिली है. मधुमक्खियों का खेती में बहुमूल्य योगदान है, सरसों जैसी फसलों में इनके मदद से ही परागण होता है.

परागण की प्रक्रिया है अमूल्य प्राणी शास्त्र विभाग में सहायक आचार्य डॉ.संदीप हुड्डा ने बताया कि वैदिक काल से ही इनकी पहचान की जाती थी. जाहिर तौर पर संदेश पहुंचाने के लिए इनका इस्तेमाल किया जाता था. चार किलोमीटर दूर से   भी ये मधुमक्खियां अपने घोंसलों में लौट सकती हैं. निश्चित रूप से शहद, मोम, रेजिन व बी वेनम मधुमक्खी से प्राप्त होने वाली उपयोगी वस्तुएं है. उनके द्वारा किया गया परागण की प्रक्रिया अमूल्य है  जो लाखों डॉलर से भी अधिक मूल्यवान है. फसलों, फलदार पेड़-पौधों, वाणिज्यक कृषि ,वन,जंगली पौधों, सजावटी फूल या सब्जियां सभी प्रकार के वनस्पतियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण क्रिया है जिसमें इसकी अहम भूमिका होती है.

भारत में लगभग 700 जातियों की खोजडॉ.संदीप हुड्डा ने बताया कि कृषि, वनों की कटाई, कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग जैसी मानवजनित गतिविधियां दुनिया भर में मधुमक्खियों की संख्या में भारी कमी का कारण बनी है. इससे उनके प्राकृतिक आवास नष्ट हो गए हैं. विश्व भर में पाई जाने वाली 80 प्रतिशत से अधिक इस कुल के कीट ,मधुमक्खियों की तरह सामजिक जीवन व्यतित नहीं करते बल्कि एकलवासी होते हैं और मिट्टी, लकड़ी या जमीन में अपना बिल बनाते है. इनको वाइल्ड बी कहा जाता है. विश्वभर में इसकी 20,925 जातियां तथा भारत में लगभग 700 जातियों की खोज की जा चुकी है.

इकोसिस्टम के लिए है जरूरीराजस्थान में अभी तक बी की लगभग 200 प्रजोतियो की लिस्टिंग की जा चुकी है. इनकी विविधता का पता लगाना उस जगह की पारिस्तिथी को संरक्षित करने के लिए बहुत ही जरूरी है. जैन तथा हुड्डा ने कोटा के लाडपुरा तहसील में किये गए विस्तृत सर्वे में 49 जातियों की खोज की है जिसमे से इन पांच जातियों को पहली बार इस क्षेत्र में देखा गया नोमिया ‘ओराटा, मेगाकीले अलबिफोर्मेस, मेगाकीले लनाटा, मेगाकीले अम्प्युटाटा, तथा इयूस्पिस कार्बोनारिया.’ अन्य तीन वंश की अलग-अलग तीन जातियां भी सर्वप्रथम रिपोर्ट की गई है. स्फेकोइडिस क्रेस्सीकार्निस, अन्द्रिना सविग्य्नी और अनथिडीयम सिन्गुलेटम. इनकी पहचान के लिए तैयार की गई वर्गीकरण कुंजी आगे के शोध के लिए लाभप्रद होगी. राजस्थान तथा भारत के अन्य स्थानों में भी इस तरह की लिस्टिंग उस जगह की वनस्पति को बचाने में महत्पूर्ण भूमिका निभाएगी. आणविक शोध तथा फील्ड में किये गए कार्य का समंजस्य जाति की सही पहचान के लिए जरुरी है.

Tags: Coaching City Kota, Kota news, Local18, rajasthan, Research on Creatures

FIRST PUBLISHED : November 29, 2024, 18:19 IST

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