World

वैष्णव, स्वामिनारायण, जैन, सिख, ईसाई और मुस्लिम ने सभी स्वयं को भारतीय अनुभव किया, यही भारत की विशेषता- ब्रह्मविहारी स्वामी

नई दिल्‍ली. कुछ लोग धर्म को विभाजनकारी मान सकते हैं, लेकिन मैंने हिंदू परंपरा को एकजुट करनेवाली शक्ति के रूप में अनुभव किया है. 22 जनवरी 2024 की सुबह, मैंने अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के उद्घाटन के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को श्रद्धा से “सिया-राम“ का जाप देखते हुए देखा. उस समय मेरे आस-पास मौजूद विविधता में एकता स्पष्ट दिखाई दी. शैव, शाक्त, वैष्णव, स्वामिनारायण, जैन, सिख, ईसाई और मुस्लिम – सभी ने स्वयं को “भारतीय” अनुभव किया. यही भारत की विशेषता है – एक ऐसा देश जहां विविध धर्म, संप्रदाय, ईश्वर के विविध रूप, भाषाएं, खानपान और लोग रहते हैं. जैसे ही हिंदू समाज चैत्र शुक्ल नवमी पर राम नवमी और स्वामिनारायण जयंती मनाने की तैयारी करता है, स्वामी ब्रह्मविहारी दास ने कहा कि मैं अबूधाबी में बैठा हुआ भी उस सुबह की स्मृतियों में खो जाता हूं. यह स्मरण मुझे भारत में ईश्वर के विविध रूपों की बहुलता पर विचार करने को प्रेरित करता है, विशेषतः श्रीराम और श्रीस्वामिनारायण के जीवन के माध्यम से.

हिंदू सनातन परंपरा में विविध संप्रदायों की बहुलता लगभग दो हज़ार वर्षों से एक पूंजी रही है. ये संप्रदाय विभिन्न ईश्वरीय रूपों की उपासना करते हैं और अपने-अपने विशिष्ट दर्शन को मानते हैं. इन अंतर और विविधताओं के बावजूद, हिंदू धर्म एक साझा पहचान के रूप में विकसित हुआ है. यह विविधता भिन्न-भिन्न भाषाओं, युगों और क्षेत्रों में हिंदू धर्म के सार्वभौमिक संदेशों को प्रसारित करती रही है. श्रीराम को उनके अनुशासन, मर्यादा और समाज के सभी वर्गों के प्रति सम्मान के लिए जाना जाता है. ये कहानियां सभी को ज्ञात हैं, मैंने स्वयं इन कथाओं को किशोरावस्था में “अमर चित्रकथा” श्रृंखला में पढ़ा और फिर भारत, यूरोप तथा मध्य-पूर्व में कई प्रवचनों में सुनाया.


स्वामी ब्रह्मविहारी दास ने प्रवचन दिया.

हिंदू धर्म एक ही संदेश को विविध स्वरूपों में पहुँचाने के लिए है

अयोध्या से अधिक दूर नहीं, सरयू नदी के पार, उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले का एक छोटा सा गाँव छपइया है, जिसे श्रीस्वामिनारायण का जन्मस्थान माना जाता है. लाखों श्रद्धालु प्रतिवर्ष इस छोटे से गांव में श्रीस्वामिनारायण की शिक्षाओं को सम्मान देने आते हैं. उन्होंने 11 वर्ष की आयु में घर छोड़कर हिमालय से कन्याकुमारी तक भारतवर्ष की यात्रा की और अंततः गुजरात में निवास किया. गुजरात में उनकी सभा एक खुला मंच बन गई, जहाँ भक्तों, धर्मशास्त्रियों, राजनीतिक दूतों के बीच संवाद होता, संगीत और साहित्य की विविध भारतीय परंपराओं का प्रदर्शन होता. इन संवादों को 273 शिक्षाओं के ग्रंथ “वचनामृत” में संकलित किया गया. इन शिक्षाओं ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और लीलापुरुषोत्तम श्रीकृष्ण की पूर्ववर्ती शिक्षाओं को और अधिक सशक्त बनाया. स्वामिनारायण की शिक्षाएँ यह सिद्ध करती हैं कि हिंदू धर्म में अवतरण की संकल्पना विभिन्न युगों और समुदायों में एक ही संदेश को विविध स्वरूपों में पहुँचाने के लिए है—विभाजन के लिए नहीं, बल्कि एकता के लिए है.

