Study: क्या वाकई हर ‘आंखों देखी’ चीज सही ही होती है या यहां भी दिमाग को दिया जा सकता है धोखा

Eyes Lie Too: अकसर कहा जाता है कि सुनी-सुनाई बातों पर यकीन नहीं करना चाहिए. हमारे बड़े हमेशा सलाह देते हैं कि केवल आंखों देखी चीजों पर ही भरोसा करना चाहिए. अब एक शोध ने सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वाकई आंखों देखी हर चीज सही ही होती है? वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान के देखने की प्रणाली दिमाग को पूरी तरह से चकमा दे सकती है. पीएलओएस वन जर्नल की हालिया रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि इंसान के सबसे तेज अंग अंग दिमाग को सबसे नाजुक मानी जाने वाली आंखें कभी भी धोखा दे सकती हैं.
रिसर्च में सामने आए नतीजों का इंसान के रोजमर्रा के जीवन पर काफी बुरा असर पड़ सकता है. अध्ययन के मुताबिक, हमारा विजुअल सिस्टम ब्रेन को हर चीज सही ही नहीं दिखाता है. कई बार हमारी आंखें हमारे दिमाग को धोखे या भ्रम में भी डाल सकती हैं. आंखों और दिमाग के इस अजीब संबंध पर यॉक यूनिवसिर्ट और एस्टन विश्वविद्यालय ने संयुक्त अध्ययन किया है. जानते हैं कि इस रिसर्च में कौन-कौन सी चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई हैं?
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तस्वीरों के जरिये कैसे किया गया शोध
शोधकर्ताओं ने अध्ययन में शामिल लोगों को रेलवे के किसी सीन की कुछ खास तस्वीरें दीं. दरअसल, तस्वीरों के ऊपरी और निचले हिस्सों को धुंधला किया गया था. वहीं, रेलवे की छोटी तस्वीरों का कोई भी हिस्सा धुधला नहीं रखा गया था. शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों को इन दोनों तरह की तस्वीरों की तुलना करने को कहा. इसके बाद पूछा कि इहमें से असली रेलवे के दृश्य वाली तस्वीरें कौन सी हैं. इस पर प्रतिभागियों ने कहा कि धुंधली ट्रेन की तस्वीरें ही असली हैं. ये तस्वीरें मॉडल के मुकाबले छोटी थीं.

