अमिताभ बच्चन का वो गॉडफादर, बिना स्क्रिप्ट के कराता था एक्टर्स से काम, परफेक्शन ऐसा हुई एक चूक तो शूटिंग कैंसिल
नई दिल्ली. हिंदी सिनेमा के बेहतरीन डायरेक्टर्स की लिस्ट में यूं तो राज कपूर, गुरु दत्त, बिमल रॉय, यश चोपड़ा, रमेश सिप्पी, मणिरत्नम, संजय लीला भंसाली, एस एस राजामौली सहित कई हिट डायरेक्टर्स के नाम हैं. लेकिन क्या आप उस डायरेक्टर के बारे में जानते हैं, जिसके लिए कहा जाता है ये वो शख्स हैं जो एक कलाकार को पहले स्टार और फिर सुपरस्टार बनाया. अमिताभ बच्चन इन्हें अपना गॉडफादर कह करते थे. उन्होंने कई सितारों को सिनेमा की बारिकियों से रुबरू कराया और बताया कि जीवन में अगर टाइम को अहमियत नहीं दी तो उनके साथ काम करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
ये डारेक्टर और कोई नहीं ऋषिकेश मुखर्जी थे. आज से 18 साल पहले किडनी की बीमारी के कारण आज ही के दिन वह दुनिया को अलविदा कह गए थे. ‘गुड्डी’, ‘आनंद’, ‘मिली’, ‘चुपके-चुपके’, ‘सत्यकाम’, ‘गोलमाल’ जैसी कई बेहतरीन फिल्मों से उन्होंने सिनेमा को जगमग किया. ऋषिकेश दा की फिल्मों के लिए कहा जाता रहा कि वह एक मात्र ऐसे डायरेक्टर हुए, जिन्होंने जीवन की असलियत को पर्दे पर बेहद हल्के-फुल्के अंदाज में दिखाया.
बॉलीवुड में कहा गया फिल्मों का ‘हेडमास्टर’ऋषिकेश मुखर्जी फिल्म इंडस्ट्री के स्टार मेकर थे. उन्होंने अपने दौर में सिनेमा को लेकर लोगों का नजरिया बदला. वह हिंदी सिनेमा के निर्माता, निर्देशकों और कलाकारों को यह बताने में कामयाब रहे कि कैसे गंभीर विषयों का ताना बाना भी कैसे हल्के-फुल्के और मजाकिया अंदाज में बुना जा सकता है. ऋषिकेश दा सिनेमा के पर्दे की ऐसी समझ रखते थे कि बॉलीवुड उन्हें इस 70 एमएम के पर्दे का महारथी मानने लगा था. ऋषि दा ने अपने करियर की शुरुआत साल 1957 में आई फिल्म ‘मुसाफिर’ से की थी और हिंदी सिनेमा के दिग्गजों का बता दिया था कि फिल्मों का ‘हेडमास्टर’ आ गया है.
बिना स्क्रिप्ट के कराते थे एक्टर्स से कामअमिताभ बच्चन ने यूं तो कई डायरेक्टर्स के साथ काम किया है, लेकिन वह ऋषि दा को अपना गॉडफादर मानते थे. एक बार अपने ब्लॉग में बिग बी ने उन्हें याद करते हुए लिखा था- ‘हमने कोई स्क्रिप्ट नहीं सुनी, न ही कोई कहानी. हम सिर्फ सेट पर आते थे. वो (ऋषि दा) हमें कहते थे, यहां खड़े हो जाओ, यहां चलो, डायलॉग ऐसे बोल दो, सीन में अपनी बात ऐसे कहो. उनके डायरेक्शन का तरीका बस यही था. इसमें एक्टर्स का कोई इनपुट नहीं होता था. आप उनकी फिल्मों में जो कुछ भी देखते थे, वो केवल उनका ही इनपुट रहता था.’
आज से 18 साल पहले किडनी की बीमारी के कारण आज ही के दिन वह दुनिया को अलविदा कह गए थे.
टाइम के थे बेहद पाबंदउनके साथ जिस स्टार ने भी काम किया या उन्हें करीब से जाना. वो ये जानते हैं कि वह टाइम के बेहद पाबंद थे. उन्हें न 1 मिनट की भी देरी पसंद नहीं थी. ंमीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक बार एक बड़ा स्टार उनकी सेट पर 9 बजे की शिफ्ट होने के बावजूद करीब 12:30 बजे पहुंचा. जब वो स्टार आया तो वे उस समय तो कुछ नहीं बोले. जब स्टार ने मेकअप करवा लिया और शॉट देने के लिए तैयार हो गया तब अचानक ऋषि दा ने कहा कि आज शूटिंग नहीं होगी.
शतंरज खेलने के थे शौकीनऋषिकेश मुखर्जी अपनी हर शॉट में परफेक्शन देखते थे. उन्होंने जो तय किया है वो इधर से उधर हुआ तो शूट फिर से करना होता था. फिर इसके लिए कितना भी समय लगे या कितने भी री-टेक हो. उन्हें शतरंज खेलने का शौक था इसलिए सेट पर अक्सर वह शतंरज खेला करते थे. शूटिंग सेट पर कभी-कभी वे शतरंज खेला करते थे और फिर अचानक से उठकर शूटिंग इंस्ट्रक्शन देने लगते थे.
कई अवॉर्ड किए अपने नामऋषिकेश मुखर्जी को 8 बार फिल्मफेयर और 5 प्रेसिडेंट मेडल हालिस किए. 1999 में उन्हें दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. साल 2001 में उन्हें पद्म विभूषण अवॉर्ड से नवाजा गया. साल 2001 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था.
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FIRST PUBLISHED : August 27, 2024, 15:19 IST