शिक्षा को करोड़ों लोगों के लिए सुलभ बनाते

श्रीस्वामिनारायण का सामाजिक सुधार कार्य इन्हीं हिंदू मूल्यों को आत्मसात करता है और आत्मिक उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करता है. उन्होंने गृह और समाज में महिलाओं की प्रतिष्ठा को उन्नत करने पर बल दिया, जिसे कानैयालाल मुंशी जैसे विद्वानों और इतिहासकारों ने सराहा. उन्होंने जातिगत अत्याचारों और अंधविश्वासी अनुष्ठानों को खत्म करने की जो सूक्ष्म किन्तु प्रभावशाली पहल की, उसे समकालीनों और उत्तरवर्ती हिंदू नेताओं ने भी प्रशंसा दी. यह तर्क दिया जा सकता है कि उनकी शिक्षाओं ने एक ऐसे हिंदुत्व की अभिव्यक्ति को जन्म दिया, जो औपनिवेशिक भारत में प्रासंगिक था और आगे चलकर वैश्विक हिंदू पहचान के लिए आधार बना. श्रीस्वामिनारायण की परंपरा ने वैदिक हिंदू सनातन शिक्षाओं को भारत से बाहर प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया. अमेरिका में न्यू जर्सी स्थित बीएपीएस स्वामिनारायण अक्षरधाम, अबूधाबी में बीएपीएस हिंदू मंदिर और हाल ही में जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में उद्घाटित बीएपीएस श्रीस्वामिनारायण मंदिर और सांस्कृतिक परिसर, इन शिक्षा को करोड़ों लोगों के लिए सुलभ बनाते हैं. इन मंदिरों को देखकर मैं एक बार फिर श्रीस्वामिनारायण की शिक्षाओं को समस्त हिंदू परंपरा की एकता और साम्यता के उत्सव के रूप में देखता हूं – यह पूर्व संतों के कार्यों का ही विस्तार है, न कि कोई प्रतिस्थापन है.


दुबई का पहला बीएपीएस हिन्दू मंदिर.

स्वामिनारायण परंपरा के अनुयायियों या हिंदुओं तक सीमित नहीं

मैं यह अंतिम विचार अबूधाबी, संयुक्त अरब अमीरात में बीएपीएस हिंदू मंदिर के केंद्रीय गुंबद के नीचे बैठकर लिख रहा हूँ. ऐसे मंदिरों और सांस्कृतिक परिसरों में श्रीराम और श्रीस्वामिनारायण के साथ अनेक देवता सभी को आशीर्वाद देते हैं. यहाँ आशीर्वाद केवल स्वामिनारायण परंपरा के अनुयायियों या हिंदुओं तक सीमित नहीं, बल्कि उन सभी के लिए हैं जो जिज्ञासा, आत्मिक प्यास, आत्मविकास या सांस्कृतिक संबंध की भावना लेकर आते हैं. यहाँ श्रेष्ठता या श्रेणी की चर्चा नहीं होती—यहाँ केवल प्रेम, शांति और सद्भाव के संदेश सुनाई देते हैं. यही वे शिक्षाएं हैं जो आज के विश्व, समाज, संस्कृति और सभी धर्मों के लिए आवश्यक हैं. इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं कि रामनवमी के दिन यहाँ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ – “सारा विश्व एक परिवार है” – यह सनातन हिंदू धर्म का सार्वभौमिक मूल्य सजीव प्रतीत होता है

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Uh oh. Looks like you're using an ad blocker.

We charge advertisers instead of our audience. Please whitelist our site to show your support for Nirala Samaj