Alwar: पांडव काल के इस मंदिर में है दुर्लभ नीलम का शिवलिंग और नृत्य करते गणेश की प्रतिमा, जानें इतिहास
पीयूष पाठक
अलवर. राजस्थान का अलवर जिला पौराणिक कथाओं के लिए ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक कलाकृति के लिए भी विख्यात रहा है. पांडव काल में यहां बना ऐतिहासिक नीलकंठ महादेव मंदिर अनूठी कला के लिए जाना जाता है. अलवर से लगभग 65 किलोमीटर दूर सरिस्का टाइगर रिजर्व में टहला क्षेत्र स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर में नीलम से निर्मित साढ़ चार फीट उंचे शिवलिंग इस मंदिर का मुख्य आकर्षण है.
वैसे तो साल भर ही नीलकंठ महादेव मंदिर में दूर-दूर से भक्तों का आना-जाना रहता है. लेकिन, महाशिवरात्रि पर यहां पूजा-अर्चना का विशेष महत्व माना जाता है. अरावली की पहाड़ियों पर दुर्गम रास्ता होने के बाद भी यहां दिल्ली, जयपुर सहित दूर-दराज से श्रद्धालु नीलम के शिवलिंग के दर्शन को पहुंचते हैं.
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नीलकंठ महादेव मंदिर में विराजमान शिवलिंग नीलम पत्थर से निर्मित है. मंदिर गर्भगृह सहित नीलकंठ महादेव मंदिर गुंबद पूर्ण रूप से पत्थरों से बना है. इसमें कहीं भी चूना का उपयोग नहीं किया गया है. मंदिर के गर्भगृह एवं गुंबदों पर दुलर्भ देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं. मंदिर में नृत्य अवस्था में भगवान गणेश की दुलर्भ प्रतिमा है. इसके अलावा, यहां कई अन्य देवी-देवताओं की दुर्लभ प्रतिमाएं हैं, जो प्राचीन संस्कृति एवं कलाकृति का बेजोड़ नमूना है.
नाथ संप्रदाय करता है पूजा-अर्चना
ऐतिहासिक नीलकंठ महादेव मंदिर की पूजा नाथ संप्रदाय के लोगों की तरफ से की जाती है. मंदिर के पुजारी ने बताया कि नीलकंठ महादेव मंदिर की स्थापना पांडवों के द्वारा की गई थी, तभी से मंदिर के गर्भगृह में अखंड जोत जल रही है. मंदिर के दर्शन के लिए राजस्थान से नहीं, बल्कि दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मुंबई, हरियाणा सहित अन्य प्रदेशों से भक्त आते हैं. यहां श्रावण मास में मेले का माहौल रहता है.
मंदिर के पुजारी का कहना है श्रावण मास में मंदिर में नीलकंठ महादेव शिवलिंग का प्राकृतिक रूप दिन में तीन प्रकार के रंग में दिखाई देते हैं. वहीं, इतिहासकारों का मानना है कि नीलकंठ महादेव मंदिर की स्थापना वर्ष 1010 में राजा अजयपाल ने कारवाई थी. अभी इस मंदिर की देख-रेख आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानी एएसआई तत्वाधान में चल रही है.
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FIRST PUBLISHED : March 29, 2023, 12:46 IST