अध्ययन के मुताबिक, हमारा विजुअल सिस्टम ब्रेन को हर चीज सही ही नहीं दिखाता है.
विजुअल सिस्टम कैसे करता है काम
यॉर्क यूनिवर्सिटी मनोवैज्ञानिक डॉ. डैनियल बेकर के मुताबिक, आसपास की वस्तुओं के आकार को तय करने के लिए इंसान के देखने की प्रणाली को वस्तु से दूरी का अनुमान लगाना होता है. वस्तु के वास्तविक आकार को जानने के लिए ये प्रणाली तस्वीर के धुंधले हिस्सों को भी ध्यान में रख सकती है. ये एक कैमरे की तरह काम करती है, जो आउट ऑफ फोकस एरिया भी बनाता है. अध्ययन के मुताबिक, किसी भी वस्तु के आकार को लेकर किसी भी व्यक्ति को धोखा दिया जा सकता है.
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दिमाग को कैसे धोखा देता है सिस्टम
फोटोग्राफर टिल्ट-शिफ्ट मिनिएचराइजेशन तकनीक का इस्तेमाल करके बड़ी से बड़ी चीजों की छोटी तस्वीरें बना सकते हैं. रिसर्च में कहा गया है कि मनुष्य का विजुअस सिस्टम बहुत ही ज्यादा लचीला होता है. कभी-कभी वो डिफोकस ब्लर का सही आकलन करके वस्तु के सही आकार की सही तस्वीर बताता है. कभी-कभी दूसरे प्रभावों के कारण वास्तविक आकार को समझने में नाकाम रहता है. जब-जब हमारा विजुअल सिस्टम किसी वस्तु के सही आकार को नहीं समझ पता, तब-तब वो दिमाग को भी गलत जानकारी देता है.
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दिमाग कहां कर देता है दृश्य में खेल
सिडनी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क द्वारा खेली जाने वाली चालों पर भी रोशनी डाली है. उनका कहना है कि दिमाग लगातार मिलने वाले दृश्य और दूसरे संवेदी संकेतों को समझने की कोशिश करता रहता है. शोध में यह समझने की कोशिश की कई है कि हमारा मस्तिष्क कैसे दुनिया को समझता है. यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ साइकोलॉजी और द विजन सेंटर से प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस की डॉ. इसाबेल मार्सचल तथा प्रोफेसर कॉलिन क्लिफोर्ड ने एक लेख में प्राइमरी विजुअल कॉरटेक्स की कोशिकाओं के झुकाव भ्रम का पता लगाने वाले प्रयोगों के बारे में बताया. यह वह जगह है जहां चेतन मन से पहले दृष्टि प्रसंस्करण का पहला चरण होता है.
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कहां पैदा होती है दृश्यों में विकृति
डॉ. मार्सचल ने कहा कि हम वास्तविक दुनिया के रूप में जो देखते हैं, उसी पर विचार करते हैं. वास्तव में इसका बहुत कुछ विकृति है और यह मस्तिष्क के प्रारंभिक प्रसंस्करण में हो रहा है. शोध से पता चला है कि प्राइमरी विजुअल कॉरटेक्स की कोशिकाएं छोटी विकृतियां पैदा करती हैं, जो बाद में उच्चस्तर तक पहुंच जाती हैं. इसका एक सामान्य उदाहरण किसी कलाकार की बनाई पेंटिंग में दिख जाताहै. कलाकार पूरी तरह से लंबवत रेखाएं बनाता है, लेकिन बड़े कैनवास पर सीधी रेखाएं भी कई बार झुकी हुई दिखाई देती हैं. इसे झुकाव भ्रम के रूप में जाना जाता है.

आंखों का दिमाग को भ्रम में डालने का सबसे अच्छा उदाहरण ऑप्टिकल इल्यूजन वाली तस्वीरें हैं. (Image: News18)
क्या उच्च मस्तिष्क को सब पता है
डॉ. मार्सचल के मुताबिक, हम परीक्षण करना चाहते थे कि मस्तिष्क में भ्रम अचेतन या सचेत मन में से किस स्तर पर होता है. साथ ही ये भी पता करना चाहते थे कि क्या उच्च मस्तिष्क को मिलने वाले भ्रमों के बारे में पता है. फिर ये कैसे उनको सही करने की कोशिश करता है. वह बताती हैं कि मस्तिष्क पृष्ठभूमि से अधिक प्रासंगिक जानकारी चाहता है ताकि वह उस वस्तु के अलाइनमेंट को काम करने की कोशिश कर सके जो वह देख रहा है. शोध टीम ने प्रतिभागियों को एक ऊर्ध्वाधर रेखा के शुरू होने का संकेत दिया, जिसे एक अस्पष्ट पृष्ठभूमि के साथ लगातार एक तरफ से झुकाव के रूप में माना जाता था.
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मिली सेकेंड में होता है भ्रम पैदा
शोधकर्ताओं के मुताबिक, भ्रम बहुत तेजी से यानी मिली सेकेंड में होता है. हमने पाया कि उच्च मस्तिष्क भी हमेशा उनके लिए सही नहीं हो सकता, क्योंकि यह वास्तव में नहीं जानता कि वे भ्रम हैं. यह एक कारण है कि लोगों की आंखें कभी-कभी उनके दृश्य परिदृश्य में वस्तुओं को देखते समय गुमराह करती हैं. आम तौर पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन ट्रैफिक में तेजी से कार चलाने, एथलीट के एक्रोबेटिक करतब करने, पायलट के विमान उतराने में अगर वस्तुओं के आकार में भ्रम हो तो बड़ी परेशानी हो सकत है. दिमाग वस्तुओं के रंग, गति, बनावट और चमक का इस्तेमाल वस्तु की पूरी जानकारी जुटाने व उसका सही आकार तय करने के लिए करता है.
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FIRST PUBLISHED : May 17, 2023, 19:38 IST